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कविता: वक्त गीला है चलो इसको निचोड़ें

raghvendra
Published on: 15 Jun 2018 3:46 PM IST
कविता: वक्त गीला है चलो इसको निचोड़ें
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वक्त गीला है चलो इसको निचोड़ें,

अरगनी में डाल इसको हम सुखा लें।

दर कदम दर बोझ, जीवन का उठाते,

गिर पड़ा है जो, चलों उसको उठा लें।

उसका कोई भी नहीं है, इस जहां में,

वो बहुत मायूस है, उसको निभा लें।

आपके नक्शे कदम, पर वो चलेगा,

मासूम है बच्चा, अभी इसको सिखा लें।

इससे पहले रूठ कर, वो दूर जाए,

आओ मिलकर हम उन्हें, फिर से मना लें।

दर्द क्रोनिक हो न जाए, मेरे भाई,

नासूरियत से पूर्व, हाकिम को दिखा लें।

और के बस की नहीं है, बात,

आप आगे आएं, खुद इसको संभालें।

डॉ. विभा खरे



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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