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कविता: अंकुर- जल जाने देना होगा, सारे खर-पतवार, जंगली पौधों को
अगर लगाना है,
एक सुंदर बाग मन-मन्दिर में,
एक बार तो आग लगानी होगी,
जल जाने देना होगा, सारे खर-पतवार, जंगली पौधों को,
मिट जाने देना होगा खाक में,
सारे झाड़ - झंखाड़ और परजीवी, जहरीली घासों को,
जो अवरुद्ध कर देते हैं,
फूलों को विकसित होने से,
नया फूटते अंकुर को दाब देते हैं,
वंचित कर देते हैं, पोषक तत्वों से,
हवा, पानी, सब धूप, हड़प खुद लेते हैं,
एक बार तो दृढ़ता और सख्ती का हल चलाना होगा,
अगर सजाना है,
एक सुन्दर बाग मन-मंदिर में,
एक बार तो आग लगानी ही होगी,
भिगोना होगा आँसुओं की धारा से,
बंजर पड़ी ज़मीं को,
गल जाने देना होगा,
शेष बची सूखी जड़ों को,
मिट्टी की उर्वरता की शक्ति तभी बढ़ेगी,
नये अंकुर फूटेंगे तभी,
मुस्कुराएँगे सब,
शिशु पौधे जीवन के नव उमंग से,
महकेंगे फूल बाग़ में,
सुंदर बगिया तभी सजेगी।
मनोरंजन कुमार तिवारी
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