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कविता : प्रेमपत्र को विदाई : विदा, प्रिय प्रेमपत्र, विदा, यह उसका आदेश था

raghvendra
Published on: 2 Dec 2017 3:46 PM IST
कविता : प्रेमपत्र को विदाई : विदा, प्रिय प्रेमपत्र, विदा, यह उसका आदेश था
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विदा, प्रिय प्रेमपत्र, विदा, यह उसका आदेश था

तुम्हें जला दूँ मैं तुरन्त ही यह उसका संदेश था

कितना मैंने रोका खुद को कितनी देर न चाहा

पर उसके अनुरोध ने, कोई शेष न छोड़ी राह

हाथों ने मेरे झोंक दिया मेरी खुशी को आग में

प्रेमपत्र वह लील लिया सुर्ख लपटों के राग ने

अब समय आ गया जलने का, जल प्रेमपत्र जल

है समय यह हाथ मलने का, मन है बहुत विकल

भूखी ज्वाला जीम रही है तेरे पन्ने एक-एक कर

मेरे दिल की घबराहट भी धीरे से रही है बिखर

क्षण भर को बिजली-सी चमकी, उठने लगा धुआँ

वह तैर रहा था हवा में, मैं कर रहा था दुआ

लि$फा$फे पर मोहर लगी थी तुम्हारी अंगूठी की

लाख पिघल रही थी ऐसे मानो हो वह रूठी-सी

फिर खत्म हो गया सब कुछ, पन्ने पड़ गए काले

बदल गए थे हल्की राख में शब्द प्रेम के मतवाले

पीड़ा तीखी उठी हृदय में और उदास हो गया मन

जीवन भर अब बसा रहेगा मेरे भीतर यह क्षण।।

- अलेक्जेंडर पुश्किन

raghvendra

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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