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कविता, मंजिल: हाथ पे रख हाथ क्यों बैठा है प्यारे, मंजिलें कब से खड़ीं बाँहे पसारे

raghvendra
Published on: 19 Jan 2018 10:23 AM GMT
कविता, मंजिल: हाथ पे रख हाथ क्यों बैठा है प्यारे, मंजिलें कब से खड़ीं बाँहे पसारे
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रमा प्रवीर वर्मा

हाथ पे रख हाथ क्यों बैठा है प्यारे

मंजिलें कब से खड़ीं बाँहे पसारे

ये सफर तुझको ही तय करना पड़ेगा

फिर भला तू रास्ता किसका निहारे

ठोकरों की अब नहीं परवाह करना

बस हवाओं के समझ लेना इशारे

क्या हुआ गर खार का मौसम हुआ तो

लौट आएँगी कभी फिर से बहारें

हौसलों की हाथ में पतवार है तो

दूर आँखों से नहीं होंगे किनारे

गम न कर तन्हाइयों का, देख भी ले

रात, चलते हैं अकेले ही सितारे

है जिन्हें खुद पर यकीं सबसे जियादा

जिंदगी में वे नहीं ढूंढें सहारे

डर नहीं उसको अँधेरे का जरा भी

चाँद सूरज रास्ता जिसका सँवारे

जब रमा थामेंगे दामन कोशिशों का

काम सब होंगे तभी पूरे हमारे

raghvendra

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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