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कविता: दिन गाढ़े के आए, अगहन बीता बहुत सुभीता, पूस माघ मुंह  बाये 

raghvendra
Published on: 22 Dec 2017 3:35 PM IST
कविता: दिन गाढ़े के आए, अगहन बीता बहुत सुभीता, पूस माघ मुंह  बाये 
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रविशंकर पांडेय

दिन गाढ़े के आए

अगहन बीता बहुत सुभीता

पूस माघ मुंह बाये

दिन जाड़े के आये!

जूं न रेंगती रातों पर

दिन हिरन चौकड़ी जाता

पाले का मारा सूरज भी

दिन भर दांत बजाता,

धूप ललाई ज्यों भौजाई

लाज बदन पर छाये!

पड़े पुआलों पौ फट जाए

सझवट जमे मदरसों

दुपहरिया सोने सुगंध की

गांठ जोड़ती सरसों,

रात बितानी किस्सा कहानी

बैठ अलाव जलाये!

उठो! न पड़े गुजारा, दिन-

ठाकुर की चढ़ा अटारी

मरे किसानों की बैरी

इस जाड़े की महतारी

पठान छाप गाढ़े पर ही

महतो का जाड़ा जाये!

रामकहानी आगे अपनी

अब न बखानी जाये!!



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raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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