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कविता: बसन्त, हवा है अब्र है और सैर-सब्ज़ा-ज़ारे-बसन्त
बहादुर शाह जफर
हवा है अब्र है और सैर-सब्ज़ा-ज़ारे-बसन्त
शिगुफ़्ता क्योंऔ न हो दिल देखकर बहारे-बसन्त
ख़बर बसन्त की भी कुछ तुझे है ऐ साक़ी!
पियाला भर, कि है फिर आमदे-बहारे-बसन्त
किया बसन्त के मिलने का वादा जो उसने
तमाम साल रहा हमको इन्तज़ारे-बसन्त
समझ न सेहने-चमन में इसे गुले-नरगिस
झुकी हुई है ‘जफर’ चश्म- पुर-ख़ुमारे-बसन्त
raghvendra
राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।
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