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मुलायम के चरखा दांव से भाई शिवपाल चित तो बेटे अखिलेश का बढ़ गया कद

suman
Published on: 25 Jun 2016 7:48 PM IST
मुलायम के चरखा दांव से भाई शिवपाल चित तो बेटे अखिलेश का बढ़ गया कद
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vinod kapoor Vinod Kapoor

लखनऊ: रेसलिंग का रिंग तैयार था, जिसमें पहलवान के तौर पर अकेले सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव थे। पेशे में राजनीति और शौक में कुश्ती हो तो ऐसे दांव चले ही जाते हैं। मुलायम सिंह यादव को तो वैसे भी उनके चरखा दांव के लिए जाना जाता है। इस बार उन्होंने अपने चरखा दांव से अपने ही भाई शिवपाल को चित कर दिया और बेटे अखिलेश की इमेज को कुछ और बढ़ा दिया। इस रेसलिंग को पूरी यूपी की जनता देख रही थी।

राजनीति की जानकारी रखने वालों को अभी तक याद है कि 2012 में पश्चिमी यूपी के दागी छवि वाले नेता डीपी यादव को सपा में शामिल करने पर भी ऐसा ही नाटक खेला गया था। पहले तो डीपी यादव को शामिल किया गया, लेकिन अखिलेश यादव के इसके विरोध में अड़ जाने से उनका आना संभव नहीं हो सका। उस वक्त पार्टी के बड़े नेता मोहन सिंह की बलि दी गई और उन्हें प्रवक्ता पद से हटा दिया गया। इस पूरे घटनाक्रम के बाद अखिलेश यादव ने चुनावी रथयात्रा शुरु की, जिसका परिणाम चुनाव में सपा की जीत के रुप में सामने आया।

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2016 में फिर दोहराया गया इतिहास

साल 2012 का पूरा घटनाक्रम 2016 में फिर से दोहराया गया । उस वक्त अपराधी छवि वाले डीपी यादव थे तो इस बार मुख्तार अंसारी। मुख्तार की पार्टी के विलय को लेकर बात पार्टी के संसदीय बोर्ड तक पहुंच गई। शनिवार को संसदीय बोर्ड की बैठक में सीएम अखिलेश के सवालों पर उनके चाचा और पार्टी के यूपी के प्रभारी शिवपाल सिंह यादव बचते नजर आए। संसदीय बोर्ड के फैसले की जानकारी सपा के महासचिव रामगोपाल यादव ने दी। उन्होंने जानकारी दी कि कौमी एकता दल का विलय नहीं होगा और आगरा जेल से लखनऊ जेल लाए गए मुख्तार वापस पुराने जेल में भेजे जाएंगे।

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अखिलेश फिर करेंगे रथयात्रा

रामगोपाल यादव ने अखिलेश के फिर से रथयात्रा शुरू करने की भी जानकारी दी। मतलब पुरानी कहानी फिर से दोहरा दी गई। अब चुनाव सिर पर है और सपा को उम्मीद है कि अखिलेश की रथयात्रा फिर से गुल खिलाएगी। इसमें अखिलेश सिर्फ माध्यमिक शिक्षा मंत्री बलराम यादव को वापस मंत्रिमंडल में लेने को राजी हुए । रामगोपाल यादव ने नेशनल एग्जीक्यूटिव में बदलाव के भी संकेत दिए। राजनीति की थोड़ी सी भी जानकारी रखने वालों को इस बात की संभावना पहले से ही थी कि अपराधी छवि वाले मुख्तार और उनके भाई अफजाल अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का सपा में विलय नहीं होगा।

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बलराम पर निकला अखिलेश का गुस्सा

सपा के यूपी के प्रभारी शिवपाल सिंह यादव ने 21 जून को कौमी एकता दल के सपा में विलय की घोषणा की थी । ये संयोग था या जानबूझकर किया काम कि उस दिन सपा के प्रदेश अध्यक्ष और सीएम अखिलेश यादव राजधानी में नहीं थे ।लखनऊ वापस आने पर उन्हें इस डेवलेपमेंट का पता चला और उनका गुस्सा मंत्री बलराम यादव पर निकला जो सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी माने जाते हैं। अखिलेश ने उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था। अखिलेश ये मानते थे कि कौमी एकता दल के विलय के पीछे बलराम यादव का प्रयास था ।

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बैठक में सीएम और रामगोपाल ने दिखाए तेवर

सपा की सेंट्रल पालियामेंट्री बोर्ड की बैठक मुलायम सिंह यादव की अध्यक्षता में हुई, जिसमें अखिलेश और रामगोपाल यादव मुख्तार अंसारी की पार्टी के विलय को लेकर काफी आक्रामक थे जबकि शिवपाल यादव असहाय नजर आ रहे थे। मुख्तार पर महाभारत चली। मुलायम सिंह के सामने सीएम अखिलेश ने कौमी एकता दल के सपा में विलय का विरोध किया। अखिलेश ने साफ कर दिया था कि वह मुख्तार अंसारी को सपा में कतई स्वीकार करने के मूड में नहीं हैं। सपा महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने भी उनका साथ दिया।

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मुख्तार पर हुई महाभारत

अखिलेश ,मुख्तार की पार्टी के विलय से वैसे भी काफी नाराज थे। अखिलेश ने बोर्ड की बैठक से पहले एक पंचायत कार्यक्रम में कहा, ”मैं चाचा के फैसले से सहमत नहीं हूं। मुख्तार अंसारी जैसों का सपा में स्वागत नहीं। मैं मुख्तार के सपा में शामिल होने के खिलाफ हूं।” हालांकि कुछ दिन पहले अखिलेश ने कहा था कि नेता जी का जो फैसला होगा, उसे पार्टी के सभी लोग मानेंगे । अब बड़ा सवाल राज्य की पूरी जनता के सामने ये कि मुख्तार को आने से रोक कर क्या सपा सच में दागी छवि वाले नेताओं से मुक्त हो गई है।

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