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राम नगरी की व्यथा: अयोध्या को नहीं चाहिए सियासत

raghvendra
Published on: 28 Oct 2017 11:52 AM
राम नगरी की व्यथा: अयोध्या को नहीं चाहिए सियासत
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अनुराग शुक्ला की रिपोर्ट

अयोध्या: जिस घाट पर हाल में दीपावली के दियों ने विश्व रिकार्ड बनाया था उन पर झाड़ू लगाती शोभा कहती हैं, ‘हमैं का पता विकास होए कि न होए, हमका तो जिंदगीभर मजूरियै करै का है। बाबू हमें का पता होई, वैसे योगी कहिन है तो कुछी तो करिहैं पर ऐसे पहिले तो केहउ कुछू नाय किहिस।’ यही है अयोध्या के विकास की सच्चाई जो ताउम्र घाट पर झाड़ू लगा रही शोभा के मुंह से फूट पड़ी। दशकों से अयोध्या की पहचान सियासत, विवाद, मुद्दे और एजेंडे के तौर पर ही बनकर रह गयी है।

एक ऐसा एजेंडा जो सियासी तौर पर बहुत उपजाऊ, एक ऐसा विवाद जो मुद्दे में कभी भी तब्दील किया जा सकता है। अयोध्या के विकास को लेकर भी सियासत है और जहां पर हर सियासत का विकास हो सकता है। इसी विकास और सियासत की उलझन ने त्रेता युग में दुनिया की सबसे पहली स्मार्ट सिटी अयोध्या को कलयुग में सिर्फ उसके नाम तक ही सीमित कर दिया है। विकास यहां से गायब दिखता है यह बात और है कि विकास योजनाओं और पैकेजों की घोषणाओं की फाइल हर सरकार में लगातार मोटी होती जा रही है।

अयोध्या फैजाबाद जिले में है। फैजाबाद से अयोध्या जब आप जाएंगे तो अयोध्या के प्रवेश द्वार पर लिखा मिलेगा, ‘प्रविस नगर कीजै सब काजा, हृदय राख कौशलपुर राजा।’ इसका अर्थ है कि जो भी भगवान राम को सिर्फ मन में रखकर अयोध्या में प्रवेश करता है तो उसके सारे काम हो जाते हैं। लगता है हमारे सियासतदां ने इसे ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया है। हर पार्टी, हर दल के नेता और हर सियासदां दिमाग ने रामजी को अपने मन में रखा और अपना काम कर लिया। अयोध्या को भूल गये।

सिलसिला वादों का

यह बात और है कि अयोध्या को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करने का वादा सपा सरकार के सीएम ने चुनावी सभाओं में भी किया था। पर जब हेरिटेज आर्क बना तो अयोध्या का नाम तक नहीं लिया गया। अवध को लखनऊ तक सिकोड़ कर रख दिया गया। मूल अवध यानी अयोध्या को इससे जोड़ा नहीं गया था। अयोध्या को लेकर घोषणाएं हुईं, लेकिन ठोस काम नहीं शुरू हुआ, सिर्फ रस्मअदायगी हुई। सरकार के मंत्रियों ने कई बार अपनी सभाओं में गरजकर कहा कि सीएम अखिलेश यादव अयोध्या के विकास के लिए बेहद गंभीर हैं पर अयोध्या सिर्फ देखती रही।

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विकास के लिए अयोध्या ने हर दल पर भरोसा किया और हर दल को मौका दिया। केंद्र और राज्य में एकसाथ पूर्ण बहुमत की सरकार आने पर यह उम्मीद हिलोरें मारने लगीं तो अयोध्या यात्रा के बहाने योगी आदित्यनाथ ने पहले हनुमान गढ़ी, फिर रामलला के दर्शन कर अपने इरादे जता दिए थे। योगी ने दिन का खाना उस अखाड़े में खाया, जिसने मंदिर आंदोलन की अगुवाई की। फिर राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष के यहां जा पहुंचे। जिधर से भी योगी गुजरे जय श्री राम के नारे लगते रहे। योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या की टाइमिंग भी सही चुनी। पंद्रह साल बाद यूपी के किसी मुख्यमंत्री ने अयोध्या में रामलला के दर्शन किए।

योगी ने अपना एजेंडा साफ कर दिया। राम जन्मभूमि मंदिर से लेकर सरयू के घाट तक वे मौन रहे। साधु संतों के बीच जैसे ही योगी को मंच मिला तो माइक थामते ही उन्होंने ‘जय श्री राम’ और ‘गऊ माता की जय’ के नारे लगाकर अपने मन की बात कह दी। अयोध्या के लिए 350 करोड़ के पैकेज का ऐलान कर दिया। सरयू किनारे अब बनारस की तरह आरती शुरू करा दी। सरयू महोत्सव का ऐलान किया। राम की पैड़ी को सुंदर बनाने की घोषणा की। आसपास के मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए बजट दिया। फैजाबाद और अयोध्या की नगरपालिका को एक कर योगी सरकार ने नगर निगम बनाने का फैसला कर लिया। अयोध्या को पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से लिंक रोड के जरिये जोडऩे की तैयारी कर ली है।

भाजपा ने यह पहला कदम नहीं उठाया है। जब जगमोहन पर्यटन मंत्री थे तब अडवाणी ने उन्हें यहां भेजा था। उस समय अयोध्या के लिए 200 करोड़ रुपए की योजना बनी थी मगर यहां भी राम की याद काफी देर में आई। अटल सरकार चली गयी और केंद्र में कांग्रेस की यूपीए सरकार होने की वजह से शायद पैसा नहीं आ सका।

इस बार मोदी यह गलती नहीं करना चाहते तभी तो मोदी सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा अयोध्या के विकास का बड़ा पैकेज लेकर योगी की सरकार बनते ही पहुंचे। दर्शन-पूजन के बाद कारसेवकपुरम में जनसभा को संबोधित किया। कई विकास योजनाओं की घोषणा की। वह अयोध्या में खाली हाथ नहीं बल्कि रामायण म्यूजियम के निर्माण समेत कई विकास योजनाओं की सौगात के साथ पहुंचे थे।

योगी सरकार ने भी मोदी की अनुगामी बनकर राम की नगरी को अमृतसर की तर्ज पर विकसित करने का निर्णय लिया है। इसके लिए अमृतसर को विकसित करने वाली कम्पनी को हायर कर उसे डिजाइन बनाने के आदेश दिये गये हैं। डिजाइन बनते ही विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) बनाकर काम शुरु करवा दिया जाएगा।

तो आ जाता रामराज्य

इतनी योजनाएं अगर जमीन पर आकार ले लेतीं राम की अयोध्या में रामराज्य आ जाता पर यह सियासत है। अयोध्यावासी लोकतंत्र में राजनीति को बख़ूबी समझता है। शायद यही वजह है कि योगी के छह महीने में दो बार अयोध्या जाने, बजट में अयोध्या का नाम लेने, इतनी योजनाओं के ऐलान और सरयू तट पर देश की सबसे बड़ी राम की मूर्ति लगाने के ऐलान बावजूद यहां के लोगों की आंखों में वो चमक नहीं दिख रही है। जिस घाट पर योगी ने दिए जलाकर अयोध्या में छोटी दिवाली पर विश्व रिकार्ड बनाया, उसी घाट पर पंडा का काम कर जिंदगी बिता चुके मंहत ठाकुर प्रसाद दास कहते हैं, ‘भइया हम ऐसी बहुत घोषणा सुने हैं, अब मोदी भी हैं योगी भी हैं तो लगता है कि कुछ काम होगा।

मंदिर बनेगा पर कब बनेगा कुछ नहीं कह सकते। अयोध्या के हालात सुधर जाएं तो भी कुछ संतोष हो।’ वहीं पास बैठे दूसरे महंत हौसिला प्रसाद दास कहते हैं, ‘हो सकता है अबकी कुछ हो, मोदी और योगी पर कुछ भरोसा है। अब तक तो सिर्फ घोषणा हुई है। राम मंदिर तो दूर की बात है बुनियादी समस्या को लेकर भी कुछ नहीं किया गया।’

यात्रियों के रुकने की व्यवस्था नहीं

राम की पैड़ी पर अपना व्यवसाय कर रहे ठेकेदार रोहित सिंह कहते हैं, ‘मूर्ति लगवा लीजिए, विश्वरिकार्ड बनवा लीजिये। सबसे पहले यहां पर यात्रियों के लिए रुकने की व्यवस्था तो कीजिए। जब लोगों के रुकने की व्यवस्था होगी, तभी तो लोग आएंगे। लोग आते हैं, रुकने की व्यवस्था न होने से परेशान होते हैं। कभी न आने की कसम खा लेते हैं।’ रोहित की इस बात में दम है। हर सरकार अयोध्या को विश्व पर्यटन के नक्शे पर लाने का दावा करती है पर यहां अगर 1000 लोग भी आ जाएं तो उनके रुकने की व्यवस्था तक नहीं है।

सिर्फ चंद्रा होटल और बिड़ला धर्मशाला ही दो ऐसी जगहें हैं जहां पर पर्यटक रुकने की सोच सकते है पर वहां पर 300 लोगों से ज्यादा रुक ही नहीं सकते। रुकने की कमी ही वह वजह है कि धार्मिक मेलों को छोड़ दिया जाय तो यहां बमुश्किल 10 हजार पर्यटक भी नहीं आते। मेलों में यहां 4-5 लाख की भीड़ आम है। तब लोगों को सडक़ों पर सोना पड़ता है। पिछली परिक्रमा के दौरान 7 लोगों को ट्रक ने कुचल दिया था। सावन मेले में भी लोग हाइवे के किनारे ही सोते हैं।

पर्यटन है रोजी-रोटी का सहारा

अयोध्या में रोजी रोटी का साधन पर्यटन ही है। वह भी विवाद की वजह से ठीक से चल नहीं पा रहा है। अयोध्या के मुसलमानों के लिये भी राम किसी और धर्म के भगवान नहीं रोटी रोजी का साधन हैं। यहां आने वाले अगर किसी भी कारण से आना छोड़ देंगे तो नुकसान हर अयोध्यावासी का होगा। हिन्दू हो या मुसलमान। अब यह बात लोग खुद समझते हैं। अयोध्या में सियासी दर्शन करने वाले और इसके नाम पर राजनीति करने वालों को तो शायद यह भी पता नहीं होगा कि यहां पर मंदिरों में आराध्य की मूर्ति पर जो माला चढ़ाई जाती है वो मुस्लिम ही बड़े चाव से चुनकर लाते हैं। साथ ही सुबह-शाम होने वाली आरती में बत्ती भी बनाने वाले मुस्लिम हाथ ही होते हैं।

महंत जिन खड़ाऊं पर पैर रखकर अदालतों में आते हैं वे खड़ाऊं भी मुस्लिम कारीगर ही बनाते हैं। अयोध्या में तो कम से कम यह नहीं लगता कि यहां मंदिर-मस्जिद पर किसी तरह का विवाद है। फूल माला, बत्ती और खड़ाऊं बनाने वाले ऐसे ही एक कारीगर हैं रहीम खान। तीन पीढिय़ों से उनकी बनायी बत्ती और फूल माला मंदिरों में चढ़ाई जाती है। कहते हैं कि अगर मंदिर ही न रहे तो कैसी फूल माला और कहां की बत्ती। अगर ये फूल माला बत्ती खत्म हो गयी तो उनका परिवार कैसे पलेगा और जब इंसान ही नहीं रहेगा तो अल्लाह या भगवान को पूजेगा कौन। वे चाहते हैं कि किसी तरह विवाद खत्म हो जिससे अयोध्या का पर्यटन बढ़े।

तीन दशक से बन रहा सीवर

अयोध्या की सडक़ें तो चकाचक हैं पर यहां पर सीवर का काम पिछले तीन दशक से चल रहा है। अब सरकारी दावा है कि काम पूरा हो गया पर काम ऐसा हुआ है कि पूरा होने से पहले सीवर सडक़ों को फाडक़र अपनी शक्ल दिखा रहा है। जलकल विभाग नए बने अयोध्या नगर निगम को सीवर हैंडओवर करना चाहता है, पर नगर निगम इसकी क्वालिटी को लेकर इसे अपने हाथ में नहीं ले रहा।

यानी करोड़ों लगाकर बना सीवर भी किसी काम का नहीं है। स्थानीय वकील शैलेंद्र सिंह कहते हैं, ‘अयोध्या में विकास के नाम पर सिर्फ राजनीति होती है, सीवर बना तो मगर किसी काम का नहीं। हां सडक़ जरूर है पर यहां पर बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल रही है। पानी तो सरयू मां दे देती हैं पर सब घरों में पानी का कनेक्शन नहीं है। योगी सरकार का दिवाली मनाना मुझे तो सियासी चाल लगती है। अयोध्या में ऐसी बात बहुत हुई है।’

विकास में बसावट ही रोड़ा

अयोध्या की बसावट दरअसल उसके विकास में कुछ हद तक बाधा है। अयोध्या की भौगोलिक बसावट को बनारस की तरह ही बदला भी नहीं जा सकता है। यहां भी गलियां है। सड़कों के दोनों तरफ बसावट है। सड़कों को चौड़ी करने के लिए बहुत कुछ गिराना पड़ेगा। अयोध्या फैजाबाद जिले में है जो अवध की राजधानी था, जहां पर अवध रियासत की नींव पड़ी थी। फैजाबाद में आधारभूत संरचना बढ़ाई जाए तो अयोध्या की समस्या को हल किया जा सकता है पर सियासी फसल के लिए मूल जिला फैजाबाद उतना उर्वर नहीं है।

सड़कों की दयनीय स्थिति, अतिक्रमण, ऐतिहासिक इमारतों पर उगते पेड़, गिरते स्मारक, मुख्य बाजारों में खाली पुलिस बूथ और सड़कों पर छुट्टा गोवंश का कब्जा इस बात की तस्दीक करता है। इसी फैजाबाद में भगवान राम की कई निशानियां है, भरतकुंड है, सरयूघाट है जहां पर भगवान राम ने जल समाधि ली थी पर सियासी फीते पर अयोध्या के बराबर कद तो किसी शहर का नहीं है। लिहाजा अयोध्या पर निगाहें करम करने वाले उसके मूल शहर को बिसरा देते हैं। जबकि ये जुड़वा बसावट अयोध्या के सही मायने में संतुलित विकास की गारंटी है।

योगी से आस

योगी आदित्यनाथ के अयोध्या प्रेम से लोगों को कुछ आस बंधी है। जून में अयोध्या में 350 करोड़ रुपये की परियोजनाओं और छोटी दिवाली को 133 करोड़ रुपये से अधिक की लागत की केन्द्र पोषित पर्यटन परियोजनाओं तथा अन्य विकास कार्यों का शिलान्यास करने से इस आस को विश्वास मिला है। योगी ने अयोध्या को डेढ़ दशक बाद यह एहसास कराया कि अयोध्या सिर्फ सत्ता पाने का साधन नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के एजेंडे में हैं। योगी से मुख्यमंत्री बने आदित्यनाथ पर लोगों को फिलहाल भरोसा है क्योंकि अयोध्या के लोग यह मानते हैं- जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। यह उम्मीद भी है कि इस बार योगी आदित्यनाथ अयोध्या को संन्यासी, सर्वकल्याण और सौहार्द की भावना से देखें न कि सियासत की भावना से।

मुलायम का अजब रिश्ता

मुलायम सिंह यादव का अयोध्या से अजब रिश्ता है। मुस्लिम राजनीति की बात की जाए तो मुलायम सिंह यादव 1990 में अयोध्या आए रामभक्तों के खलनायक बने, 1992 में खिलाफत की आवाज और 2010 को दबी आवाजों के स्वर पर अंतिम बार मुख्यमंत्री रहते उन्होंने भी अयोध्या के विकास के लिए कई योजनाओं का वादा किया था। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कई विकास योजनाओं का ऐलान उन्होंने खुद किया था। इनमें गुरुकुल महाविद्यालय को देवभाषा संस्कृत विश्वविद्यालय बनाने के साथ तीर्र्थंकर जैन मंदिर के विकास और उनके नाम से कई परियोजनाओं की मंजूरी दी थी पर वे सब ठंडे बस्ते में ही पड़ी रह गई हैं।

मायावती ने भी किया था याद

मायावती सरकार आई तो भी ये परियोजनाएं परवान नहीं चढ़ सकीं। दरअसल सबसे खास बात यह है कि हर इंसान को राम अंत समय में ही याद आते हैं। सरकारों का भी यही है। सरकारें जाते समय राम और राम की अयोध्या याद आती है। मुलायम की सरकार ने जाते-जाते घोषणा की और मायावती ने उन्हें पूरा नहीं होने दिया। मायावती सरकार को भी राम और उनकी अयोध्या की याद बहुत बाद में आई। वैसे यह भी सच्चाई है कि अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों पर एकमुश्त धन आवंटन करने में मायावती की सरकार योगी सरकार से पहले तक सबसे अव्वल रही थी।

दो सौ तैंतीस करोड़ के पैकेज का ऐलान हो या फिर पैकेज में अयोध्या के चौदहकोसी व पंचकोसी परिक्रमा मार्गों को सुदृढ़ कराया जाना। अयोध्या की सड़कें, पेयजल, सीवर, विद्युत की व्यवस्था पर मायावती सरकार ने काफी धन खर्च करने का ऐलान किया था। सड़कें ठीक हुईं भी थीं। अयोध्या के श्रीराम चिकित्सालय में चौबीस घंटे विद्युत आपूर्ति भी करवाई। मायावती ने अयोध्या में रामकथा संकुल परियोजना भी शुरू की, जमीन का अधिग्रहण भी कराया पर समय ने उनकी परियोजना पर कैंची चला दी।

सियासत अखिलेश की

अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते समाजवादी पार्टी भी राम के नाम पर सियासत करने से नहीं चूकी। जब केंद्र सरकार ने यहां 151 करोड़ रुपए रामायण सर्किट के लिए दिए और रामायण संग्रहालय बनाने की घोषणा की तो अखिलेश यादव की सरकार भी पीछे नहीं रही। उसने यहां रामायण पाठ को बढ़ावा देने के लिए 20 करोड़ रुपए की घोषणा की। अयोध्या चुनावी रणक्षेत्र बना। कोशिश शुरू हो गयी कि आखिर भगवान राम के लिए किसने कितना किया है।

तत्कालीन सपा सरकार ने भाजपा की केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि केद्र ने रामायण संग्रहालय की घोषणा की, लेकिन जमीन भी नहीं खरीदी गई। वहीं उनकी सरकार ने जिस रामलीला पार्क या भजनस्थल की घोषणा की थी वहां का ब्लूप्रिंट तैयार है। इसमें रामायण के फोटो से भरा हुआ एक हॉल होगा, जहां पूरे दिन रामायण का पाठ होता रहेगा। यहां 5000 लोगों के बैठने की व्यवस्था होगी।

राज्य सरकार ने इसके लिए प्रस्ताव पारित कर दिया है। राम एवं हनुमान के चित्रों के लिए भी प्रस्ताव पारित कर दिया है। अयोध्या के सपा विधायक और अखिलेश सरकार में वन मंत्री रहे पवन पांडेय ने दावा किया था कि राज्य सरकार सरयू के किनारे नीम, पीपल एवं पारिजात के पेड़ भी लगा रही है, ताकि शहर को प्राचीन युग की तरह का लुक दिया जा सके। पर यहां भी अखिलेश सरकार को राम देर से ही याद आए।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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