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नवगीत: फूल सफेद कांस के, धानी धूसर हरी दरी पर, फूले फूल सफेद कांस के

raghvendra
Published on: 28 Oct 2017 3:44 PM IST
नवगीत: फूल सफेद कांस के, धानी धूसर हरी दरी पर, फूले फूल सफेद कांस के
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डॉ. रविशंकर पाण्डेय

फूल सफेद कांस के

धानी धूसर हरी दरी पर

फूले फूल सफेद कांस के,

बीज बिखेर दिए ये किसने

अंधकार में ज्यों उजास के !

ज्वार बाजरे की खेती यह

खेती है चांदी सोने की,

मौसम आये हैं पकने के

ऋतु आई सपने बोने की;

बाढ़ और सूखे वाले सब

बीत गए दिन भूख प्यास के !

हरे धान के खेत झूमते

लहराये चूनर ज्यो धानी,

कच्ची धूप क्वार कातिक की

बैठ ब्याह की बुने कहानी;

वन तुलसी के गंध ज्वार में

घर डूबे सब आस पास के !

ऊसर बंजर मिट्टी में ज्यों

फूटे बादल राग रेत से,

खून पसीने के बलबूते

जाग गये हैं भाग खेत के;

क्या हजूर अब क्या मजूर

जब भेद मिट गये आम - खास के !!

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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