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कविता: आ गये फिर दिवस कातिक क्वार के, सिलसिले दर सिलसिले त्योहार के!

tiwarishalini
Published on: 15 Sept 2017 1:40 PM IST
कविता: आ गये फिर दिवस कातिक क्वार के,  सिलसिले दर सिलसिले त्योहार के!
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Ravisamkar Pandey

आ गये फिर दिवस कातिक क्वार के

सिलसिले दर सिलसिले त्योहार के!

भोर निकली ओस में जैसे नहाकर

देखते ही मुझे ठिठकी अचकचा कर

दृश्य अद्भुत प्रकृह्यति के अभिसार के!

दिन धुले से तरोताजा और टटके

मेघ नभ मे दिखें भूले और भटके

गहगहाये फूल हरसिंगार के!

सुआपंखी रंग सर चढ़ बोलता है

हरा पारावार अहरह डोलता है

दिन फिरे फिर बाजरे के ज्वार के!

आ गये फिर दिवस कातिक क्वार के!!



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tiwarishalini

tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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