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UP में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें चुनावी झुनझुना तो नहीं?
लखनऊ: पहले से ही पांच लाख करोड़ के घाटे में चल रही यूपी सरकार यदि विधानसभा चुनाव नहीं होते तो अपने कर्मचारियों को सातवां वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने में सौ बार सोचती। लेकिन सरकार भी क्या करे, लाखों कर्मचारियों को नाराज भी तो नहीं कर सकती। सातवें वेतन आयोग को लागू करने पर सरकारी खजाने पर हजारों करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
अब वेतनमान बढ़ा तो कर्मचारी खुश होने के बजाय हताश और निराश हो गए, क्योंकि इसमें तीसरे और चौथे श्रेणी के कर्मचारियों के लिए कुछ खास नहीं था। छठा वेतन आयोग लागू होने पर इस स्तर के सरकारी कर्मचारियों ने जमकर खुशियां मनाई थी। लेकिन इस बार खुशियां कम मनाई और वेतनमान में खोट ज्यादा तलाश ली। हालांकि अब क्लर्क का भी वेतन लगभग एक लाख रुपए होगा।
दरअसल, सातवें आयोग के वेतन में उनको बहुत कम फायदा हुआ है जबकि बड़े अधिकारियों की चांदी हो गई। लाखों की संख्या में तीसरे और चैाथे दर्जे के कर्मचारियों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि सरकार अपने आप को भले ही समाजवादी कहती हो लेकिन सरकार में शामिल लोगों की सोच पूंजीवादी है। सरकार ने तो बड़े अधिकारियों को बहुत आगे कर दिया। वहीं निचली श्रेणी के कर्मचारी जहां थे वहीं रह गए।
अब अधिकारियों को मिलेंगे लाखों और छोटे कर्मचारी जाए 'जहन्नुम' में। कुछ कर्मचारी तो ये भी कह रहे हैं कि हमारा भी समय आने वाला है। चुनाव में दिखाएंगे कि बड़े अधिकारी चुनाव में सरकार का कितना साथ देते हैं।