कविता: बसन्त, हवा है अब्र है और सैर-सब्ज़ा-ज़ारे-बसन्त

raghvendra
Published on: 2 Feb 2018 11:26 AM GMT
कविता: बसन्त, हवा है अब्र है और सैर-सब्ज़ा-ज़ारे-बसन्त
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बहादुर शाह जफर

हवा है अब्र है और सैर-सब्ज़ा-ज़ारे-बसन्त

शिगुफ़्ता क्योंऔ न हो दिल देखकर बहारे-बसन्त

ख़बर बसन्त की भी कुछ तुझे है ऐ साक़ी!

पियाला भर, कि है फिर आमदे-बहारे-बसन्त

किया बसन्त के मिलने का वादा जो उसने

तमाम साल रहा हमको इन्तज़ारे-बसन्त

समझ न सेहने-चमन में इसे गुले-नरगिस

झुकी हुई है ‘जफर’ चश्म- पुर-ख़ुमारे-बसन्त

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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