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कविता: कवियों का स्वाभिमान- कुछ भी कोई भी लिख दे

raghvendra
Published on: 4 Aug 2018 7:06 AM GMT
कविता: कवियों का स्वाभिमान- कुछ भी कोई भी लिख दे
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नीरज त्यागी

हक्के, बक्के, भौंचक्के शब्द मेरे हैं यार।

अक्ल नहीं है जिसे वो भी कलम ले के तैयार।।

शब्द मेरी कलम के आज बहुत शर्मिंदा हैं।

कुछ भी कोई भी लिख दे, पन्ने फिर भी जिंदा हैं।

कभी कभी लगता है,कलम कहीं छिपा दूँ।

कैसा कैसा पढऩा पढ़ रहा है,क्यों ना इसे दफना दूँ।।

कहाँ से अब नीरज (गोपालदास) से कवि आएंगे।

पता नहीं अब कैसे कैसे कवि कलम से पन्नों को खुजलायेंगे।।

हर कोई आज अपनी ढपली बजा रहा है।

अमृत का प्याला बता कर जहर पिला रहा है।।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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