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कविता: बाजत अनंद बधाई अवध में, कहीं भी, कभी भी, जन्म, अन्नप्राशन, जनेऊ
बाजत अनंद बधाई अवध में
कहीं भी, कभी भी
जन्म, अन्नप्राशन, जनेऊ और नहछू
राम के नाम पर ही होते हैं
सब वर राम हैं हर वधू सीता है
रमुआ की मड़ई में
सीली लकड़ी से रोटी सेंकती सीता
चूल्हे पर टपक रहा आसमान
जन-जन में राम
राम खेलावन, राम लाल
रामकिशन, बलराम
थल-थल में राम
रामगढ़, रामसराय
रामबाड़ा, कौड़ीराम
रामफल और सीताफल
उनको खाए राम चिरैय्या
गण राज्य, गणतंत्र का लक्ष्य
राम राज्य
राम की खंझड़ी से
ग्राम्य गीत सोहर तक
रामलीला मंचन से
रामकथा बैले तक
‘‘रमंते योगिनाम्’’ से
‘‘शंबूक’’ सर्जन तक
भारतीय संगीत, कला, साहित्य
राम के साथ-साथ यात्रा करते हैं
कौन सा पड़ाव है संस्कृति विकास का
जहां राम का सानिध्य न मिला
कृष्ण जमुना हैं राम गंगा हैं
रामविरोधी पक्ष, इस देश का पक्ष नहीं
कला का लक्ष्य नहीं
राम,
उसे परखने के लिए
जितनी दुरबीन लगाओगे
उतने ही अंधे होते जाओगे
रावण पर विजय उसकी योग्यता का साक्ष्य नहीं
लोक प्रिय होते हुए भी
विद्रोही नहीं, अंधवचनबद्व
सहज सरलता, सरलता सहजता
‘‘शंबूक’’ को मारना ही चाहते
तो ‘‘सबरी’’ के बेर न खाते
धन्य हैं
अवगुणी गुणदम्भियों के लिए निगुर्ण
गुणग्राही अकिंचन के लिए सगुण
प्रभुप्रसाद की मानसरोवर जिसने नहीं देखी
वह तो कहेगा
‘हंस कीड़े खाता है’
के.पी. मिश्र