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कोई जरूरी है कि हर कोई पकौड़े की दुकान खोले!

raghvendra
Published on: 7 July 2018 6:51 AM GMT
कोई जरूरी है कि हर कोई पकौड़े की दुकान खोले!
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नवलकांत सिन्हा

अमा मतलब हद होती है। अब बताइये, अखिलेश यादव ने अपनी ही जमीन पर होटल बनाने का आवेदन ही तो किया था। मतलब उनके विरोधियों को तो जैसे मिर्ची ही लग गयी। पहले ये बताइये कि आखिर नेता पैसे कैसे कमाए? उसका कोई धंधा-पानी होना चाहिए कि नहीं? क्या नेता का केवल यही धर्म है कि जब सरकार आये तो लूट-कसोट, कमीशनबाजी, भ्रष्टाचार हो और पैसे कमायें? अरे भाई नेता जनता की सेवा के लिए राजनीति करें और बच्चों के भरण-पोषण के लिए व्यवसाय करे तो इसमें कुछ बुराई है...?

लेकिन नहीं साहब, जिसे देखो अखिलेश यादव और डिम्पल यादव के होटल वाली खबर सुन कुढ़े बैठा है। खबर कुछ यूं आयी कि अखिलेश यादव और डिंपल यादव ने लखनऊ में भूखंड संख्या 1-ए विक्रमादित्य मार्ग पर ‘हिबस्कस हेरिटेज’ नाम से होटल निर्माण के लिए एलडीए में मानचित्र आवेदन कुछ समय पहले किया था और मानचित्र संबंधित दस्तावेज जमा किए गए थे। विक्रमादित्य मार्ग पर बंगला नंबर 1-ए अखिलेश यादव ने पत्नी डिम्पल यादव के साथ मिलकर वर्ष 2005 में ज्वाला रामनाथ पत्नी स्व. कमल रामनाथ से 39 लाख रुपये में खरीदा था। एलडीए ने इसका फ्री होल्ड भी उसी समय कर दिया था। अब अनुमति क्या माँगी, सोशल मीडिया में आंधी आ गयी। लोगों के कलेजे में सांप लोटने लगे। अरे सोचिये अखिलेश यादव को सरकारी बंगले से निकालने की ‘साजिश’ सफल हो गयी और अब उन्हें किराए के मकान में रहना पड़ रहा है। ऐसे में ये लगना स्वाभाविक है कि अगर कोई व्यक्ति लखनऊ आये और इस वीआइपी इलाके में रहना चाहे तो कोई तो जगह हो, जहां वह रह सके।

फिर ये जगह समाजवादी पार्टी कार्यालय के पास है। केवल पार्टी कार्यालय में पूरे उत्तर प्रदेश से आने वाले लोगों की संख्या सैकड़ों में होगी। यहाँ आते हैं तो किसी होटल में ही रुकते होंगे। पैसा तो लगता ही होगा। फिर आने-जाने का खर्चा अलग लगता होगा। अब अगर पार्टी ऑफिस के पास होटल बन जाएगा तो यहाँ से उनका पार्टी कार्यालय आने-जाने का खर्चा बच जाएगा। हो तो ये भी सकता है कि यहाँ सपा के सदस्य होने पर कुछ डिस्काउंट भी मिल जाए। ऐसे में कार्यकर्ताओं को फायदा भी हो जाएगा। अखिलेश भैया को सब दुआएं भी देंगे। ये भी हो सकता है कि डिस्काउंट के चक्कर में भाजपा और अन्य पार्टियों के लोग भी सपा जॉइन कर लें। लेकिन किसी भी खबर को पॉजिटिव तरीके से सोचने के बजाय निगेटिव तरीके से सोचने की लोगों की आदत हो गयी है। ट्विटर और वाट्सएप पर इन जलनखोरों ने यहाँ तक लिख डाला कि अब पता चला कि सरकारी बंगले टोटियां क्यों गायब हुर्इं... अब बताओ भला ये भी कोई बात हुई? लग तो ऐसा रहा है कि अखिलेश यादव पकौड़े की दुकान का आवेदन करते तो इनके कलेजे में ठंडक पड़ती।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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