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कविता: मन से हारा, रोशनी अंधेरा ओढ़े खड़ी है...
रोशनी अंधेरा ओढ़े खड़ी है।
उम्मीदे जमीन पर पड़ी है।।
कदम पीछे की ओर पड़ रहे हैं।
भयानक साए आगे बढ़ रहे हैं।।
काल के पंजों में परिंदा फंसा है।
उडऩे की आस पर पंख बंधे हैं।।
काल के हाथों ये दम तोड़ जाएगा।
मन से हारा हुआ जान कैसे बचाएगा।।
तन से हारा तो फिर भी उठ जाएगा।
मन से हारा खुद से ही मात खायेगा।।
raghvendra
राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।
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