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कविता : गणतन्त्री संकल्पों का परिणाम प्रतीक्षारत है
किस प्रवाह के चिंतन से भारत का भाग्य जगेगा
किस गाथा के वंदन से सबका आभार बढ़ेगा
किस इतिहास को साक्षी कर हम राष्ट्र गीत जाएंगे
किस योद्धा के आलिंगन में युद्ध जीत पाएंगे
किसे भुलाकर आजादी अपनो से हुई विरत है
संविधान में सपनों का संग्राम प्रतीक्षारत है।
सरोकार सावन की रिमझिम जब फुहार बन जाते
संस्कार से जीवन के सौरभ सारे मुस्काते
नदियाँ, झील, समंदर, पंछी सब हिलमिल कर गाते
मानव से मानव के रिश्ते पुष्प पल्लवित पाते
नहीं हुआ यह, आँखों में ही सपने क्षत - विक्षत हैं
शौर्य - समर की गाथा लेकर शाम प्रतीक्षारत है।
भारत के भावी की खातिर जिनके रहे समर्पण
कुछ सुहाग थे, कुछ राखी थी, कुछ गोदी का अर्पण
हसते हसते चूमे थे जिनकी खातिर वे फांसी
बलिदानो में ही दिखती थी उनको शिव की काशी
सत्ताओ के खेल, खेल ये कैसे किये नियत हैं?
भारत की भोली भाली आवाम प्रतीक्षारत है।
कसमे खाते, वादे करते, ध्वज फहराते रहते
राष्ट्रवंदना के स्वर भी ये अक्सर गाते रहते
सडको से संसद तक जाकर बड़ी कहानी कहते
जन मन देवता बता कर, प्रखर क्रान्ति सी बहते
लेकिन इस दोहरे चरित की माया बड़ी पिरत है
गणतन्त्री संकल्पों का परिणाम प्रतीक्षारत है।