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कविता: फिर भी हँसते फूल, मन में कितने अर्थ छुपा कर सहते वर्षा धूल 

raghvendra
Published on: 30 Jun 2018 3:13 PM IST
कविता: फिर भी हँसते फूल, मन में कितने अर्थ छुपा कर सहते वर्षा धूल 
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मन में कितने अर्थ छुपा कर सहते वर्षा धूल

फिर भी हँसते फूल

काँटों में रहना आदत है

रोज चुभन सहना आदत है

माला में गुँथ कर रहना है

क्यों दें इसको तूल

सबसे कहते फूल

भरी भीड़ में ,कोलाहल में

आशंकाओं की हलचल में

रहना है, तो रहना होगा

अपना सुख -दुख भूल

चुप-चुप रहते फूल

इस आभासी दुनिया से तो

थोड़ी-थोड़ी खुशबू ले लो

खालीपन भी भर जायेगा

नेह सुखों का मूल

कहें महकते फूल

मधु प्रधान



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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