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लोकसभा चुनाव 2019: पूर्वांचल में होगा कांटे का मुकाबला

raghvendra
Published on: 29 March 2019 6:55 AM GMT
लोकसभा चुनाव 2019: पूर्वांचल में होगा कांटे का मुकाबला
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आशुतोष सिंह

वाराणसी: लोकसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछ चुकी है। शह और मात का खेल शुरू हो चुका है। हर बार की तरह इस बार भी देश की नजरें उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई हैं। खासतौर से यूपी का पूर्वी इलाका यानीपूर्वांचल सियासी रूप से सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। देश के बड़े सियासी छत्रप पूर्वांचल से ही अपनी राजनीतिक किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतर रहे हैं। नरेंद्र मोदी और अखिलेश यादव सरीखे बड़े नेताओं की मौजूदगी से पूर्वांचल का राजनीतिक पारा अभी से गरम हो गया है। 26 सीटों वाले पूर्वांचल का सरताज कौन होगा, इसे लेकर जोर आजमाइश शुरू हो चुकी है। एक तरफ वाराणसी से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ताल ठोक रहे हैं तो दूसरी ओर आजमगढ़ में अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए अखिलेश यादव मैदान में उतर गए हैं। इन सबके बीच प्रियंका गांधी का पूर्वांचल प्रभारी के तौर पर ताबड़तोड़ दौरा इस राजनीतिक जंग को और दिलचस्प बना रहा है। जानकार बता रहे हैं कि लंबे समय बाद पूर्वांचल में इस तरह के कांटें की लड़ाई होने जा रही है।

बड़े नेताओं की पहली पसंद पूर्वांचल

लोकसभा चुनाव के तय शेड्यूल के मुताबिक पूर्वांचल में छठे और सातवें चरण में वोटिंग होगी। मतलब चुनाव में लगभग डेढ़ महीने से ज्यादे का वक्त है। बावजूद इसके पश्चिम उत्तर प्रदेश की बजाय चर्चा में ज्यादा पूर्वांचल है। यहां पर अभी से सियासी पारा चढऩे लगा है। पूर्वांचल के 21 जिलों की 26 सीटों पर जीत हासिल करने के लिए लगभग सभी पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है। खासतौर से बीजेपी के लिए अपना किला बचाना बेहद मुश्किल नजर आ रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल की जनता ने बीजेपी को छप्पर फाडक़र वोट दिया था। 26 में से 25 सीटें बीजेपी की झोली में आईं थीं। सिर्फ आजमगढ़ की सीट पर उसे शिकस्त मिली थी। इस सीट पर सपा नेता मुलायम सिंह यादव चुनाव जीते थे।

हालांकि अबकी बार तस्वीर वैसी नहीं है। बीजेपी का सामना इस बार सपा-बसपा के मजबूत गठबंधन से है। इसके अलावा प्रियंका गांधी की पॉलिटिक्स में इंट्री के बाद कांग्रेस भी खतरा बनकर उभरी है। इन दोनों से लड़ पाना आसान नहीं होगा। इस बीच बीजेपी को एक बार फिर मोदी लहर की उम्मीद है। उसे लगता है कि अंतिम वक्त में मोदी जब इस इलाके में चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतरेंगे तो तस्वीर बदलेगी। जानकार बता रहे हैं कि पूर्वांचल में बीजेपी की प्रतिष्ठा फंसी हुई है। वाराणसी से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा गाजीपुर, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडेय चंदौली और भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह मस्त बलिया से चुनाव लड़ रहे हैं।

अखिलेश के सियासी कौशल की परीक्षा

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले पूर्वांचल की राजनीति में समाजवादी पार्टी का सिक्का चलता था। वाराणसी और गोरखपुर को छोड़ दें तो पिछले ढाई दशकों से पूर्वांचल समाजवादी पार्टी के कब्जे में रहा। मजबूत पार्टी संगठन और सेट वोटबैंक (यादव+मुस्लिम) के सहारे सपा आगे रही। लेकिन मोदी की राजनीति के आगे सपा का ये तिलिस्म टूट गया। हालांकि पांच साल बाद सपा सुप्रीमो ने अपनी राजनीति को नया रूप दिया और सहयोगी के तौर पर बीएसपी को चुन लिया है। ऐसे में बीजेपी के मुकाबले सपा-बसपा गठबंधन मजबूत दिख रहा है। अगर पूर्वांचल की बात करें तो गठबंधन के तहत इस इलाके की अधिकांश सीटें सपा के खाते में हैं। यही कारण है कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने खुद आजमगढ़ से चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। उनकी कोशिश होगी कि आजमगढ़ के आसपास के अलावा पूर्वांचल के दूसरे हिस्से में भी लहर पैदा की जाए।

माना जा रहा है कि सपा की कमान संभालने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव उनके सियासी कौशल की पहली पूर्ण परीक्षा होगा। हालांकि सपा के सामने पूर्वांचल में कई समस्याएं भी मुंह बाएं खड़ी हैं। बीएसपी के वोटबैंक को सपा के पक्ष में ट्रांसफर कराना बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा कई ऐसी सीटें हैं जहां प्रत्याशी ना खड़ा कर पाने के चलते बगावत की स्थिति है। यही नहीं इस इलाके में अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव भी पूरी नजर गड़ाए हुए हैं। कहा जा रहा है कि शिवपाल अपने भतीजे का खेल बिगाडऩे की पूरी कोशिश करेंगे। चुनौती तो प्रियंका गांधी भी हैं। प्रियंका की मौजूदगी से मोदी विरोधी वोट का बंटवारा होना तय है। इसके अलावा अखिलेश यादव के सामने पीएम मोदी जैसा मजबूत चेहरा भी है, जो कभी भी हवा का रुख बदल सकता है।

प्रियंका का पूर्वांचल पर फोकस

पूर्वांचल के रण को जीतने के लिए कांग्रेस ने अपना तुरुप का इक्का चला है। पूर्वांचल में मजबूत बीजेपी से मुकाबले के लिए राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका गांधी को भेजा है। पिछले महीने लखनऊ में रोडशो के बाद प्रियंका चार दिनों तक दिन-रात पूर्वांचल के अलग-अलग नेताओं से मिलती रहीं। माना गया कि पूर्वांचल में उतरने से पहले प्रियंका गांधी अपना होमवर्क पूरा कर लेना चाहती हैं। इस बैठक के बाद प्रियंका गांधी तीन दिवसीय गंगा यात्रा पर निकलीं।

जानकार बता रहे हैं कि प्रियंका के निशाने पर बीजेपी खासतौर से नरेंद्र मोदी हैं। अपनी सियासी यात्रा के लिए प्रियंका ने मोदी के सबसे बड़े हथियार यानी गंगा को हथिया लिया। प्रयागराज से शुरू हुई प्रियंका गांधी की यात्रा पांच लोकसभा सीटों से होते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में खत्म हुई। प्रियंका इस दौरान बीजेपी पर तल्ख दिखीं। उनकी कोशिश है कि गंगा किनारे बसे गैर जाटव और गैर यादव बिरादरी को किसी तरह अपने पाले में लाया जाए। इसमें मल्लाह, निषाद, बिंद और कुम्हार आते हैं। गंगा यात्रा के दौरान कई ऐसे वाकये सामने आए जब प्रियंका इन लोगों से मिलती हुई दिखीं। दरअसल गंगा यात्रा रुट में पडऩे वाले इन पांच लोकसभा सीटों में इन जातियों का वर्चस्व रहा है। ये जातियां कभी कांग्रेस के पाले में खड़ी रहती थीं, लेकिन कांग्रेस की पकड़ ढीली पड़ी तो इन्होंने भी रास्ता बदल लिया। जानकार बताते हैं कि मौजूदा दौर में ये जातियां बीजेपी को लेकर कन्फ्यूज हैं। ऐसे में प्रियंका को लगता है कि अगर थोड़ी सी मेहनत की जाए तो बात बन सकती है।

आसान नहीं प्रियंका की राह

पूर्वांचल का चुनावी रण कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी की प्रभारी प्रियंका गांधी की भी लोकप्रियता और नेतृत्व क्षमता की परीक्षा साबित होगा। इससे पहले सिर्फ रायबरेली और अमेठी में चुनाव प्रचार तक ही सीमित रहने वाली प्रियंका को पहली बार बड़ी जिम्मेदारी दी गयी है। दरअसल, वह पूर्वांचल में पार्टी को जिताने की बेहद मुश्किल चुनौती के मुकाबिल खड़ी हैं। प्रियंका पर प्रधानमंत्री मोदी की उम्मीदवारी वाले वाराणसी समेत समूचे पूर्वांचल में भाजपा के दबदबे को तोडऩे की जिम्मेदारी है।

ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रियंका मोदी से मुकाबले के लिए मैदान में उतर सकती हैं, बशर्ते उन्हें सपा-बसपा का साथ मिले। प्रियंका गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में जोश भरना। 2014 के बाद से हताशा और निराशा में जा चुके कांग्रेसियों के लिए प्रियंका गांधी उम्मीद की किरण की तरह हैं। दरअसल यूपी में कांग्रेस को अपने पैरों पर खड़ा कर पाना इतना आसान नहीं है, ये प्रियंका भी जानती हैं। लिहाजा वो वोटरों से ज्यादा गांव-कस्बों के पुराने नेताओं पर केंद्रित हैं। वो पुराने कांग्रेसियों को ये विश्वास दिलाना चाहती हैं कि अब कांग्रेस सिर्फ चुनाव के लिए नहीं बल्कि मैदान में डटे रहने के लिए तैयारी कर रही है। यूपी के अंदर लोकसभा की दो और विधानसभा की सात सीटों के साथ कांग्रेस का वोटिंग परसेंट भी दहाई में नहीं है। कुल मिलाकर कहें तो कांग्रेस की इससे बुरी स्थिति क्या होगी? प्रियंका इसी हताशा और निराशा को खत्म करना चाहती हैं।

गोरखपुर और देवीपाटन में योगी की प्रतिष्ठा दांव पर

गोरखपुर और उसके आसपास के इलाके योगी आदित्यनाथ का अभेद्य किला माना जाता है, लेकिन पिछले साल हुए उपचुनाव में ये तिलिस्म टूट गया। बीजेपी उम्मीदवार पर सपा-बसपा गठबंधन भारी पड़ा तो सवाल उठने लगे। सवाल योगी आदित्यनाथ की साख को लेकर। जानकारों के मुताबिक उपचुनाव के दौरान योगी के संगठन हिंदू युवा वाहिनी ने बीजेपी का साथ नहीं दिया। लिहाजा बीजेपी को चुनाव में शिकस्त झेलनी पड़ी। ऐसे में बीजेपी और खुद योगी इस गलती को नहीं दोहराना चाहते हैं। इसीलिए इस बार उन्होंने पूरा होमवर्क कर रखा है। हाल ही में आयोग और बोर्ड की रूपरेखा खींचते हुए योगी आदित्यनाथ ने अपने संगठन का भरपूर ध्यान दिया। योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी से जुड़े राजकुमार शाही, रमाकांत निषाद, अतुल सिंह और नीरज शाही जैसे कद्दावर को अलग-अलग आयोगों में जगह देकर एक संदेश देने की कोशिश की।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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