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राष्ट्रीय युवा दिवस विशेष: लहराया भारत की युवाशक्ति का परचम

आज समूची दुनिया में हमारे देश की पहचान युवा देश के रूप में है। देश की राष्ट्रीय युवा नीति के तहत 14 से 35 आयु वर्ग के लोगों को युवा वर्ग की श्रेणी में रखा गया है। सवा अरब की आबादी वाले हमारे देश की वर्तमान जनसंख्या में 45 फीसद युवा हैं और इस युवा

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Published on: 12 Jan 2018 2:08 PM IST
राष्ट्रीय युवा दिवस विशेष: लहराया भारत की युवाशक्ति का परचम
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पूनम नेगी

आज समूची दुनिया में हमारे देश की पहचान युवा देश के रूप में है। देश की राष्ट्रीय युवा नीति के तहत 14 से 35 आयु वर्ग के लोगों को युवा वर्ग की श्रेणी में रखा गया है। सवा अरब की आबादी वाले हमारे देश की वर्तमान जनसंख्या में 45 फीसद युवा हैं और इस युवा आबादी में लगभग 70 फीसद 40 साल से कम उम्र की है। यही नहीं, 75 करोड़ वयस्कों में भी लगभग आधे लोग 25-30 साल की आयु के आसपास हैं। यानी विश्व के किसी भी देश में इतने युवा नहीं हैं, जितने कि अपने देश में।

विशेषज्ञों की मानें तो आज के सुशिक्षित भारतीय युवाओं की मानसिकता खासी परिपक्व है। इनके काम करने का तरीका भी अपने आप में निराला है। ये युवा एक दशक पूर्व के युवाओं से काफी अलग हैं। इन युवाओं की सबसे खास बात है इनकी प्रत्युत्पन्नमति यानी त्वरित निर्णय की क्षमता।

अपनी इस योग्यता के कारण हमारे युवाओं ने परम्पराओं एवं आधुनिकता का आपस में जो जोड़ दिखाया है; वह वाकई काबिलेतारीफ है। किसी जमाने में हर निर्णायक व जिम्मेदारी वाले काम के लिए बड़े-बुजुर्गों की राय पर निर्भर रहने वाली देश की युवा शक्ति आज व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निभा रही है। यह युवा चेतना का ही चमत्कार है। एक समय उच्च पद के लिए निर्धारित उम्र भी योग्यता की एक कसौटी मानी जाती थी, पर अब उम्र की यह बंदिश अर्थहीन हो चुकी है।

जोश से भरे हमारे भारतीय युवा आज शिक्षा, साहित्य, कला, मनोरंजन (थियेटर, फिल्म व खेल) के अलावा उद्यम-कारोबार, उत्पादन, आयात-निर्यात, सूचना प्रौद्योगिकी, मीडिया, विनिर्माण, चिकित्सा, कानून और नीति, सामाजिक उद्यमिता, स्वरोजगार, समाजसेवा आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं। कुछ समय पूर्व तक जो व्यवसाय प्रौढ़ एवं बुजुर्गों के लिए नियत माने जाते थे, उन क्षेत्रों में भी हमारे युवा न केवल प्रवेश ले रहे हैं, वरन अपने नेतृत्व का भरपूर हुनर भी दिखा रहे हैं।

विश्वविख्यात फोर्ब्स पत्रिका सफल व्यक्तियों की वार्षिक सूची में बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं का नाम का शामिल होना हमारी युवा शक्ति की विश्वव्यापी लोकप्रियता को दर्शाता है।

वैश्विक पटल पर महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल करने वाले इन युवाओं में क्रिकेटर विराट कोहली, टेनिस स्टार सानिया मिर्जा, बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल, गोल्फ खिलाड़ी अनिर्बान लाहिड़ी (26), जिमनास्ट दीपा करमाकर (22), महिला पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा के साथ ही ग्रामीण बच्चों के लिए विशेष प्रकार के स्कूल बैग डिजाइन करने वाले आलोक कुमार (24), चर्चित लेखक एवं निर्देशक चैतन्य तम्हाने (28), अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाली एक्टिविस्ट श्रेया सिंघल (23), ऑनलाइन चिकित्सा सेवा का एक अनूठी पहल करने वाले राहुल नारंग (29), छत्तीसगढ़ क्षेत्र में आदिवासियों के अधिकारों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाली ईशा खंडेलवाल, गुनीत कौर और पारिजात भारद्वाज (25, 24, 26), "ओयो रूम्स" के सीईओ रितेश अग्रवाल (22), "ओलाकैब" के सह संस्थापक अंकित भाटी (29), भारतीय चाय सीरीज "चायोस" की संस्थापक राघव वर्मा (29), "स्कूपब्हूप मीडिया" के सीईओ सात्विक मिश्रा (28),फोटोग्राफर विकी रॉय (29),"अतुल्य कला" की सीईओ स्मृति नागपाल (25), "ईपोच एल्डर केयर" की सह संस्थापक एवं सीईओ नेहा सिन्हा (29) आदि अनेक नाम शामिल हैं, जिन्होंने शिक्षा, साहित्य, कला, मनोरंजन, खेल, उद्यम-कारोबार, सूचना प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, कानून नीति व सामाजिक उद्यमिता आदि अनेकानेक क्षेत्रों में भारत की युवाशक्ति का परचम बुलंद किया है।

राष्ट्रीय युवा दिवस (12 जनवरी) के मौके पर पेश है कुछ खास युवाओं की उपलब्धियों, उनके सपनों और लक्ष्यों पर एक रिपोर्ट-

आलोक कुमार : अनूठा स्कूल बैग डिजाइनर

बकौल स्कूल बैग डिजाइनर आलोक कुमार, उत्तरी बिहार के ग्रामीण इलाके सीतामढ़ी में पलने बढ़ने के कारण उनको अपने क्षेत्र का पिछड़ापन बहुत तकलीफ देता था। खासतौर पर जब वे स्कूली बच्चों को किताबें ले जाने के लिए संघर्ष करते देखते थे। बारिश आदि के दौरान या नदी वगैहरा पार करते समय कई बार उनके कपड़े व टाट के झोलों में रखी किताबें भीग भी जाती थीं तो दुख होता था।

आलोक कहते है, "मैं उनकी इस समस्या का हल निकालना चाहता था। पुणे के सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट से डिजाइनिंग टेक्नोलॉजी में ग्रेजुएशन के दौरान इस बाबत एक विचार मन में आया और मैने एक खास तरह का स्कूल बैग डिजाइन किया।" पॉली प्रोपीलाइन प्लास्टिक से बने इस बैग का वजन मात्र 250 ग्राम है जो अपने वजन से 30 गुना वजन उठा सकता है।

साथ ही इस बैग की एक अन्य खासियत यह है कि इसमें सौर ऊर्जा से संचालित एक एलईडी लैंप भी लगा है। साथ ही एक विशेष तरीके से इसे 30-35 डिग्री मोड़ने पर यह एक स्टडी टेबिल में भी बदल जाता है। यही नहीं, इस पर लिखने से बच्चे का बैठने का पॉश्चर भी संतुलित रहता है। आलोक ने अपने इस बैग की ब्रांडिग "यलो" नाम से की है। वे बताते हैं कि उन्होंने सितंबर 2014 में इन स्कूली बैगों का निर्माण शुरू किया था। बीते वर्ष उन्होंने महाराष्ट्र में कुछ गैरलाभकारी संगठनों के माध्यम से करीब 800 स्कूल बैग बांटे थे और अभी 1,200 तैयार बैग बांटने की योजना है। आलोक अपने इस विशिष्ट स्कूल बैग के राष्ट्रव्यापी विस्तार के लिए काम कर रहे हैं।

ईशा, गुनीत और पारिजात: आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष

हौसलों से भरी ऐसी ही तीन युवतियां हैं ईशा खंडेलवाल (27), गुनीत कौर (26) और पारिजात भारद्वाज (29) जो छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाके में आदिवासियों के अधिकारों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। पेशे से वकील ईशा ने अपनी इन दो साथियों के साथ जगदलपुर में एक "लीगल एड ग्रुप" बनाया है।

उनका यह संगठन बस्तर, दंतेवाड़ा, कांकेर, सुकमा, बीजापुर जैसे अति पिछड़े इलाकों में अन्याय का शिकार होकर उम्मीदें खो चुके आदिवासियों के लिए संघर्ष कर रहा है और अदालतों में उन्हें मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध करा रहा है। साथ ही ये लोग अवैध रूप से हिरासत में रखे जाने वाले लोगों और न्यायिक हत्याओं में यातना झेल रहे लोगों के लिए पुलिस से जुड़े मामलों में भी काम कर रही हैं। मध्यप्रदेश के नीमच क्षेत्र की मूल निवासी ईशा का कहना है कि उनके जीवन का मूल मकसद इन अशिक्षित व पिछडे़ लोगों के जीवन से अन्याय का अंधेरा मिटाना है।

श्रीकांत बोला

जन्म से ही दृष्टिहीन श्रीकांत बोला आज 50 करोड़ से भी ज्यादा टर्नओवर वाली कन्ज्यूमर फूड पैकेजिंग कम्पनी बोलैंट इंडस्ट्रीज के सीईओ हैं। उनके पास कंपनी की चार उत्पादन इकाईयां हैं- एक हुबली (कर्नाटक), दूसरी व तीसरी निजामाबाद व हैदराबाद (तेलंगाना) और चौथी कंपनी जो कि सौ प्रतिशत सौर उर्जा द्वारा संचालित होती हैं, आंध्र प्रदेश की श्री सिटी में है।

गौरतलब हो कि यह एक ऐसी कंपनी है जिसका मुख्य उद्देश्य अशिक्षित और अपंग लोगों को रोजगार देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ना है; साथ ही उपभोक्ताओं को पर्यावरण के अनुकूल शुद्ध भोज्य पदार्थ उपलब्ध कराना। आंध्र प्रदेश में जन्मे श्रीकांत की यह बड़ी उपलब्धि उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो एक दृष्टिहीन व्यक्ति को अक्षम व असहाय मानते हैं।

प्रीथी श्रीनिवासन

प्रीथी तमिलनाडु की अंडर-19 क्रिकेट टीम की कप्तान थीं मगर एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसे ने उनकी जिंदगी बदल दी। रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त होने से उनकी गर्दन के नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया।

लेकिन प्रीथी ने जिंदगी से हार नहीं मानी। आज वे एक सफल मोटिवेशनल वक्ता के रूप में विख्यात हैं और कई स्वयंसेवी संगठनों से जुड़कर दूसरों को जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। प्रीथी ने उन महिलाओं के लिए भी काम करती हैं जो गंभीर रूप से विकलांग हैं। वे उन्हें सिखाती हैं कि कैसे बाधाओं को दूर कर खुश जिंदगी जी जा सकती है।

सतेंद्र सिंह

विख्यात डॉक्टर सतेन्द्र सिंह को मात्र नौ माह की उम्र में पोलियो हो गया था। आज वे एक प्रख्यात एक्टिविस्ट हैं और सार्वजनिक स्थानों को विकलांगों के लिए सुगम बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। उनके प्रयासों के चलते ही पोस्ट ऑफिस, मेडिकल संस्थान, पोलिंग बूथ वगैरह को विकलांगों के लिए अनुकूल बनाने के लिए तमाम प्रयास किये गये हैं। विकलांगता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए दिल्ली सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस पर 2016 में इन्हे राजकीय पुरस्कार से सम्मानित किया।

विवेक अग्निहोत्री और चैतन्य तम्हाने : प्रतिभा हुई उजागर

विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म "बुद्धा इन ए ट्रैफिक जाम" युवा निर्देशक की परिवर्तनकारी सोच को प्रदर्शित करती है। बस्तर व हैदराबाद में नक्सल आंदोलन पर केद्रित यह फिल्म पूंजीवाद और साम्यवाद के नाम पर अपनी दुकान चलाने वालों की कलई खोलने की कोशिश है।

यहां विभिन्न राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विचारधाराओं की बेजा सौदेबाजी करने वालों का असल चेहरा दिखाया गया है। उसके तहत राजनेता, नौकरशाह और जनता के कथित रहनुमाओं की क्लास ली गई है। आंदोलन को फैशन मान उसकी पहुंच महज सोशल मीडिया तक सीमित करने वालों को आईना दिखाया गया है। यह फिल्म सख्त लहजे में संदेश देती है कि आम जनता व सिस्टम के बीच की दूरी कम हो।

जनता के मध्य मौजूद बिचौलियों को निकाल बाहर किया जाए ताकि लोगों को उनके हक की चीजें मिल सकें। गौरतलब हो कि विवेक अग्निहोत्री की इस फिल्म ने "मैड्रिड इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, स्पेन" में विदेशी भाषा श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ मूल पटकथा का पुरस्कार जीता है।

इसी तरह 2016 में ऑस्कर अवॉर्ड के लिए मराठी फिल्म "कोर्ट" के नामांकन से इस फिल्म के युवा डायरेक्टर और लेखक चैतन्य तम्हाने चर्चा में हैं। यह फिल्म 88वें अकेडमी अवॉर्ड्स में "बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी" में ऑस्कर के लिए भी नामित हुई।

उनकी इस फिल्म "कोर्ट" को बीते साल बेस्ट फीचर फिल्म के नेशनल अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा वेनिस फिल्म फेस्टिवल में भी इसे "लायन ऑफ द फ्यूचर" अवार्ड सहित कई इंटरनेशनल अवॉर्ड मिल चुके हैं। 28 साल के चैतन्य इसके पहले एक शॉर्ट फिल्म "सिक्स स्टैण्डर्ड" का भी डायरेक्शन कर चुके हैं। आपको बताते हैं कि एक मिडिल क्लास मराठी फैमिली में पले-बढ़े चैतन्य तम्हाने कभी एकता कपूर की मीडिया कंपनी "बालाजी टेलीफिल्म" में बतौर सोप राइटर काम किया करते थे। महज 17 साल की उम्र से उन्होंने "बालाजी टेलीफिल्म" में नौकरी शुरू कर दी थी।

साधना ढांड

ब्रिटल बोन डिजीज की वजह से 12 साल की उम्र में साधना की सुनने की शक्ति चली गयी और उनका कद 3.3 फीट रह गया लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। पेटिंग के लिए कई राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली साधना ढांड अपने घर पर पेंटिग की क्लास लगाकर बच्चों को यह हुनर सिखाती हैं।

अनिर्बान लाहिड़ी : शानदार गोल्फर

ओलंपिक में पदक जीतना मेरे जीवन का सबसे बड़ी सपना है। यह कहना है भारत के सर्वोच्च वरीयता प्राप्त गोल्फ खिलाड़ी अनिर्बान लाहिड़ी का। बीते दिनों अमेरिका में आयोजित पीजीए चैम्पियनशिप में संयुक्त रूप से पांचवां स्थान हासिल करने वाले अनिर्बान कहते हैं, "मैं जानता हूं कि आज की तारीख में गोल्फ को आगे ले जाने के लिए सरकारी मदद की जरूरत होती है। मगर जब तक पेशेवर गोल्फ खिलाड़ी ओलंपिक जैसे आयोजन में हिस्सा लेकर देश का मान नहीं बढ़ाएंगे तब तक सरकारी मदद नहीं मिल सकती।"

पीजीए चैम्पियनशिप में अनिर्बान का शीर्ष पांचवां स्थान हासिल करना वाकई दुनिया में भारतीयों की एक नई उपलब्धि है। इससे भारत में गोल्फ को एक नया मुकाम मिलेगा। पीजीए चैम्पियनशिप में ढाई करोड़ का पुरस्कार हासिल करने वाले अनिर्बान का अपनी इस सफलता पर कहना है कि मेरा ध्यान खिताब की ओर नहीं था। मैं सिर्फ अच्छे शॉट्स खेल रहा था। इसीलिए भारी दबाव के बावजूद सफल रहा।

अनिर्बान का पीजीए चैम्पियनशिप में भारत की ओर से अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा है। इससे पहले 2009 में जीव मिल्खा सिंह इस चैम्पियनशिप में संयुक्त रूप से नौवें स्थान पर रहे थे।

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दीपा करमाकर : जांबाज जिमनास्ट

दीपा के कोच बिश्वेश्वर नंदी कहते हैं, "मुझे आज भी वह दिन याद है कि जब अगरतला के स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) के सेंटर में ट्रेनिंग ले रही छह साल की एक बच्ची उनके पास आई थी। उसका प्रदर्शन देख उनको उसी समय अहसास हो गया था कि यह बच्ची एक दिन राज्य और देश का नाम जरूर ऊंचा करेगी और उनका अंदाजा गलत नहीं निकला।

दीपा करमाकर जिमनास्टिक की वॉल्ट स्पर्धा के फाइनल में पहुंचने वाली भारत की पहली जिमनास्ट हैं। विश्व जिमनास्टिक फेडरेशन ने अभी तक यह दर्जा रूस, अमेरिका, जापान और चीन के चुनिंदा जिमनास्टों को ही दिया है। इस लिहाज से भारत के लिए यह एक दुर्लभ उपलब्धि है।

दीपा ने बीते दिनों जापान के हिरोशिमा में हुई एशियन चैंपियनशिप में भी कांस्य पदक हासिल किया था तथा उससे पहले ग्लासगो में हुए राष्ट्रकुल खेलों में भी उन्होंने कांस्य पदक जीता था। गौरतलब हो कि जिमनास्टिक्स में वे दुनिया की तीसरी महिला मानी जाती हैं जिन्होंने प्रोदुनोवा वॉल्ट स्पर्धा में कई कलाबाजियां खाने के बाद बेहतरीन तरीके से लैंड किया। हाल ही में सम्पन्न रियो ओलिंपिक्स में पदक से चूकने के बावजूद शानदार प्रदर्शन किया। ओलिंपिक्स में उन्होंने 15 से अधिक अंक हासिल किये।

जिसके चलते दीपा आज भी दुनिया की चौथी सर्वश्रेष्ठ महिला जिम्नास्ट बनी हुई हैं। देश के अति पिछड़े इलाके त्रिपुरा से निकलकर जिमनास्टिक्स जैसे खेल में वर्ल्ड क्लास रैकिंग तक पहुंची दीपा का यहां तक का सफर बेहद मुश्किलों भरा रहा। छह साल की उम्र में जब उन्होंने यह सफर शु डिग्री किया तो सबसे पहली दिक्कत उनके सपाट तलवों की थी। इसके साथ ही उनके पास न कास्ट्यूम थी, न जूते और न ही प्रैक्टिस ग्राउंड की सुविधा। फिर भी अपने जुनून और कड़ी मेहनत के बल पर हर समस्या से जूझती हुई उन्होंने यह मुकाम हासिल किया।

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मालथी कृष्णामूर्ति होला

बेंगलुरु की इस अंतर्राष्ट्रीय पैरा-एथलिट को एक साल की उम्र में लकवा मार गया था। ट्रीटमेंट से उनके शरीर के ऊपरी भाग की शक्ति तो वापस आ गयी लेकिन निचला भाग सामान्य नहीं हो सका। मगर जांबाज होला न हार नहीं मानी। डेनमार्क में होने वाले वर्ल्ड मास्टर्स गेम्स में उन्होंने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।

उस आयोजन में होला ने 200 मीटर दौड़, शॉटपुट, डिस्कस और जैवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीता। आज उनके खाते में करीब 300 मेडल्स हैं। होला को अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री सम्मान प्राप्त हो चुका है।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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