TRENDING TAGS :
कविता: बसन्त, हवा है अब्र है और सैर-सब्ज़ा-ज़ारे-बसन्त
बहादुर शाह जफर
हवा है अब्र है और सैर-सब्ज़ा-ज़ारे-बसन्त
शिगुफ़्ता क्योंऔ न हो दिल देखकर बहारे-बसन्त
ख़बर बसन्त की भी कुछ तुझे है ऐ साक़ी!
पियाला भर, कि है फिर आमदे-बहारे-बसन्त
किया बसन्त के मिलने का वादा जो उसने
तमाम साल रहा हमको इन्तज़ारे-बसन्त
समझ न सेहने-चमन में इसे गुले-नरगिस
झुकी हुई है ‘जफर’ चश्म- पुर-ख़ुमारे-बसन्त
Next Story