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अमा जाने दो: जब मंत्रीजी ही 'गब्बर' हैं, तो आखिर 'मुकरी' कौन!
आपके फिल्मी कीड़े है तो पता ही होगा कि 15 अगस्त 1975 को गब्बर सिंह का कैरेक्टर पैदा हुआ था। फिर अमजद खान के इस कैरेक्टर के 40 साल बाद अक्षय कुमार ‘गब्बर इजबैक’ से उत्पन्न हुए। चर्चा इसलिए कर रहा हूं कि भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष यानी कि यूपी के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने खुद को गब्बर सिंह घोषित कर दिया है, खुल्लम-खुल्ला बाकायदा रैली में। डायलॉग भी सुनिए, “दूसरा गब्बर, ओमप्रकाश राजभर सोनभद्र में पैदा हो चुका है। अब वो लड़ेगा।”
नवल कान्त सिन्हा
आप फिल्मी कीड़े है तो पता ही होगा कि 15 अगस्त 1975 को गब्बर सिंह का कैरेक्टर पैदा हुआ था। फिर अमजद खान के इस कैरेक्टर के 40 साल बाद अक्षय कुमार ‘गब्बर इजबैक’ से उत्पन्न हुए। चर्चा इसलिए कर रहा हूं कि भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष यानी कि यूपी के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने खुद को गब्बर सिंह घोषित कर दिया है, खुल्लम-खुल्ला बाकायदा रैली में। डायलॉग भी सुनिए, “दूसरा गब्बर, ओमप्रकाश राजभर सोनभद्र में पैदा हो चुका है। अब वो लड़ेगा।”
इन गब्बर साहब का एक और डायलॉग भी हाल के दिनों में सुपरहिट रहा। मऊ की एक रैली में मंत्रीजी इतने भावुक हुए है कि डायलॉग ठोक दिया- “बीजेपी यूपी में एक महीने में जितना खर्च करती है, उतना तो उनकी बिरादरी एक दिन में शराब पी जाती है।”
अब गब्बर तो स्वघोषित हो गए लेकिन सियासत के जय-वीरू के बारे में मुझे कोई नहीं बता रहा। धन्नो कोई बनना नहीं चाहेगा। ठाकुर के बारे में मुझे अंदाजा है कि वो हमारे पुलिसवाले साहब ही होंगे क्योंकि आजकल कानून के हाथ लम्बे नहीं बल्कि कटे हुए हैं और जनता बसन्ती जैसी है, जिसके पीछे समस्याएं हाथ धोकर पड़ी हैं और वो जय-वीरू की तलाश में भागे जा रही है। अब सियासत के इस फिल्मी अंदाज में मेरा सवाल भी सुन लीजिए कि यहां मुकरी कौन है। किसी छोटे कद के नेता को न बता दीजिएगा। क्योंकि मैं बयान देकर मुकर जाने वाले नेताओं का जिक्र कर रहा था। जिनके दो डायलॉग बहुत फेमस है, पुराना- “मेरी बातों को गलत ढंग से समझा गया” और नया- “मेरा एकाउंट किसी ने हैक कर लिया था।”
हाल ही में लोकनिर्माण विभाग खुद के पास रखने वाले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य हरदोई में छात्रों के एक कार्यक्रम में कह गए कि “कमाओ लेकिन दाल में नमक बराबर होना चाहिए। खाओ जैसे दाल में नमक खाया जाता है।” अब जनता पढ़ी-लिखी तो है नहीं, समझा कि उप मुख्यमंत्रीजी ठेकेदारों से कम मात्रा में भ्रष्टाचार का निवेदन कर रहे हैं। फिर बीजेपी
वालों को बताना पड़ा कि “उनकी बातों को गलत ढंग से समझा गया।”
वैसे पिछली सरकार के मंत्री शिवपाल यादव ने भी 2012 भी ऐसा ही कुछ कहा था- “ईमानदारी से काम करने वाले अधिकारी थोड़ी सी चोरी कर सकते हैं.” तब भी जनता गलत समझ गयी थी। फिर खुद मंत्रीजी ने कहा था कि “मेरी बातों को गलत ढंग से समझा गया।” दरअसल बड़ी-बड़ी राजनीति में छोटी-छोटी गलतियां तो हो ही जाती हैं, हम तो बस यही कहेंगे- अमा जाने दो।