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पंजाब में हर कोई खेल रहा है शह-मात का खेल

raghvendra
Published on: 14 May 2019 6:32 PM IST
पंजाब में हर कोई खेल रहा है शह-मात का खेल
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दुर्गेश पार्थ सारथी

अमृतसर: पंजाब की 13 सीटों पर लोकसभा का चुनाव सातवें चरण यानी 19 मई को होना है। यहां गर्मी अपने चरम पर है और मौसम भी आए दिन रंग बदल रहा है। मतदान की तिथि नजदीक आने के साथ ही चुनाव प्रचार चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया है। यदि हम यहां कि हॉट सीटों की बात करें तो कुल छह सीटें ऐसी हैं जिनपर पंजाब नहीं समूचे देश की निगाहें टिकी हैं। इनमें से चार सीटें तो ऐसी हैं जो सीधे तौर पर कांग्रेस, अकाली और आम आदमी पार्टी की राजनीतिक प्रतिष्ठा से जुड़ी हैं। इनमें से एक सीट ऐसी है जिसपर शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा जोखिम उठाने जा रहे हैं। उन्हें चुनौती दे रहे हैं उन्ही से सियासत के दांव-पेंच सीखने वाला शेर सिंह घुबाया।

पटियाला में कैप्टन की प्रतिष्ठा दांव पर

पंजाब में पटियाला रियासत की अपनी एक पहचान है। मौजूदा भारतीय राजनीति में भी इस रियासत के दो चेहरों मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनकी पत्नी व मनमोहन सिंह की सरकार में विदेश राज्य मंत्री रहीं परनीत कौर का अपना रुतबा है। इस शाही शहर में इसबार चुनाव मैदान में परनीत कौर चुनावी मैदान में है। इनके प्रचार की कमान खुद इनके पति और प्रदेश के मुखिया कैप्टन अमरिंदर सिंह ने संभाल रखी है। लेकिन उनके सामने डॉ.धर्मवीर गांधी सबसे बड़ी चुनौती है।

2014 के हुए लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में गांधी महारानी परनीत कौर को हरा चुके हैं। तब उन्हें 3,65,671 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस की परनीत कौर को 3,44,729 वोट मिले थे और वे दूसरे स्थान पर रहीं। पटियाला संसदीय क्षेत्र के तहत कुल 7 विधानसभाओं के मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। इसबार भी मुकाबला कड़ा है। उनके सामने 2019 में भी डेमोक्रेटिक एलाइंस से धर्मवीर गांधी खड़े हैं। वहीं शिअद से भी परनीत का मुकाबला है। ऐसे में यह सीट कांग्रेस के साथ-साथ शाही परिवार के लिए भी आत्मसम्मान का विषय बनी हुई है।

फिरोजपुर में सुखबीर का जोखिम भरा दांव

सियासत में कब कौन किसे चुनौती देने लगेगा, कहा नहीं जा सकता। कुछ ऐसा ही हाल फिरोजपुर लोकसभा क्षेत्र का भी है। फिरोजपुर पंजाब का सीमांत जिला है। मुगलों और अंग्रेजों के समय में अपनी खास पहचान रखने वाले इसी फिरोजपुर में महान क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की समाधि है तो 1971 के जंग की निशानियां भी। यह सीट सियासत में सबसे हॉट सीट मानी जा रही है। हॉट इसलिए कि यहां पर पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल अपने सियासी कॅरियर का सबसे बड़ा दांव खेल रहे हैं। पिछले चुनाव में शिअद के टिकट पर यहां से शेर सिंह घुबाया चुनाव जीते थे।

उन्हें कुल 4,87,932 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के सुनील जाखड़ को 4,56,512 वोट मिले थे और वह दूसरे स्थान पर थे मगर अब 2019 में परिस्थितियां बदल चुकी हैं क्योंकि घुबाया शिअद छोड़ कांग्रेस के टिकट पर इसी फिरोजपुर से मैदान में हैं। कहा जाता है कि सुखबीर सिंह बादल से ही शेर सिंह ने राजनीति के दांव पेंच सीखे हैं जो अब अपने ही राजनीतिक गुरु सुखबीर सिंह बादल पर आजमा रहे हैं। वैसे यह सीट शिरोमणि अकाली दल की परंपरागत सीट मानी जाती है। इस संसदीय क्षेत्र में कुल नौ विधानसभा के मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करते हैं।

बठिंडा में हरसिमरत को मिल रही कड़ी चुनौती

सूबे के यदि कुछ खास शहरों की बात की जाए तो उनमें से एक बठिंडा भी है। राजस्थान की सीमा से लगे इस शहर में करीब 1800 साल पहले भांटी राजाओं ने एक किले का निर्माण करया था और इन्हीं भांटी राजवंश के नाम पर इस शहर का नाम बठिंडा पड़ा। इतिहास के मुताबिक इसी किले में 1239 में अल्तुनिया ने रजिया सुल्तान को कैद कर लिया था और उसके प्रेमी याकूत का कत्ल कर दिया था। आज इसी ऐतिहासिक शहर का प्रतिनिधत्व सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की बहू हरसिमरत कौर कर रही है। यह सीट 2004 से शिरोमणि अकाली दल के पास है।

2014 के हुए लोकसभा चुनाव में हरसिमरत कौर को 5,14,727 वोट मिले थे, जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के मनप्रीत सिंह बादल को 4,95,323 वोट पड़े थे। यहां बताना जरूरी है कि मनप्रीत सिंह बादल प्रकाश सिंह बादल के भतीजे और मनप्रीत कौर के देवर हैं। इन्हें शिअद से निष्काषित कर दिया गया था। उन्होंने अपनी एक पार्टी भी बनाई थी जिसका कांग्रेस में विलय हो गया। 2009 में यहां से पहली बाद हरसिमरत कौर ने चुनाव लड़ा था और तब से अब तक जीतती आ रही हैं। इस सीट को 27 साल से कांग्रेस नहीं जीत पाई है। लेकिन इस बार उनके सामने पंजाबी एकता पार्टी के सुखपाल सिंह खैहरा, आम आदमी पार्टी की प्रोफेसर बलजिंदर कौर और अमरिंदर सिंह राजा वडिंग से सीधी टक्कर है। यानी मुकाबला चतुष्कोणीय है। ऐसे में यह सीट भी शिअद खास कर बादल परिवार के लिए प्रतिष्ठा का सबाल बनी हुई है।

संगरूर सीट बचाने में जुटे भगवंत

चर्चित सीटों में इसबार संगरूर की सीट भी है। 2014 में यह सीट आम आदमी पार्टी के भगवंत मान ने कांग्रेस से छीनी थी। 1952 में संगरूर लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी। तब से लेकर 2009 तक कभी कांग्रेस तो कभी अकाली दल को यहां से विजय मिलती रही। लेकिन मोदी लहर के बावजूद 2014 में आप के भगवंत मान ने कांग्रेस के बिजयइंदर सिंगला को शिकस्त देकर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। तब भगवंत को 5,33,237 वोट मिले थे, जबकि 3,21,516 वोट लेकर शिअद दूसरे और 1.81 लाख वोट लेकर कांग्रेस तीसरे नंबर पर रहीं। लेकिन 2019 के चुनाव में परिस्थितियां बदल गई हैं। इस बार आप के भगवंत मान के सामने शिअद-भाजपा ने परमिंदर सिंह ढींढसा को उतारा है तो कांग्रेस ने केवल सिंह ढिल्लों को।

भगवंत मान को जगह-जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इस लोकसभा सीट पर 9 विधान सभा के वोटर प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करते हैं। इनमें से पांच विधानसभा सीटों पर आप के विधायक हैं। अब देखना है कि इस बार भी भगवंत मान का जादू बरकरार है या नहीं।

होशियारपुर में भाजपा को कड़ी चुनौती

यह सीट इसलिए खास है क्योंकि यहीं से पहली बार 1996 में कांशीराम बीएसपी से सांसद बनकर संसद पहुंचे थे। लेकिन 1998 में बीजेपी के कमल चौधरी ने कांशी राम से यह सीट छीन ली। तब से इस सीट पर कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव जीतते रहे। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के विजय सांपला ने यह सीट कांग्रेस के मोहिंदर सिंह केपी से छीन ली थी। उस समय सांपला को 3,46,643 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के मोहिंदर सिंह को 3,33,061 वोट मिले थे। लेकिन इस बार बीजेपी ने सांपला की जगह फगवाड़ा के मौजूदा विधायक सोमनाथ कैंथ को टिकट दिया है । कैंथ एक तरफ कांग्रेस से तो दूसरी तरफ अंदरूनी कलह का भी सामना करना पड़ सकता है।

गुरदासपुर में सुनील-सनी कांटे की टक्कर

भाजपा सांसद विनोद खन्ना के निधन के बाद 2017 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने भाजपा प्रत्याशी स्वर्ण सलारिया को हरा कर इस सीट पर कब्जा किया था। उस समय जाखड़ को 4.99 लाख वोट मिले थे। इस बार सनी देओल के मैदान में उतरने से स्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं। सनी रोड शो के अलावा अपनी सभाओं में अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहे हैं। इस लोकसभा सीट पर नौ विधानसभा क्षेत्र के मतदाता प्रत्याशियों की जीत-हार तय करते हैं। मैदान में सनी देयोल के आने के बाद मुकाबला कड़ा है।

अमृतसर में दिलचस्प लड़ाई

सिख धर्म का काबा और काशी कहे जाने वाले अमृतसर की लड़ाई इसबार दिलचस्प लग रही है। वोटरों का कहना है कि उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा है कि इस बार कौन जीतेगायानी मुकाबला कांटे का है। वैसे यह सीट जीतना भाजपा के लिए खोया रुतबा हासिल करने के समान है। इस सीट पर शुरू से कांग्रेस का कब्जा रहा है, लेकिन 2004 लोकसभा चुनाव में भाजपा के नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस के दिग्गज नेता रघुनंदन लाल भाटिया को हराकर यह सीट भाजपा की झोली में डाल दी थी। 20014 तक भाजपा का रुतबा कायम रहा।

2014 के हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा के अरुण जेटली को हरा कर भाजपा का विजय रथ रोक दिया। इसके बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के पंजाब का सीएम बनने के बाद 2017 में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस ने अपनी बादशाहत बनाए रखी और यहां के लोगों ने गुरजीत सिंह औजला को अपना सांसद बनाया। लेकिन इसबार औजला के लिए मुकाबला टफ है क्योंकि उनके सामने भाजपा ने केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी को उतारा है। अब देखना है कि अमृतसर की जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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