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पेरियार की पुण्यतिथि: दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, राजनेता व समाज सुधारक आज भी प्रसंगिक है
समाज की दशा देख द्रवित होने वाले समाज सुधारक पेरियार ने समाजिक व्यवस्था में बदलाव के लिए अपने जीवन में कदम कदम पर लड़ाई लड़ी। जीवन भर न्याय के लिए तत्कालीन व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन करते रहें।समाज में चेतना के केंद्र बिंदु बने।जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष बने,‘तमिलनाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया, असहयोग आंदोलन में कूदे और 94 वर्ष की एक लम्बी उमर गुजारने के बाद चिर निद्रा में सो गए।
नई दिल्ली: समाज की दशा देख द्रवित होने वाले समाज सुधारक पेरियार ने समाजिक व्यवस्था में बदलाव के लिए अपने जीवन में कदम कदम पर लड़ाई लड़ी। जीवन भर न्याय के लिए तत्कालीन व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन करते रहें।समाज में चेतना के केंद्र बिंदु बने।जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष बने,‘तमिलनाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया, असहयोग आंदोलन में कूदे और 94 वर्ष की एक लम्बी उमर गुजारने के बाद चिर निद्रा में सो गए। पेरियार की प्रासंगिकता आज इसी बात से बढ़ जाती है कि समाज में आज भी समाज में वो सभी मुददें जीवित है जिनसे लड़ने में पेरियार ने अपना जीवन गुजार दिया।पेरियार रामास्वामी नायकर इस देश के इतिहास के आधुनिक युग में विज्ञान बोध और तार्किकता के एक ऐसे क्रांतिकारी विचारक थे जिन्होंने समाज के दलित पिछड़े समुदाय को सम्मान से जीने और समाज में बराबर के अधिकार पाने का रास्ता सफलतापूर्वक दिखाया।
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सच्ची रामायण
पेरियार एक तमिल राष्ट्रवादी, राजनेता व समाज सुधारक थे। वे आजीवन हिंदुत्व व जातिप्रथा तथा जाति आधारित भेदभाव का विरोध करते रहे। 17 सितम्बर 1879 को जन्मे और 24 दिसम्बर 1973 को निर्वाण हुये। इनका पूरा नाम इरोड वेंकट नायकर रामासामी जिन्हें आदर व सम्मान से लोग ‘पेरियार’ (पेरियार का तमिल में अर्थ सम्मानित व्यक्ति है)कहते थे।पेरियार के मन में बचपन से ही धार्मिक उपदेशों में आये तथ्यों की प्रामाणिकता पर सवाल उठते और वे उसे उसी तरह उठाते भी रहते। वे हर बात को तर्क की कसौटी पर बिना कसे मानने को तैयार न होते। पेरियार की चर्चा उनकी लिखी ‘सच्ची रामायण’ के बिना अधूरी है। इस किताब पर काफी विवाद हुए। मूल रूप से तमिल में लिखी यह किताब राम सहित रामायण में आये तमाम नायकों को खलनायक के रूप में पेश करती है। पेरियार की स्थापना है कि राम आर्यों के प्रतिनिधि हैं जिन्होंने दक्षिण के द्रविड़ों का संहार किया और जिन्हें राक्षस कहा गया।
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पेरियार का जन्म 17 सितंबर, 1879 ईस्वी में तत्कालीन मद्रास प्रांत व वर्तमान तमिलनाडु के इरोड में एक संपन्न परम्परावादी परिवार में हुआ। आपके पिता वेंकटप्पा नायडू और मां का नाम थायामल्ल था।पेरियार के पिता एक धनी व्यापारी थे। 1885 यानी 6 वर्ष की अवस्था में स्थानीय स्कूल में दाखिला हुया और कुछ वर्ष लगभग 5 साल पढने के बाद उन्हें अपने पिता के व्यापार में हाथ बटाने में लगना पड़ा। पिता चूँकि धार्मिक प्रवृत्ति के थे इसलिए उनके घर पर वैष्णव संतों का आना जाना व भजन तथा धार्मिक उपदेशों का क्रम चलता रहता।1898 में 19 वर्ष की आयु में 13 वर्ष की नागमल्ल से पेरियार का विवाह हुआ। इनकी पत्नी ने भी इनके विचारों से प्रभावित होकर उनको अपना लिया और पेरियार को वैचारिक लड़ाई में हमेशा पत्नी का साथ मिला।
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एक विवाद के चलते पेरियार को अपना घर छोड़ना पड़ा और वे काशी चले गए। वहाँ एक दिन भूख लगने पर निःशुल्क भोज में गए, जहां उन्हें जाने के पश्चात पता चला कि यह भोज सिर्फ ब्राह्मणों के लिए है और दूसरे इसे नहीं कर सकते। उन्हें वहाँ धक्का मारकर अपमानित किया गया। माना जाता है कि अपमान के इस अनुभूति के बाद ही वे रुढ़िवादी हिंदुत्व के घोर विरोधी हो गए।
देवी देवताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है
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पेरियार स्पष्ट कहते थे ‘दुनिया के सभी संगठित धर्मों से मुझे सख्त नफरत है।’ यही नहीं उनका तो यह भी कहना था कि ‘शास्त्र, पुराण और उनमें दर्ज देवी देवताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है, क्योंकि वह सारे के सारे दोषी हैं और उनको जलाने तथा नष्ट करने के लिए मैं जनता से अपील करता हूँ।’
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यूनेस्को ने उन्हें नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन के पिता, अज्ञानता, अंधविश्वास और बेकार के रीति रिवाज का दुश्मन कहा है।धर्म के आधार पर होने वाले शोषण और भेदभाव के मूल कारण उन धार्मिक सिद्धांतों में उन्हें बहुत पहले ही दिख गए थे। धीरे-धीरे वे हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में आये परस्पर विरोधी व बेतुकी बातों का माखौल भी उड़ाने लगे।
असहयोग आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी
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इरोड के नगरपालिका प्रमुख भी बने
पेरियार एक मंदिर के न्यासी का पदभार भी सम्भाला तथा इरोड के नगरपालिका प्रमुख भी बने।1919 में सी राजगोपालचारी के अनुरोध व पहल पर वे कांग्रेस के सदस्य बने। इसके बाद 1920 के असहयोग आन्दोलन में काफी सक्रिय भागीदारी की। 1922 के तिरुपुर अधिवेशन में वे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की वकालत की।
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कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया
कांग्रेस द्वारा संचालित प्रशिक्षण शिविरों में ब्राह्मण प्रशिक्षक द्वारा गैर ब्राह्मण छात्रों के साथ भेदभाव वाले व्यवहार ने पेरियार को आहत किया। वे छुआछूत व वर्ण व्यवस्था से जुड़े अत्याचारों के प्रति कांग्रेस नेताओं के नर्म रवैये से भी आहत थे। 1925 के कांग्रेस के कांचीपुरम अधिवेशन में शूद्रों व अतिशूद्रों की शिक्षा और उनके रोजगार से जुड़ा प्रस्ताव रखा जो पारित न हो सका और जिसके परिणामस्वरूप पेरियार ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया।
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तमिल साप्ताहिकी ‘कुडी अरासु’अंग्रेजी में एक जर्नल ‘रिवोल्ट’ का प्रकाशन
पेरियार ने ‘आत्म सम्मान’ आन्दोलन के जरिए लड़ायी लड़ी।‘आत्म सम्मान’ आन्दोलन का मुख्य लक्ष्य था गैर ब्राह्मण द्रविड़ों को उनके सुनहरे अतीत पर अभिमान कराना। आन्दोलन के प्रचार के लिए उन्होंने तमिल साप्ताहिकी ‘कुडी अरासु’ जिसका प्रकाशन 1925 में और अंग्रेजी में एक जर्नल ‘रिवोल्ट’ का प्रकाशन (1928) शुरू किया। यह आन्दोलन जाति व्यवस्था की समाप्ति व नई वैवाहिक व सामाजिक व्यवस्था की रचना पर आधारित था।
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‘तमिलनाडु तमिलों के लिए’ का नारा
1937 में सी राजगोपालचारी तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी के मुख्यमंत्री बने और उन्होंने स्कूलों में हिंदी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी। इसके विरोध में तत्कालीन जस्टिस पार्टी, तमिल राष्ट्रवादी नेताओं व पेरियार ने धरना शुरू किया। 1938 में कई नेता गिरफ्तार हुए। इसी साल पेरियार ने हिंदी के विरोध में ‘तमिलनाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया।