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कविता: कलम की मार से मचा हाहाकार- सबकी अपनी सोच है

raghvendra
Published on: 6 July 2018 4:54 PM IST
कविता: कलम की मार से मचा हाहाकार- सबकी अपनी सोच है
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नीरज त्यागी

सबकी अपनी सोच है,सबका अपना मन।

लगती हो लगे बुरी,पर हम लिखते जीवन।।

हम लिखते जीवन,किसी को क्यों चुभता है।

चुभन कलम की तेज,जैसे भाला चुभता है।।

भाला चलता है ऐसे,जैसे धरती पर चलता है हल।

जब हल चलेगा दिल से,तब खूब उगेगी फसल।।

फसल उगेगी जब,फूल संग कांटे भी होंगे।

किसी को लगे बुरा तो लगे,कलम के चांटे तो होंगे।।

चांटों मे सच्चाई ,सच्चाई से क्यों डरता है।

जो झूठ से लुटे वाहवाही,बस वो ही डरता है।।

डरता है जो डरे, कलम कहाँ डरती है।

छलता है जो छले, कलम तो यूं हीं चलती है।।

चलती है जब कलम, कोई भी सामने ना आता।

बदलता रंग जो गिरगिट,वो पहले छुप जाता।।

छुपना हुनर चूहों का,वो कभी भी बाज ना आता।

चलना हुनर कलम का, भला वो कैसे रुक जाए।।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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