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कविता: ओंठों पर मुस्कान

raghvendra
Published on: 13 July 2018 4:21 PM IST
कविता: ओंठों पर मुस्कान
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सुन्दर फूलों सी खिली, ओंठों पर मुस्कान।

मन में छवियाँ प्रीत की, मत बनना अंजान।

मत बनना अंजान, बात अधरों पर आए।

आँखों के मधु जाम, देखिए छलके जाए।

रंग बिरंगे पुष्प, पुष्प के साथ भली सी।

मन्द मन्द मुस्कान, खिले सुन्दर फूलों सी।

खूब फैलता जा रहा, फूलों का व्यापार।

किन्तु कृत्रिम हो रहा, प्रेम और व्यवहार।

प्रेम और व्यवहार, अर्थ है इन पर भारी।

सभी उलझनों बीच, मुख्य पात्र बनी नारी।

बात यही है सत्य, हँसी में है कृत्रिमता।

फिर भी यह बाजार, जा रहा खूब फैलता।

सबके मन भाते बहुत, रंग बिरंगे फूल।

किंतु इनके साथ ही, रहते भी हैं शूल।

रहते भी हैं शूल, स्मरण रखना है सबको।

इसीलिए कुछ दूर, चाहिए रखना इनको।

बात यही है सत्य, निकट आते मुस्काते।

जादू करे कमाल, तभी सबके मन भाते।

सुरेन्द्रपाल वैद्य



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raghvendra

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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