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कविता: फिर भी हँसते फूल, मन में कितने अर्थ छुपा कर सहते वर्षा धूल
मन में कितने अर्थ छुपा कर सहते वर्षा धूल
फिर भी हँसते फूल
काँटों में रहना आदत है
रोज चुभन सहना आदत है
माला में गुँथ कर रहना है
क्यों दें इसको तूल
सबसे कहते फूल
भरी भीड़ में ,कोलाहल में
आशंकाओं की हलचल में
रहना है, तो रहना होगा
अपना सुख -दुख भूल
चुप-चुप रहते फूल
इस आभासी दुनिया से तो
थोड़ी-थोड़ी खुशबू ले लो
खालीपन भी भर जायेगा
नेह सुखों का मूल
कहें महकते फूल
मधु प्रधान
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