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कविता : चलो फिर से मुस्कुराएँ, चलो फिर से दिल जलाएँ

raghvendra
Published on: 5 Jan 2018 11:57 AM
कविता : चलो फिर से मुस्कुराएँ, चलो फिर से दिल जलाएँ
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फैज़ अहमद फैज़

चलो फिर से मुस्कुराएँ

चलो फिर से दिल जलाएँ

जो गुजर गयी हैं रातें

उन्हें फिर जगा के लाएँ

जो बिसर गयी हैं बातें

उन्हें याद में बुलाएँ

चलो फिर से दिल लगाएँ

चलो फिर से मुस्कुराएँ

किसी शह-नशीं पे झलकी

वो धनक किसी कबा की

किसी रग में कसमसाई

वो कसक किसी अदा की

कोई हर्फे-बे-मुरव्वत

किसी कुंजे-लब से फूटा

वो छनक के शीशा-ए-दिल

तहे-बाम फिर से टूटा

ये मिलन की, ना-मिलन की

ये लगन की और जलन की

जो सही हैं वारदातें

जो गु$जर गई हैं रातें

जो बिसर गई हैं बातें

कोई इनकी धुन बनाएँ

कोई इनका गीत गाएँ

चलो फिर से मुस्कुराएँ

चलो फिर से दिल लगाएँ

raghvendra

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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