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कविता: बुलाती है जो हर बार, बादल के चंद टुकड़े, बेसबब हवा के संग झूमते

raghvendra
Published on: 6 Oct 2017 4:48 PM IST
कविता: बुलाती है जो हर बार, बादल के चंद टुकड़े, बेसबब हवा के संग झूमते
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ममता शर्मा

बुलाती है जो हर बार

बादल के चंद टुकड़े,

बेसबब हवा के संग झूमते,

जाने क्या कहते

जाने क्या सुनते

ये कैसा रिश्ता है

दरमियान उनके या

कोई एहसास की डोरी है

जो बाँधे है जबरन या

चाहत है कोई कल की

उलझी-उलझी सी

कुछ सुलझी- सुलझी सी

बंद किये हमने कई बार

वक्त के दरवाज़ों को

समझाया कितनी बार

न बांधो मुझे

अपने मोह-पाश में

पर अपने भोले चेहरे पे

मोहिनी सी मुस्कान लिए

आ जाती हैं यादें कल की

कोई नया पैगाम लिए

हवा के ठंढे झोकों में

खुशबू का एहसास लिए

जी चाहे खोल दूं

दरवाजों को सारे फिर

छू लूँ हौले से खुशबू भरे

एहसास को

पर ये भी ख़बर है कि

ये है इक मृग तृष्णा

बुलाती है जो हर बार

मुश्तकिल सी ख़ामख़ाह



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raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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