×

कविता, अस्तित्व की तलाश: गंगोत्री की गोद से निकल, पर्वत-पर्वत, उछल-उछल

raghvendra
Published on: 19 Jan 2018 10:35 AM
कविता, अस्तित्व की तलाश: गंगोत्री की गोद से निकल, पर्वत-पर्वत, उछल-उछल
X

निशा राय

गंगोत्री की गोद से निकल

पर्वत-पर्वत,उछल-उछल

करती कल-कल

बहती निश्छल

हर लेती सबके संताप

धो देती हूँ मन का पाप

छोड़ पहाड़ों की परछाईं

मै गंगा तेरे शहर में आई

खोया मैंने रूप निराला

श्वेत रंग मेरा हो गया काला

मैं जीवनदायिनी

खो रही अपना स्त्रीत्व

गुम हो रहा मेरा अस्तित्व

मैं भागीरथी कर रही प्रतिक्षा

कभी तो जागेगी

किसी भागीरथ की इ‘छा

मैं सुरसरि,

नहीं हूँ निराश मैं

डगर-डगर,नगर-नगर

भटक रही हूँ...

निर्मल बनने के प्रयास में

भटक रही हूँ....

स्वयं में स्वयं के

अस्तित्व की तलाश में...

स्वयं में स्वयं के

‘अस्तित्व की तलाश’ में....

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!