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अब क्या करेंगे ओमप्रकाश राजभर, न घर के न घाट के

राजनीतिक विश्लेषक सियाराम वर्मा का कहना है कि छोटी पार्टियों का अस्तित्व समाप्त प्राय: हो चुका है। ओम प्रकाश राजभर चुनाव से पूर्व इसको समझ नहीं पाये। यदि यही स्थिति रही तो आने वाले समय में उनकी पार्टी का कोई नाम लेने वाला नहीं बचेगा।

Shivakant Shukla
Published on: 25 May 2019 8:48 PM IST
अब क्या करेंगे ओमप्रकाश राजभर, न घर के न घाट के
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धनंजय सिंह

लखनऊ: चुनाव के मध्य में भाजपा से बगावत कर अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का राजनीतिक भविष्य भी खतरे में है।

पूर्वांचल के एक विशेष वर्ग में अपनी पहचान के लिए जानी जाने वाली सुभासपा ने जहां भी अपने उम्मीदवार खड़ा किए थे, वहां उन्हें सत्तर प्रतिशत से ज्यादा सीटों पर एक प्रतिशत से भी कम मत मिले हैं। स्थिति यह रही कि उसका अधिकांश वोट बैंक भाजपा की तरफ खिसक गया। इससे जहां भाजपा नेता गदगद हैं, वहीं यूपी में सरकार बनने के बाद से सिरदर्द बने ओम प्रकाश राजभर चुनाव बाद से ही मौन हो गये हैं।

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यदि भाजपा और कांग्रेस के चुनावी गठबंधन की रणनीति पर ध्यान दें तो प्रदेश में भाजपा हमेशा उन पार्टियों से गठबंधन के लिए ध्यान केन्द्रित करती है, जो उसके वोटबैंक का हिस्सा न हो। जबकि कांग्रेस खुद से खिसके वोट बैंक को सहेजने की कोशिश करती है। भाजपा ने पहले बसपा से इस कारण समझाैता किया था, क्योंकि दलित वोट बैंक उसका हिस्सा नहीं था।

हालांकि तब पार्टी दलितों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल नहीं हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे इसी को आधार बनाकर बसपा के जाटव को छोड़कर अन्य दलित वोट बैंक अपने पाले में करने में वह सफल हो गई है।

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सुभासपा जैसी छोटी-छोटी वर्ग विशेष आधारित पार्टियों से समझौता किया। ये अधिकांश पार्टियां वहीं थीं, जिनमें भाजपा का वोट बैंक न के बराबर रहा, चाहे अनुप्रिया पटेल का अपना दल हो या सुभासपा। उनके सहारे पार्टी ने वोट प्रतिशत में वृद्धि के साथ ही मोदी लहर के दम पर यूपी में कमल खिला दिया।

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सिर्फ सपा और कांग्रेस अपने पारिवारिक सीट को ही बचा पाये। इसके बाद इस बार 2019 के महासमर में सुभासपा जब अलग हुई तो भाजपा अनिल राजभर को आगे बढ़ाते हुए सुभासपा के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही और ओम प्रकाश राजभर ऐसे मात खाये कि उनकी आवाज ही बंद हो गयी।

राजनीतिक विश्लेषक सियाराम वर्मा का कहना है कि छोटी पार्टियों का अस्तित्व समाप्त प्राय: हो चुका है। ओम प्रकाश राजभर चुनाव से पूर्व इसको समझ नहीं पाये। यदि यही स्थिति रही तो आने वाले समय में उनकी पार्टी का कोई नाम लेने वाला नहीं बचेगा।

सुभासपा को मिले मत

यदि सुभासपा के वोट प्रतिशत पर ध्यान दें तो उनके उम्मीदवार अम्बेडकरनगर में 15167 मत (1.39 प्रतिशत), बलिया में 35900 (3.63 प्रतिशत), बस्ती में 11960 (1.14 प्रतिशत), चंदौली में 18985 (1.75 प्रतिशत), गाजीपुर में 33877 (3.06 प्रतिशत), घोसी में 39860 (3.49 प्रतिशत), सलेमपुर में 33520 (3.64 प्रतिशत), मछली शहर में 11223 (1.08 प्रतिशत), लालगंज में 17927 (1.87 प्रतिशत) मत मिले। इसके अलावा वाराणसी आजमगढ़, देवरिया, डूमरियागंज, गोंडा, गोरखपुर, जौनपुर, कुशीनगर, राबर्ट्सगंज, सुलतानपुर आदि में सुभासपा को एक प्रतिशत से भी कम मत मिले।

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Shivakant Shukla

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