×

कविता : मकान, आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है, आज की रात न...

raghvendra
Published on: 2 Dec 2017 2:17 PM IST

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है

आज की रात न फुटपाथ पे नींद आयेगी ।

सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो

कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी ।

ये जमीं तब भी निगल लेने पे आमादा थी

पाँव जब टूटती शाखों से उतारे हमने ।

इन मकानों को खबर है न मकीनों को खबर

उन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हमने ।

हाथ ढलते गये सांचे में तो थकते कैसे

नक्श के बाद नये नक्श निखारे हमने ।

की ये दीवार बलंद, और बलंद, और बलंद,

बाम-ओ-दर और जरा और सँवारे हमने ।

आँधियाँ तोड़ लिया करती थी शम्ओं की लवें

जड़ दिये इसलिये बिजली के सितारे हमने ।

बन गया कस्र तो पहरे पे कोई बैठ गया

सो रहे खाक पे हम शोरिश-ए-तामीर लिये ।

अपनी नस-नस में लिये मेहनत-ए-पैहम की थकन

बंद आंखों में इसी कस्र की तस्वीर लिये ।

दिन पिघलता है इसी तरह सरों पर अब तक

रात आंखों में खटकती है सियह तीर लिये ।

आज की रात बहुत गरम हवा चलती है

आज की रात न फुटपाथ पे नींद आयेगी ।

सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो

कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी ।

कैफी आजमी

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story