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कविता: कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें, जीवन-सरिता की लहर-लहर

raghvendra
Published on: 22 Dec 2017 10:15 AM GMT
कविता: कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें, जीवन-सरिता की लहर-लहर
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भगवतीचरण वर्मा

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।

जीवन-सरिता की लहर-लहर,

मिटने को बनती यहाँ प्रिये

संयोग क्षणिक, फिर क्या जाने

हम कहाँ और तुम कहाँ प्रिये।

पल-भर तो साथ-साथ बह लें,

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।

आओ कुछ ले लें औ दे लें।

हम हैं अजान पथ के राही,

चलना जीवन का सार प्रिये

पर दु:सह है, अति दु:सह है

एकाकीपन का भार प्रिये।

पल-भर हम-तुम मिल हँस-खेलें,

आओ कुछ ले लें औ दे लें।

हम-तुम अपने में लय कर लें।

उल्लास और सुख की निधियाँ,

बस इतना इनका मोल प्रिये

करुणा की कुछ नन्हीं बूँदें

कुछ मृदुल प्यार के बोल प्रिये।

सौरभ से अपना उर भर लें,

हम तुम अपने में लय कर लें।

हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें।

जग के उपवन की यह मधु-श्री,

सुषमा का सरस वसन्त प्रिये

दो साँसों में बस जाय और

ये साँसें बनें अनन्त प्रिये।

मुरझाना है आओ खिल लें,

हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें।

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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