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कविता: एक खिड़की, मौसम बदले, न बदले..................

raghvendra
Published on: 17 Feb 2018 3:26 PM IST
कविता: एक खिड़की, मौसम बदले, न बदले..................
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अशोक वाजपेयी

एक खिड़की

मौसम बदले, न बदले

हमें उम्मीद की

कम से कम

एक खिड़की तो खुली रखनी चाहिए।

शायद कोई गृहिणी

वसंती रेशम में लिपटी

उस वृक्ष के नीचे

किसी अज्ञात देवता के लिए

छोड़ गई हो

फूल, अक्षत और मधुरिमा।

हो सकता है

किसी बच्चे की गेंद

बजाय अनंत में खोने के

हमारे कमरे के अंदर आ गिरे और

उसे लौटाई जा सके

देवासुर-संग्राम से लहूलुहान

कोई बूढ़ा शब्द शायद

बाहर की ठंड से ठिठुरता

किसी कविता की हल्की आँच में

कुछ देर आराम करके रुकना चाहे।

हम अपने समय की हारी होड़ लगाएँ

और दाँव पर लगा दें

अपनी हिम्मत, चाहत, सब-कुछ –

पर एक खिड़की तो खुली रखनी चाहिए

ताकि हारने और गिरने के पहले

हम अँधेरे में

अपने अंतिम अस्त्र की तरह

फेंक सकें चमकती हुई

अपनी फिर भी

बची रह गई प्रार्थना।



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raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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