पीएम मोदी की जाति पर उठा बवाल तथ्यों को झुठलाने की कोशिश

लोकसभा चुनाव में अपने अभियान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार कह रहे हैं कि उन्हें पिछड़ा वर्ग का होने के कारण निशाना बनाया जा रहा है। वह खुद को पिछड़ी जाति का बताते हैं। मोदी ने कई बार कहा है कि पिछड़ा होने की वजह से, हम पिछड़ों को अनेक बार ऐसी परेशानियां झेलनी पड़ी हैं।

Rishi
Published on: 17 April 2019 2:32 PM GMT
पीएम मोदी की जाति पर उठा बवाल तथ्यों को झुठलाने की कोशिश
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रामकृष्ण वाजपेयी

लोकसभा चुनाव में अपने अभियान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार कह रहे हैं कि उन्हें पिछड़ा वर्ग का होने के कारण निशाना बनाया जा रहा है। वह खुद को पिछड़ी जाति का बताते हैं। मोदी ने कई बार कहा है कि पिछड़ा होने की वजह से, हम पिछड़ों को अनेक बार ऐसी परेशानियां झेलनी पड़ी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस और उसके साथियों ने मेरी हैसियत बताने वाली, मेरी जाति बताने वाली बातें कही हैं।

मोदी ने आगे कहा कि कांग्रेस के नामदार ने पहले चौकीदार चोर है कहा। फिर कहा सभी चोरों का सरनेम मोदी है। और अब पूरे पिछड़े समाज को ही चोर कहने लगे हैं।

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लोकसभा चुनाव का दूसरा चरण खत्म होने से पहले प्रधानमंत्री मोदी की जाति को लेकर सवाल उठ रहे हैं। जिसमें यह भी कहा जा रहा है कि मोदी की जाति सवर्ण से ओबीसी बनी थी। मोदी की जाति को लेकर आरोप प्रत्यारोप का एक नया सिलसिला शुरू हो गया है।

नरेंद्र मोदी पर यह आरोप है कि वह जिस घांची जाति में आते हैं उसे 2002 में पिछड़ी जाति में शामिल किया गया। और उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।

जबकि गुजरात सरकार का स्पष्ट कहना है कि घांची समाज 1994 से गुजरात में ओबीसी में शामिल है।

इसके विपरीत गुजरात के कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल इस आरोप पर अड़े हैं कि कि मोदी 2001 में मुख्यमंत्री बने और राजनीतिक लाभ लेने के लिए अपनी जाति को पिछड़ी जाति में डाल दिया। इसके समर्थन में वह आरटीआई का हवाला देते हैं।

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न्यूजट्रैक ने जब पूरे मामले की गहराई में जाकर पड़ताल की तो सब साफ हो गया।

पड़ताल में यह बात सामने आई कि न तो 25 जुलाई 1994 को जारी अधिसूचना की बात गलत है और न ही 2002 में गुजरात सरकार द्वारा जारी परिपत्र। दोनो ही सरकारी दस्तावेज हैं। और 2002 में जारी पत्र 1994 की अधिसूचना का पूरक है।

दरअसल 1994 में घांची बिरादरी को ओबीसी में शामिल किया गया उस समय उसकी उप जाति मोढ छूट गई थी या शामिल नहीं हो पाई थी। कारण जो भी रहे हों। इसे संयोग भी कह सकते हैं कि 2002 में जिस समय नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे उस समय उस गलती को सुधार लिया गया।

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हालांकि आलोचक मोढ़ घांची बिरादरी को समृद्ध बताते हुए इस बात की आलोचना करते हैं कि इस बिरादरी को ओबीसी का लाभ देने की जरूरत नहीं थी। और इस विचार के लोग नरेंद्र मोदी की मंशा पर सवाल भी उठा रहे हैं। आधे अधूरे तथ्यों के साथ।

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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