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कविता: सपने, ...मन की तहों में कहीं छिपे रहते हैं सपने
राणा प्रताप सिंह
मन की तहों में
कहीं छिपे रहते हैं सपने
और घुस जाते हैं
गहराई नींद में
चुपचाप
बिना किसी आवाज के
सपनों का कोई सिर पैर
नहीं होता
तब भी
नींद खाली-खाली लगती है
बिना सपनों की
रात की दहलीज पर
खड़े रहते हैं देर तक सपने
और मौका देखते रहते हैं
बनाने के लिए नींद में अपनी जगह
सपनों में सावन होता है
और बैसाख भी
बादल होते हैं
फूल भी
आग
और पानी
दोनों रहते हैं
सपनों में साथ-साथ
सपने नींद को देते हैं
नई इच्छाएं।
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