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अपना भारत Exclusive शख्सियत : मेरा स्त्रीत्व ही मेरा वजूद-पुष्पांजलि
प्रख्यात अदाकारा माधुरी दीक्षित को लेकर मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन ने साल 2000 में चर्चित फिल्म ‘गजगामिनी’ बनाई थी। उस वक्त विवाद की वजह से काशी में फिल्म की शूटिंग नहीं हो सकी थी। तब मुंबई में हुसैन ने सेट लगाकर काशी वाला हिस्सा शूट किया था। फिल्म में माधुरी दीक्षित ने गजगामिनी का किरदार निभाया था। ठीक वैसी ही एक गजगामिनी की चर्चा आजकल वाराणसी में हर जुबान से सुनाई देती है।
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घाटों से लेकर गलियों तक चर्चा है। शहर में एक गजगामिनी घूम रही है। ये गजगामिनी आखिर है कौन? ये हैं अंतरराष्ट्रीय ख्यातिलब्ध योग गुरु पुष्पांजलि। फैशन और कल्चरल फोटोग्राफर विनय त्रिपाठी के फोटो शूट का सब्जेक्ट हैं। विनय काम तो कैंसर रिसर्च सेंटर में करते हैं, लेकिन देश-विदेश में फोटोग्राफर और नेमैटोग्राफर के तौर पर भी वो नामचीन हैं। गजगामिनी के बाद पुष्पांजलि हॉलीवुड में योगा गुरू के रूप में योगांजलि: पुष्पांजलि टाइटिल से एक बड़ी एलबम परियोजना में दाखिल हो रही हैं। भारत के किसी योगाचार्य की हॉलीवुड में यह पहली इंट्री होगी।
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स्त्री होना क्या है सिर्फ मां, बहन, पत्नी, बेटी या फिर रिश्तों का कोई एक और नाम ...स्त्री होना मेरे वजूद का वो हिस्सा है जो अकाट्य है, जिसे मैंने चुना नहीं जो मुझे बचपन से आंख खोलते ही सिखाया गया...ठीक वैसा ही जैसा एक पुरुष के साथ होता है. मेरा परिवेश, जिंदगी के उतार चढ़ाव...तमाम मोड़ पर स्त्री होने के अपने मायने हैं और एक असाधारण संघष...र्ऐसे दौर में जबकि स्त्री तमाम शिखर को छू रही है...जिसके लिए कोई भी चुनौती नामुमकिन नहीं, कोई लक्ष्य असंभव नहीं..उस दौर में स्त्री होने का मतलब बेहद खास है...स्त्री शक्ति का स्वरूप है...आदिशक्ति है ...मातृशक्ति है...वो सृजन करती है...जो सृष्टि रचता है उससे गौरवशाली और बड़ा औऱ क्या हो सकता है... स्त्री होने का मतलब सिर्फ चेहरा भर नहीं होता...
स्त्री शक्ति को प्रतिबिंबित करने का सशक्त माध्यम मुझे सिर्फ योग से मिला था...योग जिसने मुझे जीना सिखाया...दूसरों के लिए कुछ कर सकूं इसका रास्ता बताया..वो योग आदिशक्ति की तरह मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा बन गया...कहते हैं कोई घटना किसी की जिंदगी को बदलने के लिए काफी होती है...मेरे लिए दो ऐसी घटनाएं रहीं जिन्होंने मुझे बदला, गढ़ा, मुझे मेरे होने का अहसास कराया। पहला तो योग...
और दूसरा सर्दियों की वो एक सुबह जब मैं पहली बार वाराणसी के जैतपुरा संवासिनी गृह में गई थी...वहां कैद बच्चियों से मिलना, उनकी ख्वाहिशें, उनके अरमान. कुछ करने की ललक...मैंने उसी के बाद नई उड़ान कैंपेन शुरू किया...और उसी के बाद योगसूत्र के जरिए इन बच्चियों की जिंदगी बदलने की ओर आगे बढ़ी। इन दो चीजों ने जिन्होंने मुझे गढ़ा...
इसी की छाप मेरे व्यक्तित्व में स्वाभाविक रूप से दिख ही जाती है। स्त्री आगे बढऩा चाहती हैं...कुछ करना चाहती हैं...जो जीना चाहती हैं ...जो नया आसमान छू सकें। मेरे काम में आपको जैतपुरा की बेटियों का दर्द भी दिखेगा...लेकिन सबसे बढक़र स्त्री शक्ति का अलग-अलग स्वरूप दिखेगा..कैनवस पर ये दुनिया सिर्फ मेरी नहीं...तमाम स्त्रियों की हैं...योग की है...असंभव को संभव बनाने की है....क्योंकि मेरे जेहन में कहीं ना कहीं अमेरिकी कवयित्री माया एंजेलोउ की पंक्तियां गूंज रही थीं...जिसमें वो दुनिया भर की स्त्रियों के लिए लिखती हैं-
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(फिर भी मैं उड़ूंगी
तुम मुझे
इतिहास में भले दफन कर दो
भले ही अपने तोड़े मोड़े सच से
नीचा दिखा दो
भले ही
मुझे मिट्टी में मिला दो
फिर भी, धूल की तरह,
मैं उड़ूंगी)
चार किरदार
इस गजगामिनी में चार किरदार दिखाए गए हैं। इसमें स्विटजरलैंड में रहने वाली कथक नृत्यांगना फैनी का भी महत्वपूर्ण किरदार है। इस एलबम में काशी के घाटों, गलियों और मंदिरों में महिला का अलग-अलग रूप दिखाया गया है। गजगामिनी फिल्म में भी चार किरदार थे। ये किरदार गजगामिनी को काल खंडों के अनुसार दर्शाती हैं।
अपनी गजगामिनी यानी योग गुरु पुष्पांजलि शर्मा का चेहरा एलबम में सबसे अंत में आता है। इसमें काशी के सभी प्राचीन स्थानों को चित्रित किया गया है। एलबम में शामिल महिला चरित्रों का अलग-अलग काल खंडों से संबंध है। गजगामिनी को हर युग में महिला के सौंदर्य, अनुशासन और त्याग का प्रतीक माना जाता है।
वहीं, शकुंतला का चरित्र कालीदास के काल खंड से सामने आता है। मोनालिसा को इटली के मशहूर पेंटर लियोनार्डो द विंसी ने अमर बनाया है, जबकि मोनिका मौजूदा युग की नारी और उसके सौंदर्य का प्रतीक हैं। वहीं संगीता को आधुनिक युग की वो महिला बताया गया है, जो अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करती है।
-विनय त्रिपाठी
फोटोग्राफर/ सिनेमेटोग्राफर