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कविता: अंतर्मन का आंकलन ...आज अपने ही अंतर्मन में झाँक रहा हूँ
नीरज त्यागी
आज अपने ही अंतर्मन में झाँक रहा हूँ।
आज फिर अपने आप को नाप रहा हूँ।।
आरोप दूसरे पर हर पल करता है ये मन।
क्यों ये अपना ही करता नही आंकलन ।।
क्यों ये दूसरों के कर्मों को तराजू में तोलता है।
दूसरे पलड़े में खुद को रखकर क्यों ना बोलता है।।
अपने कर्मों का पलड़ा ज्यादा झुक जाएगा।
दूसरे के कर्मों को खुद से ऊपर ही पायेगा।।
मन अब दूसरे पर घात लगाना छोड़ दे ।
क्यों होता परेशान अब,सब ऊपरवाले पर छोड़ दे।।
सब का आंकलन करना उसे खूब आता है।
आँखो पर बांधकर पट्टी फैसला करना उसे ना भाता है।।
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