कविता: सपने, ...मन की तहों में कहीं छिपे रहते हैं सपने

raghvendra
Published on: 10 Nov 2018 8:48 AM GMT
कविता: सपने, ...मन की तहों में कहीं छिपे रहते हैं सपने
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राणा प्रताप सिंह

मन की तहों में

कहीं छिपे रहते हैं सपने

और घुस जाते हैं

गहराई नींद में

चुपचाप

बिना किसी आवाज के

सपनों का कोई सिर पैर

नहीं होता

तब भी

नींद खाली-खाली लगती है

बिना सपनों की

रात की दहलीज पर

खड़े रहते हैं देर तक सपने

और मौका देखते रहते हैं

बनाने के लिए नींद में अपनी जगह

सपनों में सावन होता है

और बैसाख भी

बादल होते हैं

फूल भी

आग

और पानी

दोनों रहते हैं

सपनों में साथ-साथ

सपने नींद को देते हैं

नई इच्छाएं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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