कविता: अधगले पंजरों पर, भूकंप के बाद ही, धरती के फटने पर

raghvendra
Published on: 29 Dec 2017 12:15 PM GMT
कविता: अधगले पंजरों पर, भूकंप के बाद ही, धरती के फटने पर
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अभिमन्यु अनत

अधगले पंजरों पर

भूकंप के बाद ही

धरती के फटने पर

जब दफनायी हुई सारी चीजें

ऊपर को आयेंगी

जब इतिहास के ऊपर से

मिट्टि की परतें धुल जायेंगी

मॉरीशस के उन प्रथम

मजदूरों के

अधगले पंजरों पर के

चाबुक और बाँसों के निशान

ऊपर आ जायेंगे

उस समय

उसके तपिश से

द्वीप की संपत्तियों पर

मालिकों के अंकित नाम

पिघलकर बह जायेंगे

पर जलजला उस भूमि पर

फिर से नहीं आता

जहाँ समय से पहले ही

उसे घसीट लाया जाता है

इसलिए अभी उन कुलियों के

वे अधगले पंजार पंजर

जमीन की गर्द में सुरक्षित रहेंगे

और शहरों की व्यावसायिक संस्कृति के कोलाहल में

मानव का क्रंदन अभी

और कुछ युगों तक

अनसुना रहेगा।

आज का कोई इतिहास नहीं होता

कल का जो था

वह जब्त है तिजोरियों में

और कल का जो इतिहास होगा

अधगले पंजरों पर

सपने उगाने का।

आशाएँ

जब दिन-दहाड़े

गाँव में प्रवेश कर

वह भेड़िया खूँख्वार

दोनों के उस पहले बच्चे को

खाकर चला गया

दिन तब रात बना रहा

गाँव के लोग दरवाजे बंद किए

रहे रो-धोकर अकेले में

एक दूसरे को दूसरे से

आश्वासन मिला ।

कोई बात नहीं अभी तो पड़ी है जिंदगी

जन्मा लेंगे हम बच्चे कई

झाडिय़ों के बीच पैने कानों से

एक दूसरे भेड़िए ने यह सुना

अपनी लंबी जीभ लपलपाता रहा।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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