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कविता, वसंतागम: गा रे गा हरवाहे दिल चाहे वही तान, खेतों में पका धान

raghvendra
Published on: 19 Jan 2018 5:11 PM IST
कविता, वसंतागम: गा रे गा हरवाहे दिल चाहे वही तान, खेतों में पका धान
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प्रभाकर माचवे

गा रे गा हरवाहे दिल चाहे वही तान

खेतों में पका धान

मंजरियों में फैला आमों का गंध ध्यान

आज बने हैं कल के ज्यों निशान

फूलों में फलने के हैं प्रमाण

खेतिहर लडक़ी की भोली-सी आँखों में निंबुओं की फाँकों में

मुस्काता अज्ञान हँसता है सब जहान

खेतों में पका धान

मधुऋतु रानी महान

मानिनी वसंती रंग चुनरी झलके जिसकी

ढ़लके आँचल धानी लहरा-सा

आंखों में आकर्षण भी खासा

युग-युग का प्याला-सा छलके दिलासा जहाँ

उतरी उन सरसों के खेतों पर मायाविनी

हल्के - हल्के - हल्के

फूल में छिपे निशान हैं फल के।

उतरी वासंतिका

तहलका-सा छाया तरु दुनिया में छुटा भान

स्वागत में कोकिल का पिंडुकी का जुटा गान।

‘आशा ही आशा है’

आज अनिर्बंध उष्ण अरुण प्रेम परिभाषा

पल्लव की पल्लव से सुरंभिमय यही भाषा-

‘आशा ही आशा है’

वासंती की दिगंत-रिनिनिनमयि शिंजनियाँ

पड़ती जो भनक कान

परिवर्तित लक्ष लक्ष श्रुतियों में रोम-रोम

पंखिल हैं पंच प्राण

गा रे गा हरवाहे छेड़ मन चाहे राग

खेतों में मचा फाग।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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