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सांसद का रिपोर्ट कार्ड: पाइपलाइन में लटके हैं पाल के चुनावी वादे
पूर्णिमा श्रीवास्तव
गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के एक दिन के मुख्यमंत्री जगदम्बिका पाल उन खुशनसीब सांसदों में हैं जो यूपीए और एनडीए दोनों शासनकाल में सत्ता के साथ रहे हैं। वह यह बहाना नहीं बना सकते है कि विरोधी दल के सांसद होने के नाते उनकी नहीं सुनी गई। सत्ता में दस साल की भागीदारी के बाद भी जगदग्बिका पाल के पास विकास के नाम पर गिनाने का काफी कुछ नहीं है। सांसद के चुनावी वादे फिलहाल पाइपलाइन में लटके हैं। सडक़ें बदहाल हैं। पीएचसी और सीएचसी पर डॉक्टर नहीं है। तकनीकी शिक्षा का बुरा हाल है। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यहीं है कि वह शादी, मुंडन, तिलक से लेकर शोक में लोगों के घरों तक पहुंच जाते हैं। नतीजतन, वह क्षेत्र में न्योता वाले नेता जी के रूप में विख्यात हो चुके हैं।
जगदम्बिका पाल 2009 से 2014 तक यूपीए सरकार में कांग्रेस के सांसद थे तो 2014 से 2019 तक वह भाजपा सांसद बनकर सत्ता के करीब रहे। यहां यह जानना जरूरी है कि नीति आयोग द्वारा घोषित देश के 100 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में सिद्धार्थनगर भी शामिल है। इनमें भी टॉप टेन में इस जिले को शामिल किया गया। इसके बावजूद न तो केन्द्र सरकार और न ही प्रदेश सरकार ने इसके विकास के लिए खास प्रयास किया। 25,59,297 लाख आबादी वाले इस जिले में एक भी बड़ा उद्योग नहीं है।
विकास के मुद्दे पर निराशा
पिछले विधानसभा चुनाव में लोकसभा क्षेत्र में शामिल डुमरियागंज, शोहरतगढ़, कपिलवस्तु, बांसी और इटवा विधानसभा से लोगों ने कमल खिलाया था, लेकिन उन्हें विकास के मुद्दे पर निराशा ही हाथ लगी है। बड़े शहरों को ट्रेनों के संचलन और ट्रेनों के ठहराव की उपलब्धि को छोड़ दें तो सांसद के खाते में काफी कुछ नहीं नजर आता है। अजीब संयोग है कि जिन फोरलेन पर पड़ोस के जिलों में गाडिय़ां फर्राटा भर रही हैं, वह फोरलेन सिद्धार्थनगर में निर्माणधीन नजर आती है।
विभाग के अधिकारी अतिक्रमण को बाधा बताते हैं तो आम नागरिक उचित मुआवजा नहीं मिलने को बाधा बता रहे हैं। क्षेत्र में पाल की उपलब्धियां भले ही नहीं दिख रही है, लोकसभा में मौजूदगी और सक्रियता के मामले में वह गोरखपुर-बस्ती मंडल के 9 सांसदों में सबसे आगे नजर आते हैं। सदन में मौजूदगी से लगायत चर्चा में भाग लेने तक हर कहीं पाल औरों से बेहतर रहे। पाल ने प्राइवेट मेंबर बिल भी सबसे अधिक पेश किया। कुल 60 प्राइवेट मेंबर बिल सदन में रखे गए, इनमें से 19 जगदंबिका पाल ने पेश किए।
शिक्षा के क्षेत्र में रहे नाकाम
स्कूली और तकनीकी शिक्षा को लेकर पॉल नाकाम दिखे हैं। जिले में स्थापित राजकीय कन्या इंटर कॉलेज को 28 वर्ष बाद भी अपना स्थायी भवन नहीं मिल सका। कॉलेज आज भी दयनीय अवस्था में चंगेरा पैलेस के एक हिस्से में संकरे कमरों में चल रहा है। बांसी के नरकटहा में महामाया राजकीय पालीटेक्निक कालेज का निर्माण पिछले एक दशक से चल रहा है। सत्र 2016-17 से ही यहां कक्षाएं चलनी थी पर निर्माण की गति इतनी धीमी रही कि प्रस्तावित होने के बाद भी पॉलीटेक्निक कालेज में कक्षाएं अभी तक प्रारम्भ न हो सकी।
अमान परिवर्तन का वादा पूरा
पाल ने गोरखपुर-गोण्डा वाया नौगढ़ अमान परिवर्तन का वादा किया था जो पूरा हो चुका है। कपिलवस्तु-बस्ती वाया बांसी-डुमरियागंज रेल लाइन का वादा शिलान्यास पर अटका है। पर्यटन मंत्रालय ने इसके लिए 34 करोड़ रुपये दिये हैं। केन्द्रीय विद्यालय की पढ़ाई सरकारी भवन में शुरू हो चुकी है।
जमीन मिलने के बाद विद्यालय की अपनी बिल्डिंग बनने का काम शुरू हो चुका है। नर्सिंग कॉलेज निर्माण के लिए भी धन अवमुक्त हो चुका है। हेडपोस्ट ऑफिस का निर्माण करीब-करीब पूरा हो चुका है। सांसद जगदम्बिका पाल कपिलवस्तु में एयर स्ट्रिप बनाने के लिए पवन हंस कंपनी से वार्ता का दावा किया था जो कागजों में है। बुद्ध सर्किट को लेकर भी अपेक्षित काम नहीं हो सका है। भगवान बुद्ध की क्रीड़ास्थली रही कपिलवस्तु के विकास के लिए सिर्फ वादों की फेहरिस्त नजर आती है। पूरे क्षेत्र में आधे-अधूरे कार्यों के खंडहर नेताओं की सोच और प्रयास की बानगी भर है।
बुद्ध से जुड़ी परियोजना अधूरी
विदेशी पर्यटकों के लिए वर्ष 1987-88 में मुख्यालय पर रोडवेज के पास 11 लाख की लागत से पर्यटक आवास गृह का निर्माण कराया गया। 29 दिसंबर 1988 में जिला बनने के बाद इसे अफसरों का आशियाना बना दिया गया। बाद में इसे लोक निर्माण विभाग का स्टोर बना दिया गया।
कपिलवस्तु स्थित मुख्य स्तूप से पास अधिग्रहीत क्षेत्र में वर्ष 1994-95 में पर्यटन विभाग द्वारा विकसित होटल शाक्य खंडहर में तब्दील हो चुका है। वर्ष 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री व वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कपिलवस्तु आकर 180 फीट ऊंची बुद्ध की प्रतिमा का शिलान्यास किया था। सांसद अपने गृहमंत्री की पहल को आगे नहीं बढ़ा सके। वर्ष 2012-13 में बुद्धा थीम पार्क के लिए 3 करोड़ 66 लाख 72 हजार रुपये का बजट मंजूर हुआ। केंद्र ने अपने हिस्से के 2 करोड़ 58 लाख 60 हजार रुपये आवंटित कर दिए, लेकिन एक करोड़ 8 लाख 14 हजार रुपये का राज्यांश नहीं मिलने से काम यह अधूरा पड़ा है।
काला नमक चावल पर अतिरिक्त पहल नहीं
तमाम खूबियों वाले कालानमक चावल को प्रदेश सरकार ने एक जिला एक उत्पाद में शामिल तो किया, लेकिन इसके लिए अतिरिक्त पहल नहीं हो सकी। बता दें कि आयरन और जिंक से भरपूर काला नमक चालव का जिक्र संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि संबंधी किताब स्पेशिअलिटी राइस ऑफ वल्र्ड में भी है। एक जिला एक उत्पाद में काला नमक चावल के शामिल होने के बाद भी इसे पहचान देने के लिए कोई प्रयास नहीं हुआ।
वर्तमान में तीन-साढ़े तीन हजार हेक्टेयर में पारंपरिक तरीके से काला नमक की खेती हो रही है। दावा किया गया कि इसका रकबा तीस हजार हेक्टेयर किया जाएगा और समर्थन मूल्य भी बढ़ा दिया जाएगा। लेकिन कुछ नहीं हुआ। सिद्धार्थनगर के डीएम ने काला नमक के समर्थन मूल्य को 4 हजार प्रति कुंतल करने का प्रस्ताव शासन को भेजा था, लेकिन फाइल लखनऊ में ही अटकी हुई है। काला नमक को लेकर मेटुका विकास मंच की स्थापना करने वाले नजीर मलिक एडवोकेट का कहना है कि उत्पादकों को वाजिब मूल्य सुनिश्चित किए बिना काला नमक की ग्लोबल पहचान को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है।
जिले के बार्डर पर फोरलेन का निर्माण ठप
अजीब संयोग है कि सिद्धार्थनगर होकर गुजरने वाली फोरलेन की योजनाएं अन्य जिलों में तो चल रही हैं, लेकिन अपने जिले में थमी हुई है। कहीं मुआवजे का पेंच फंसा है तो कहीं धीमी गति से निर्माण कार्य हो रहा है।
वर्ष 2015 में केंद्रीय भूतल परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने नेपाल सीमा पर सिद्धार्थनगर में एनएच-230 (ककरहवा-रुधौली-कलवारी-बनारस) की आधारशिला रखी थी। करीब 570 करोड़ रुपए की लागत से निर्माणाधीन फोरलेन की रफ्तार जिले में काफी धीमी है। गोरखपुर-ककरहवा फोरलेन का निर्माण सिद्धार्थनगर जिले में नहीं हो सका है। गोरखपुर से सिद्धार्थनगर के बार्डर धानी तक तो फोरलेन का निर्माण हो गया है, लेकिन जिले में प्रवेश के साथ बदहाली दिखने लगती है।
समीकरण से तय होगी जीत-हार
प्रमुख राजनीतिक दलों में भाजपा ने अपने पुराने चेहरे जगदम्बिका पाल पर ही दांव लगाया है। कांग्रेस ने अभी तक प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं की है। पूर्व सांसद मोहम्मद मुकीम कांग्रेस के चेहरे हो सकते हैं। बसपा ने व्यवसायी ऑफताब आलम को प्रभारी प्रत्याशी घोषित किया है। आफताब पिछले विधानसभा चुनाव में गोरखपुर की पिपराइच विधानसभा सीट से बसपा के उम्मीदवार थे जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वहीं पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉ.अयूब खुद चुनाव मैदान में हैं। डुमरियागंज में करीब आधे वोटर मुस्लिम हैं।
कमोवेश सभी राजनीतिक दलों का अलग-अलग क्षेत्रों के मुस्लिम वोटों पर दखल है। डॉ अयूब जहां अति पिछड़े मुस्लिम वोटरों पर पकड़ रखते हैं तो मोहम्मद मुकीम मुंबइया वोटरों में पैठ रखते हैं। संसदीय क्षेत्र में एक लाख से अधिक मुंबइया वोटर हैं, जो लोकतंत्र के उत्सव में वोट करने पहुंचते हैं। वहीं पढ़े लिखे मुस्लिमों में सांसद जगदम्बिका पाल की भी पकड़ है। गठबंधन उम्मीदवार मुस्लिम वोटरों को खुद का स्वभाविक वोटर मान रहे हैं। कुल मिलाकर जबतक सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के नाम की घोषणा नहीं हो जाती है, तब तक जीत-हार का कयास लगाना मुमकिन नहीं है। अलबत्ता यह तय है कि डुमरियागंज की डगर किसी के लिए आसान नहीं है। यहां छठे चरण में 12 मई को मतदान होना हैं। सीट पर कांटे का मुकाबला होना तय है।
उजाड़ दिखता है सांसद का गोद लिया गांव भारत भारी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रेरणा से सांसद पाल ने पर्यटन के मानचित्र पर अमिट डुमरियागंज ब्लाक के भारत भारी गांव को गोद लिया था। आदर्श गांव में 9 करोड़ से अधिक खर्च का दावा सांसद करते हैं, लेकिन इतनी रकम कहां खर्च हुई गांव वाले भी सवाल करते हैं। गांव में ओवरहेड टैंक तो बन गया है, लेकिन घरों तक टोटी नहीं लग सकी है। भारत भारी गांव का ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व है। गांव में स्थित शिवलिंग की स्थापना राजा दशरथ के पुत्र भरत ने की थी। राम के वनवास जाने के बाद उन्हें मनाकर वापस लौट रहे थे। यहीं पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव की अराधना की थी। गांव में महाभारतकाल के आवशेष भी पाए गए हैं। मंदिर के पास स्थित पौराणिक पोखरे का विकास अभी तक नहीं हो सका है। गांव मे पहुंचने को खड़ंजे की जगह इंटरलाकिंग सडक़ बन गई। गांव को जोडऩे वाली सडक़ पक्की हो गई। शिक्षा व स्वास्थ्य को लेकर कुछ खास नहीं दिखता है। सांसद पाल का दावा है कि भारत भारी गांव में पर्यटकीय विकास के लिए 8.06 करोड़ और पेयजल की सुविधा के लिए 1.86 करोड़ की धनराशि मंजूर हुई है। कार्य भी जल्द पूरा होगा।
ट्रेनों के संचलन से लेकर मेडिकल कॉलेज को गिना रहे उपलब्धि
सिद्धार्थनगर जिले से मेट्रो शहरों के लिए ट्रेनों की उपलब्धता को सांसद जगदम्बिका पाल अपनी बड़ी उपलब्धि मानते हैं। वातानुकूलित बोगियों वाली हमसफर एक्सप्रेस सिद्धार्थनगर से होकर ही दिल्ली जा रही है। डेमो ट्रेन पिछले कार्यकाल से ही दौड़ रही है। पाल मेडिकल कॉलेज के शिलान्यास को भी अपनी उपलब्धि बताते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि इसके लिए जिले के विधायकों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा था जिसके बाद सिद्धार्थनगर में मेडिकल कॉलेज को हरी झंडी मिली है। खुद योगी ने चुनावी मौसम में इसका शिलान्यास किया है। पांच जिलों के साथ नेपाल बार्डर को जोडऩे वाली रेल लाइन के शिलान्यास से भी पाल उत्साहित हैं। चुनाव आचारसंहिता लागू होने के चंद दिनों पहले रेल मंत्री पीयूष गोयल ने 5000 करोड़ की रेल परियोजना का शिलान्यास किया था। यह रेल लाइन संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, श्रावस्ती व बहराइच को जोड़ेगी। हालांकि विरोधी कहते हैं कि रेल लाइन में पाल से अधिक रेल लाओ संघर्ष समिति के वर्षों पुराने आंदोलन का योगदान है।