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कविता: कमरे में धूप... हवा और दरवाजों में बहस होती रही

raghvendra
Published on: 26 Oct 2018 5:20 PM IST
कविता: कमरे में धूप... हवा और दरवाजों में बहस होती रही
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कुँवर नारायण

हवा और दरवाजों में बहस होती रही,

दीवारें सुनती रहीं।

धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी

किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही।

सहसा किसी बात पर बिगड़ कर

हवा ने दरवाजे को तड़ से

एक थप्पड़ जड़ दिया !

खिड़कियाँ गरज उठीं,

अखबार उठ कर खड़ा हो गया,

किताबें मुँह बाये देखती रहीं,

पानी से भरी सुराही फर्श पर टूट पड़ी,

मेज के हाथ से कलम छूट पड़ी।

धूप उठी और बिना कुछ कहे

कमरे से बाहर चली गई।

शाम को लौटी तो देखा

एक कुहराम के बाद घर में खामोशी थी।

अँगड़ाई लेकर पलंग पर पड़ गई,

पड़े-पड़े कुछ सोचती रही,

सोचते-सोचते न जाने कब सो गई,

आँख खुली तो देखा सुबह हो गई।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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