×

पंजाब में बिखर रहा आप का कुनबा, सूबे की राजनीति में बड़ा परिवर्तन

raghvendra
Published on: 5 April 2019 11:18 AM GMT
पंजाब में बिखर रहा आप का कुनबा, सूबे की राजनीति में बड़ा परिवर्तन
X

दुर्गेश पार्थसारथी

चंडीगढ़: पंजाब की राजनीति में हमेशा से ही दो दलों कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (बादल) का दबदबा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो यहां के लोग इन्हीं दो दलों पर भरोसा करते आए हैं। इतना जरूर है कि सूबे में भारतीय जनता पार्टी का भी अपना एक जनाधार है, लेकिन यह जनाधार शहरी क्षेत्रों में ही माना जाता है। फिलहाल भाजपा यहां अकाली दल की सहयोगी पार्टी के रूप में अमृतसर, गुरदासपुर, होशियारपुर तीन सीटों से चुनाव लड़ती रही है, लेकिन पिछले पांच सालों में सूबे की राजनीति में भारी परिवर्तन देखने को मिला है। यहां आम आदमी पार्टी ने भी अपनी ताकत का एहसास कराया है।

पिछले चुनाव में जीती थीं चार लोस सीटें

2014 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी लहर के बावजूद समाजसेवी अन्ना हजारे के दिल्ली आंदोलन के गर्भ से निकली आम आदमी पार्टी ने पंजाब की चार सीटें जीती थीं। जिस समय पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में पार्टी ने पंजाब में ताल ठोकी थी उस समय उसे भी यह आभास नहीं था कि राजनीति में न्यूकमर आप को इतनी बड़ी सफलता मिलेगी।

पंजाब में चार सांसदों की जीत से खुश पार्टी नेतृत्व में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी राज्य की सभी 117 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए। इस दौरान केजरीवाल ने सूबे में पार्टी को खड़ा करने के लिए यहां के 22 जिलों और गांवों की खाक छानी। यहीं नहीं उन्होंने कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह, अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और उनके साले बिक्रम सिंह मजीठिया को जमकर कोसा। यहीं नहीं पंजाब में बढ़ रहे नशा और नशा तस्करी के मामलों में सीधे-सीधे तत्कालीन राजस्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया पर आरोप मढ़ दिया।

इस मामले में केजरीवाल और उनकी टीम आज भी मानहानि के मुकदमे का सामना कर रही है। इन प्रयासों का पार्टी को इतना फायदा तो जरूर मिला कि सूबे की सभी सीटों पर जीत का दावा करने वाली आप अकाली-भाजपा और कांग्रेस को खत्म तो नहीं कर पाई, लेकिन पंजाब विधानसभा में विपक्ष का दर्ज जरूर पा गई। उस समय लोगों को यह जरूर लगा था कि पंजाब में आप राजनीति में तीसरा विकल्प हो सकती है मगर अब यह उम्मीद टूटती दिख रही है। तिनका-तिनका जोडक़र बनाए गए झाडू की तरह पार्टी भी तिनका-तिनकाकर बिखरती नजर आ रही है। यहां उल्लेखनीय है कि पार्टी का चुनाव निशान भी झाडू ही है।

विस चुनाव से ही बिखरने लगी थी पार्टी

2017 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान ही आप से अलग होकर सुच्चा सिंह छोटेपुर ने अपना पंजाब नाम से एक अलग पार्टी का गठन कर लिया। इस दौरान सुच्चा सिंह ने आप नेतृत्व पर पंजाब में पार्टी फंड में हेराफेरी और प्रदेश के नेताओं की अनदेखी का आरोप भी लगाया। इसके साथ ही उन्होंने विधानसभा चुनाव भी लड़ा। इसके बाद धीरे-धीरे पार्टी बिखरने लगी।

फुलका निलंबित तो खालसा हुए भाजपाई

पार्टी में अभी टूट का सिलसिला खत्म नहीं हुआ है। पंजाब में आप के 20 विधायक और चार सांसद थे। 20 विधायकों में से सुखपाल सिंह खैहरा अलग होकर अपनी पार्टी बना चुके हैं तो दिल्ली के सिख दंगा पीडि़तों के केस लडऩे वाले एडवोकेट एचएस फुलका ने भी पार्टी छोड़ दी है। वहीं फतेहगढ़ साहिब के सांसद हरिंदर सिंह खालसा ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब खालसा को भाजपा और नरेंद्र मोदी अच्छे लगने लगे हैं।

हम आपके हैं कौन

पांच साल तक आम आदमी पार्टी के सांसद रहे हरिंदर सिंह खालसा कमल पकड़ते ही कहने लगे-हम आपके हैं कौन। अब उन्हें अरविंद केजरीवाल तानाशाह और आप अलोकतांत्रिक पार्टी लगने लगी है। 331 दिन चलने वाले सदन में 252 दिन उपस्थित रहने वाले खालसा के भाजपा में शामिल होने के कयास करीब दो माह पहले ही लगाए जाने लगे थे। उल्लेखनीय है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हरिंदर सिंह खालसा को निलंबित कर दिया था। इसके बाद खालसा आप के खिलाफ खुलकर बोलने लगे थे। खालसा ने अपनी ही पार्टी के सांसद भगवंत सिंह मान के खिलाफ लोकसभा अध्यक्ष से यह कहते हुए अपनी सीट बदलने का आग्रह किया था कि भगवंत के मुंह से शराब की बदबू आती है, लिहाजा उनकी सीट बदली जाए। वह भगवंत के साथ नहीं बैठ सकते। यहां तक कि खालसा केजरीवाल को नौटंकीबाज तक कह चुके हैं।

कहीं बसपा जैसा न हो जाए हाल

सूबे में आम आदमी पार्टी के भीतर चल रही खींचतान और तोडफ़ोड़ रुकने का नाम नहीं ले रही है। चार सांसदों वाली आप में अब मात्र दो सांसद रह गए हैं और विधायक भी पार्टी छोड़ रहे हैं। पंजाब इकाई में उपजे इस असंतोष को देखते हुए राजनीतिक पंडितों का कहना है कि यदि यही हाल रहा तो आम आदमी पार्टी का हाल बसपा जैसा हो सकता है क्योंकि एकमात्र सक्रिय सांसद और हास्य कलाकार भगवंत मान का सिंहासन भी खतरे में नजर आ रहा है।

सुखपाल खैहरा और धर्मवीर गांधी ने बनाई पार्टी

आम आदमी पार्टी का चढ़ता सूरज पंजाब में अवसान की तरफ है। 2018 के अंत तक पंजाब विधानसभा आप के नेता प्रतिपक्ष रहे सुखपाल सिंह खैहरा पार्टी से बगावत कर अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं। वहीं पाटियाला से सांसद डॉ. धर्मवीर गांधी भी अपनी नई पार्टी का गठन कर बहुजन समाजपार्टी सहित अन्य दलों के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में ताल ठोंक रहे हैं। वहीं जमीनी स्तर पर भी कई कार्यकर्ता और पदाधिकारी भी आप का साथ छोड़ चुके हैं।

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story