×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

जन्मदिन: पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी की याद में गीतों की शाम

raghvendra
Published on: 6 Oct 2017 5:35 PM IST
जन्मदिन: पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी की याद में गीतों की शाम
X

बीते 28 सितंबर को लखनऊ में सुप्रसिद्ध हिंदी सेवी और सरस्वती के संपादक रहे पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी यानी भैया जी का जन्मदिन मनाया गया। यह आयोजन पहले उनके सुपुत्र शैलनाथ चतुर्वेदी समारोहपूर्वक प्रति वर्ष करते थे। अब उनके सुपौत्र अरविंद चतुर्वेदी ने समारोह का यह क्रम आगे बढ़ाया है।

इस बार मशहूर गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र समारोह के मुख्य अतिथि थे। कोई एक घंटे तक बुद्धिनाथ का काव्य पाठ चला। समारोह में देवेश चतुर्वेदी ने कुछ मशहूर कवियों की रचनाओं को संगीतबद्ध कर सुनाया। जयशंकर प्रसाद, मैथिलिशरण गुप्त, महादेवी वर्मा, निराला और हरिवंशराय बच्चन की रचनाओं को देवेश चतुर्वेदी ने आवाज दी। खास कर निराला का ‘लिखे बांधो न नाव इस ठांव बंधु , पूछेगा सारा गांव बंधु!’ गीत में तो उन्होंने कमाल कर दिया। पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी की याद में गीतों की नदी में बहती यह शाम यादगार शाम बन गई।

दरअसल हिंदी ही नहीं बल्कि भारतीय साहित्य के लिए श्रीनारायण चतुर्वेदी एक बहुत बड़ा अध्याय हैं। वह जिस विषय पर लिखते थे अपनी विहंगम और विस्तारित द्वष्टि सेे सम्पूर्ण सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक सहित समस्त परिवेशों को सम्मिलित करते हुये ही लिखते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा का लेखन वर्ष 1967 में प्रारंभ किया परन्तु अत्यधिक विस्तार से लिखने के कारण पूरी न कर सके।

चतुर्वेदी जी के लिये आत्मकथा का अर्थ स्वयं को परिधि में रखकर उस युग के नगर, मोहल्ले, व्यक्ति, घटनाओं का आंखेां देखा हाल प्रस्तुत करना था। इस विवरण में टिप्पणियां जोडक़र उन्होंने उस समय का सर्वांग चित्र उपस्थित कर दिया है। जनेऊ या बारात का वर्णन करते हुये उस समय के सारे रीति रिवाज भी सम्मिलित कर लिये गये हैं। इस द्वष्टि से उनकी आत्मकथा तद्युगीन समाज का व्यापक दस्तावेज है।

वे आत्मकथा लेखन को आत्मश्लाघा अथवा आत्मनिंदा के व्याज से आत्म विज्ञापन अथवा अहंकार कथा मानते थे इसलिये अपनी आत्मकथा लिखने के पक्ष में नहीं थे। पंडित विद्यानिवास मिश्र के बारंबार अनुरोध करने पर इसे लिखने को तैयार हुये परन्तु शीघ्र ही लिखना बंद कर बैठे। उन्हें इस प्रकार के लेखन की निरर्थकता का अनुभव होने लगा था। इस तथ्य को उन्होंने अपने लेख ‘क्या, क्यों और किसके लिये लिखूं?’

शीर्षक में व्यक्त भी किया है। बहरहाल इनकी लिखी इस अधूरी आत्मकथा का प्रकाशन वर्ष 1995 में प्रभात प्रकाशन से ‘परिवेश की कथा’ नामक पुस्तक के माध्यम से संभव हो सका।

पं. विद्यानिवास मिश्र ने श्रीनारायण चतुर्वेदी जी के बहुमुखी व्यक्तित्व का वर्णन करते हुये लिखा है- भैया साहब (श्रीनारायण चतुर्वेदी जी) में इतने व्यक्तित्व समाये हुये थे कि पारदर्शी सहजता के बावजूद उन्हें समझना आसान नहीं था। एक ओर वे बड़े विनोदी और चौमुखी स्वाभाविक मस्ती के मूर्तिमान रूप, दूसरी ओर सूक्ष्म से सूक्ष्म व्योरों में जाने वाले चुस्त शासक तथा मर्यादाओं के कठोर अनुशासन को स्वीकार करने वाले, अपने अधीनस्त कर्मचारियों के लिये आतंक, एक ओर काव्य-रसिक, गोष्ठी प्रिय और दूसरी ओर पैनी इतिहास-द्वष्टि से घटनाओं की बारीक जाँच करने वाला विष्लेषक।

एक ओर अपने आचार विचार में कठोर, दूसरी ओर अपने बड़े कमरे को खुली स्वतंत्रता का कमरा (सिविल लिबरटी हॉल) कहते थे, जहां पर खुली छूट थी किसी की भी धज्जी उड़ाई जाये। यह सब मुक्त भाव से हो और भीतर ही भीतर गूँज बनकर रह जाय। किसी आपसी कटुता को जन्म न दे। इस प्रकार अगणित विरोधाभास उनके व्यक्तित्व में थे। पर यह सब उनमें ऐसे रच बस गये थे कि हिंन्दी की कई पीढिय़ों के न बाबा बने, न ताऊ बने, बस भैया साहब बने रहे।

(प्रस्तुति - दयानन्द पांडेय)



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story