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कविता: काश तुम फिर आती, भागती हुई इस दुनिया से एकदम इतर  ठहरी हुई तुम।

raghvendra
Published on: 14 Oct 2017 8:21 AM
कविता: काश तुम फिर आती, भागती हुई इस दुनिया से एकदम इतर  ठहरी हुई तुम।
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योगेश मिश्र योगेश मिश्र

काश तुम फिर आती

भागती हुई इस दुनिया से एकदम इतर

ठहरी हुई तुम।

तुम्हारा कुछ नहीं है, निपट-निपटाऊ।

तुमने कभी नहीं चाहा, कुछ भी कहना।

चाहा नहीं भारी मन से रहना।

यादों की बस्ती में खोना,

गुजरी हुई ऋतुओं की कहानी होना।

बुलबुलों की तरह उठते जज़बात,

विराग जनता अवसाद।

आख्यानात्मक स्मृति छोडऩे वाली

तुम्हारी उपस्थिति।

भीतर के स्पर्श की तरह देखने की स्थिति।

रिश्तों की राग गाती तुम्हारी प्रकृति।

साथ रहने की कला,

अनुभवों का सरमाया,

अभिव्यंजना का सौन्दर्य।

शब्दबद्ध होते अनुभव

कहे को अनकहा छोडऩे की लत।

अब सब सालते हैं।

ये सब हैं तुम्हारी थाती

काश! तुम इसे ले जाने

एक बार फिर आती।

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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