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गोरखपुर-बस्ती मंडल: सियासत की कोल्हू में पेरे जा रहे गन्ना किसान

raghvendra
Published on: 12 April 2019 3:30 PM IST
गोरखपुर-बस्ती मंडल: सियासत की कोल्हू में पेरे जा रहे गन्ना किसान
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: कांग्रेस हो या भाजपा। या फिर सपा-बसपा और रालोद का नया गठबंधन। सभी पार्टियां किसानों की बेहतरी के लिए लॉलीपॉपनुमा घोषणा पत्र ला रहे हैं। चुनावी वादों के पिटारे में गन्ना किसानों के लिए बहुत कुछ है लेकिन गोरखपुर-बस्ती मंडल के उन गन्ना किसानों के लिए इनके पास कोई विज़न या मॉडल नहीं है जो खेतों में सूख रहे गन्ने की बिक्री को लेकर बेचैन हैं। जिस गन्ने को वह औने-पौने दामों पर बेचने को अभिशप्त हैं। उन्हें कोई राह दिखाने वाला नहीं है।

गोरखपुर-बस्ती मंडल के किसानों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के वह शब्द किसी फिक्स डिपाजिट की तरह थे, जब वह कहते थे कि गन्ना किसानों का 14 दिनों के अंदर भुगतान होगा। किसानों ने केला, हल्दी या अन्य नकदी फसलों को छोडक़र गन्ने की बुआई तो कर दी लेकिन अब पछता रहे हैं। न तो किसानों की उपज खरीदी जा रही है, न बिके गन्ने का समय से भुगतान हो रहा है।

गोरखपुर-बस्ती मंडल की चीनी मिलें जो 31 मार्च आते-आते नो-केन की किल्लत से जूझने लगती थीं, आज वहां ट्रालियों की कतार है। खेत में सूख रहे गन्ने से परेशान किसान बिहार से लेकर क्रशर मालिकों को अपनी उपज औने-पौने दाम पर बेच रहे हैं। विपक्ष संवेदना का मरहम लगा रहा है और सत्ता में बैठे लोगों के पास किसानों के लिए कोई राहत पैकेज नहीं है। चुनावी शोर के बीच गोरखपुर-बस्ती मंडल में 50 हजार से अधिक किसानों का खेतों में खड़ा गन्ना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है।

गोरखपुर-बस्ती परिक्षेत्र में कभीं 28 चीनी मिलें हुआ करती थी लेकिन आज सिर्फ 11 बचीं हैं। सर्वाधिक दिक्कत भारत-नेपाल सीमा के जिले महराजगंज की गड़ौरा चीनी मिल के बंद होने से है। करीब 80 करोड़ के बकाए के बाद इस चीनी मिल पर पिछले दिनों ताला लटका तो मिल पर निर्भर करीब 40 हजार किसानों की उम्मीदों भी जमीन पर आ गईं। रसूखदार लोगों का गन्ना भी बिक गया और उन्हें पर्ची भी मिल गई लेकिन छोटी-छोटी जोत वाले किसानों का गन्ना सूर्य की तपिश में सूख कर बर्बाद हो रहा है। इस चीनी मिल पर महराजगंज जिले के करीब 40 हजार किसानों का गन्ना बिकता था। गन्ने का पेराई सत्र खत्म होने को है और बमुश्किल 20 हजार गन्ना किसानों की उपज चीनी मिलों तक पहुंच सकी है।

मिल बंद होने के बाद क्षेत्र के गन्ने की फसल को महराजगंज की सिसवा और कुशीनगर की कप्तानगंज, रामकोला और ढाढा चीनी मिलों को आवंटित कर दी गई। महराजगंज के करीब 20 हजार गन्ना किसान पर्ची के लिए केन यूनियन से लेकर चीनी मिलों का चक्कर लगा रहे हैं। पर्ची के लिए गोरखपुर तक के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। इस मुश्किल में मुनाफे का खेल भी शुरू हो गया है। कुशीनगर में क्रशर का संचलन करने वाले महराजगंज की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं। गुड़ बनाने वाले लोग किसानों से 120 से 130 रुपये कुंतल तक गन्ना खरीद रहे हैं। एक-दो वर्ष पूर्व तक क्षेत्र के गन्ना किसान नकदी के लिए नेपाल की चीनी मिलों को अपनी उपज बेच देते है। रिश्तों में आई खटास और नेपाल के किसानों के विरोध के बाद स्थानीय किसानों को औने-पौने दामों पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही है।

गन्ना किसानों ने अब बिहार के गोपलगंज स्थित चीनी मिल का रुख किया है। गन्ना किसान वीरेन्द्र मिश्रा कहते हैं कि एक ट्राली गन्ना गोपालगंज पहुंचाने में 8 से 10 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं लेकिन सकून है कि तीन दिन के अंदर भुगतान हो जा रहा है। इतना ही नहीं, किसानों का संकट देखते हुए बिचौलियों ने धंधा शुरू कर दिया है। कुशीनगर और महराजगंज के सिसवा स्थित आईपीएल चीनी मिल तक गन्ना पहुंचाने के किराए के एवज में किसानों को बिना भुगतान के लिए 7 से 8 हजार रुपये तक देने पड़ रहे हैं। एक ट्राली में 70 से 80 कुंतल गन्ना ढोया जा सकता है। चीनी मिल इसके लिए करीब 22 से 24 हजार रुपये का भुगतान करती है। अब यदि किसान 22 हजार में से 7 हजार सिर्फ ट्राली के किराए के लिए देगा तो उसकी कमाई का अंदाजा लगाया जा सकता है।

छितौनी केन यूनियन से 25 हजार किसान जुड़े हुए हैं। समिति ने 25 लाख कुन्तल गन्ना सप्लाई के लिए ढाढा, रामकोला पंजाब, कप्तानगंज व खड्डा चीनी मिल से अनुबन्ध किया है लेकिन अभी तक 30 फीसदी फीसदी गन्ना ही चीनी मिलों को सप्लाई हो सकी है। कुशीनगर में चल रही पांच चीनी मिलों में 280 लाख कुंतल गन्ने की पेराई हो चुकी है। 125 लाख कुंतल अभी भी खेतों में सूख रहा है। कप्तानगंज क्षेत्र का गन्ना किसान रामप्यारे साहनी के छोटे बेटे की शादी को लेकर कप्तानगंज केन यूनियन का चक्कर लगा रहे थे। बीते 12 मार्च को परिसर में उनकी मौत हो गई। प्रशासन किसानों को पर्ची मुहैया कराने के बजाए किसान की मौत पर पर्दा डालने में जुटी है। पर्ची नहीं मिलने से आक्रोशित किसान जगह-जगह आंदोलन कर रहे हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

बीते दिनों लक्ष्मीगंज सहकारी गन्ना विकास समिति पर किसानों ने हंगामा किया। गन्ना किसान हीरा, राजवंशी यादव और महेंद्र प्रसाद का कहना था कि पर्ची नहीं मिलने से गन्ना खेतों में सूख रहा है। भाकियू के जिलाध्यक्ष रामचंद्र सिंह कहते हैं कि किसान सिर्फ चुनावी भाषणों में नेताओं की चिंता में दिखता है। जमीन पर उसकी चिंता करने वाला कोई नहीं है। पूर्वांचल चीनी मिल मजदूर यूनियन के अध्यक्ष नवल किशोर मिश्रा कहते हैं कि एक ट्राली में 70 से 80 कुंतल गन्ना लादा जाता है। चीनी मिल प्रबंधन एक ट्राली में 10 फीसदी से अधिक गन्ने को रिजेक्ट बताकर भुगतान में कटौती कर ले रहे है।

पूर्व सांसद और सपा नेता कुंवर अखिलेश सिंह आरोप लगाते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ के महंत हैं। चौक और बढय़ा चौक में गोरक्षपीठ के खेतों में पैदा हुए करीब 20 हजार कुंतल गन्ने को सिसवा चीनी मिल में बेच दिया गया है। मुख्यमंत्री को पहले छोटे किसानों की चिंता करनी चाहिए, जिनके बेटी की शादी से लेकर बच्चों के फीस तक गन्ने की बिक्री से ही तय होती है।

महराजगंज से कांग्रेस प्रत्याशी सुप्रिया श्रीनेत का कहना है कि महराजगंज के लोगों के लिए गन्ने की बिक्री नहीं होना सबसे बड़ी समस्या है। अभी भी 50 फीसदी से अधिक गन्ना खेतों में सूख रहा है, जो सरकार की गलत नीति का परिणाम है। कुशीनगर में पांच चीनी मिलें चल रही हैं। आम तौर पर ये चीनी मिलें 31 मार्च बीतते-बीतते नो-केन से जूझने लगती थीं। कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता और विधायक अजय कुमार लल्लू का कहना है कि 14 दिन में गन्ना मूल्य भुगतान तो दूर की बात है, गन्ना किसान जैसे-तैसे गन्ना बेचने को लेकर परेशान है। पर्ची नहीं मिलने के किसान तबाह हैं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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