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कविता: अपने की प्रतीक्षा, अभी कहाँ अंकुर फूटे हैं, अभी कहाँ उत्साह भरा!

raghvendra
Published on: 5 Jan 2018 4:37 PM IST
कविता: अपने की प्रतीक्षा, अभी कहाँ अंकुर फूटे हैं, अभी कहाँ उत्साह भरा!
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मनोजकान्त

अभी कहाँ अंकुर फूटे हैं,

अभी कहाँ उत्साह भरा!

अभी कहाँ फागुन आया है,

अभी कहाँ है मुदित धरा !

ठहरो, ठहरो! अभी कहाँ--

गूंजा नवता का नवल गान;

अभी कहाँ बीते ठिठुरन--

सिहरन से सहमे-डरे बिहान!

रुको रंच प्रिय, करो प्रतीक्षा,

विविध रंग-रस-गंध लिये--

वृक्ष-पुष्प-कोंपल-पल्लव को,

खिलने दो नवछंद लिये ।

अभी तनिक धरती माता को

फूलों से लद जाने दो;

कोयल का कू-कू पंचम स्वर

मधुरस में घुल जाने दो।

नये साल की करो प्रतीक्षा,

आने दो ऋतुराज को;

जीवन के पतझर परास्त कर,

प्रकटे प्रिय मधुमास को।।



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raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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