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अटल स्मृति: एक वक्त जमानत तक गंवानी पड़ गई थी, ऐसे बने थे पीएम
लखनऊ: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आज निधन हो गया। वे 93 साल के थे। दुनिया भर में उनकी पहचान एक जाने-माने कवि, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक के तौर पर होती है। अटल बिहारी देश के पीएम रहे है। लेकिन बहुत कम लोगों को ये बात पता होगी कि उनके राजनीतिक जीवन में एक समय ऐसा भी आया था। जब उन्हें चुनाव में अपनी जमानत तक जब्त करानी पड़ गई थी।
newstrack.com आज आपको अटल बिहारी बाजपेयी के जीवन से जुड़े कुछ यादगार किस्सों के बारे में बता रहा है।
जमानत बचाने के लिए भी करना पड़ा था संघर्ष
अटल बिहारी वाजपेयी का मथुरा को लेकर राजनीति का एक खट्टा अनुभव भी रहा है। देश की आजादी के बाद लोकसभा के दूसरे आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने भी जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया था। उनका यह पहला चुनाव था। बलरामपुर के साथ अटल बिहारी वाजपेयी मथुरा संसदीय क्षेत्र से भी चुनाव मैदान में उतरे। इस दौरान मथुरा संसदीय क्षेत्र से ही देश की आजादी में अहम किरदार निभाने वाले राजा महेन्द्र प्रताप भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। कांग्रेस ने प्रथम लोकसभा में मथुरा से प्रतिनिधित्व करने वाले किशन चंद्र अग्रवाल को मौका दिया था। देश के संसदीय इतिहास के पहले चुनाव में मात खा चुके राजा महेन्द्र प्रताप के सिर इस बार मथुरा की जनता ने कामयाबी का सेहरा बांध दिया। राजा महेन्द्र प्रताप के सामने अटल बिहारी वाजपेयी को अपनी जमानत गंवानी पड़ी थी।
जब तांगे के नीचे दब गये थे अटल
सत्तर के दशक में यूपी में मिरहची आए अटल जी कसबा निवासी लाला रामभरोसे के साथ तांगे से मारहरा जा रहे थे। ऊबड़ खाबड़ सड़क पर घोड़ा बिदका और तांगा असंतुलित होकर पलट गया। अटल बिहारी और लाला जी इसके नीचे दब गए। लेकिन किसी को गंभीर चोट नहीं आईं। यह बात खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने तत्कालीन भाजपा सांसद डा. महादीपक सिंह शाक्य को बताई थी।
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अटल के लिए लोगों ने दिया था ये नारा
‘हटिया खुली बजाजा बंद, झाड़े रहो कलक्टरगंज’ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की घोषणा के बाद कनपुरियों ने यह नारा खूब बुलंद किया था। लोग कलक्टरगंज के उस तिराहे पर पहुंचे थे जहां 74/28 नंबर की गद्दी पर शाम को होने वाली बैठकी में अटल बिहारी अपने हम उम्र दोस्तों के साथ हंसी-ठहाका करते थे। अटल जी भी बात-बात में ‘झाड़े रहो कलक्टरगंज’ कहते थे। जनसंघ के संस्थापकों में से एक अटल बिहारी का छात्र जीवन से ही कानपुर से गहरा रिश्ता था। तेरह दिन की सरकार में प्रधानमंत्री बनने के बाद वह सबसे पहले कानपुर आए थे। यहां उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर की के स्वर्ण जयंती समारोह का शुभारंभ किया था। अपने उस भाषण के बाद लोगों से बातचीत में उन्होंने कई बार कलक्टरगंज की यादों को भी ताजा किया था।
वाजपेयी की खास पसंद मथुरा के पेड़े
सम्मान के शिखर पर विराजे पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की हंसी ठिठोली की गवाह ब्रज की गलियां हैं। कभी साइकिल तो कभी यमुना में नौकाविहार में उनकी मस्ती आज भी उनके मित्रों को याद है। मथुरा के पेड़े उनकी खास पसंद में शुमार हैं। प्रधानमंत्री रहने के वक्त यहां से जाने वाले लोग उनके लिए पेड़े जरूर ले जाते थे।
पेड़े के दीवाने अटल ठंडाई के भी शौकीन रहे हैं। यहां ठंडाई छानने के उनके कई किस्से हैं। उनके नजदीक रहे लोग बताते हैं कि यमुना तट पर ठंडाई छानकर वह अकसर नौकाविहार पर निकल जाया करते थे। मस्त अंदाज ही हर शख्स को उनका मुरीद बना देता था। 1957 के चुनाव में बेशक उनको यहां की सियासी जमीन पर हार नसीब हुई, लेकिन वह यहां के लोगों की आत्मीयता देख अटूट रिश्ता जोड़ बैठे। मथुरा का जिक्र आने पर वह पेड़े की याद जरूर करते हैं।
ग्वालियर और अटल
मूल रूप से आगरा के बटेश्वर क्षेत्र के रहने वाले कृष्ण बिहारी वाजपेयी शिक्षण कार्य के लिए ग्वालियर आकर शिंदे की छावनी के कमल सिंह के बाग में रहने लगे थे। यहीं पर उनकी पत्नी कृष्णा वाजपेयी ने अटल बिहारी वाजपेयी को जन्म दिया था। अटल की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा ग्वालियर में हुई। उन्होंने बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री ग्वालियर के ही विक्टोरिया कालेज से प्राप्त की थी। ग्वालियर से वाजपेयी का करीबी नाता रहा है। अटल के पैतृक घर को उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के समय से ही वाचनालय का स्वरूप दिया गया है। यहां आज भी पत्र-पत्रिकाओं के अध्ययन के लिए लोग नियमित आते हैं। यहां कंप्यूटर शिक्षण भी नि:शुल्क दिया जाता है।
ग्वालियर से हार की कसक रही हमेशा
अटलजी के करीबियों को उनके जीवन में 1984 का वह दौर नहीं भूलता जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में वाजपेयी ग्वालियर से लोकसभा का चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में कांग्रेस ने पर्चा भरे जाने के समय से कुछ क्षण पहले एक राजनीति के तहत पूर्व केंद्रीय मंत्री व ग्वालियर रियासत के प्रमुख माधव राव सिंधिया की उम्मीदवारी घोषित कर दी थी। इस कारण भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को हार का सामना करना पड़ा था। अटलजी को ग्वालियर से हार की कसक हमेशा रही। वह अक्सर अपने नजदीकियों से हमेशा इसका जिक्र भी करते थे।
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सरसावा शुगर फैक्ट्री के गेस्ट हाउस में रहे थे बंदी
श्रीराम जन्म भूमि जेल भरो आंदोलन के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी को सरसावा की दि किसान को-आपरेटिव शुगर फैक्ट्री के गेस्ट हाउस में रखा गया था। वे यहां 24अक्तूबर से पांच नवंबर तक रहे। बताया जाता है कि तत्कालीन सांसद काजी रशीद मसूद भी शिष्टाचार के नाते अटल जी से मिलने गए थे। उनकी एक झलक पाने को दिन भर गेस्ट हाउस के बाहर लोगों का तांता लगा रहा था।
टॉपर रहे हैं अटल जी
भारत रत्न पाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 1946, 1947 में डीएवी पीजी कॉलेज में एडमिशन लिया और टॉपर बनकर निकले थे। डीएवी से ही उन्होंने एलएलबी का रिफ्रेशर कोर्स किया। खास बात यह रही कि अटल और उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ने एलएलबी के रिफ्रेशर कोर्स की कक्षाएं एक साथ पढ़ी थीं। पिता-बेटे डीएवी हॉस्टल के 104 नंबर कमरे में सादगी से रहते और खुद खाना बनाकर खाते थे। अपने कपड़े खुद धोते थे। डीएवी में पढ़ाई के दौरान ही अटल जी आरएसएस के संपर्क में आए और राजनीति से जुड़ गए। पांचजन्य में उनका लेख भी प्रकाशित होता था।
कुर्सी-मेज की अभी भी हैं यादें
अटल बिहारी वाजपेयी ने एमए राजनीति विज्ञान की पढ़ाई डीएवी के कमरा नंबर 20, 21 में की थी। जब एडमिशन लिया था, तब कलम, दवात रखने वाली मेज-कुर्सी थीं, जो आज भी हैं। इसको अटल जी की यादों से जोड़कर देखा जा रहा है।
गुरु का बहुत सम्मान करते थे
अटल बिहारी वाजपेयी का अपने शिक्षक डॉ. मदन मोहन पांडेय से गहरा लगाव था। जिस दिन गुरु क्लास लेने नहीं जाते थे, उस दिन अटल जी पुरानी साइकिल से 108/88 पीरोड गुरु जी के घर पहुंच जाते थे। जब गुरु नहीं मिलते थे तो उनकी पत्नी शारदा देवी से अनुमति लेकर घर के बाहर ही चबूतरे पर बैठकर पढ़ाई करने लगते थे।
यह सिलसिला तब तक चलता, जब तक गुरु आ नहीं जाते थे। सक्रिय राजनीति में आने और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अटल गुरु को नहीं भूले। नवंबर 2001 में डॉ. मदन मोहन पांडेय की मृत्यु हुई, तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी थे।
ताजमहल में कोट के लिए चुना था नारंगी फूल
भारत रत्न से नवाजे गए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मुहब्बत के शाहकार ताजमहल में नारंगी रंग के गुलाब को अपने कोट में लगाने के लिए चुना था। तब 1977 में वह तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री जेम्स केलघन के स्वागत को बतौर विदेश मंत्री आगरा आए हुए थे। प्रवेश द्वारा पर जेम्स केलघन ने उनका दिया हुआ पीले रंग का गुलाब लगाया था। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री लियोनार्ड जेम्स केलघन को रिसीव कर तत्कालीन विदेशी मंत्री अटल बिहारी ही लाए थे। मुख्य प्रवेश द्वार पर अटल ने इंग्लैंड के प्रधानमंत्री को फूल दिए तो उन्होंने उसमें से पीले रंग का फूल लेकर लगाया। अटल ने अपने लिए नारंगी रंग का फूल चुना।
मुशर्रफ के साथ नहीं देखा ताज
ताजमहल के शहर में 15 जुलाई 2001 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति रहे परवेज मुशर्रफ के साथ आगरा शिखर वार्ता की थी। तब मुशर्रफ ने पत्नी के साथ ताज का दीदार किया, लेकिन अटल इस कार्यक्रम से दूर ही रहे। विदेश मंत्री रहते हुए वह एक बार ही ताज आए।
पत्रकार बनना चाहते थे अटल
अटल को बचपन से ही साहित्यकार और पत्रकार बनने की तमन्ना थी। उनकी स्कूली शिक्षा बड़नगर के गोरखी विद्यालय में हुई। बड़नगर में ही उनके पिता टीचर थे। कॉलेज की पढ़ाई के लिए अटल ने चुना ग्वालियर का विक्टोरिया कॉलेज। यहीं पढ़ते हुए चालीस के दशक की शुरूआत में अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे और भारत छोड़ो आंदोलन में जेल भी गए थे। ग्वालियर शहर में हिंदू महासभा का दबदबा था और नौजवान अटल बिहारी वाजपेयी की हिंदू तन मन हिंदू जीवन...रग रग हिंदू मेरा परिचय कविता उसी वक्त ग्वालियर शहर में मशहूर हो चुकी थी। उस दौर के लोग बताते हैं कि अटल बिहारी आइने के सामने खड़े होकर अपनी स्पीच का रिहर्सल किया करते थे। वाजपेयी ने इसी कॉलेज से बीए किया। हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत में डिस्टिंक्शन के साथ। इस कॉलेज की वाद विवाद प्रतियोगिताओं के अटल बिहारी वाजपेयी हीरो हुआ करते थे। विक्टोरिया कॉलेज का हीरो आगे चलकर हिंदुस्तान का हीरो बन गया।
जब अटल 13 दिन के लिए पीएम बने
16 मई 1996 को पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने पुराने अनुभवों से सीखा और सहयोगी पार्टियों के साथ मैदान में उतरी और एनडीए का गठन हुआ। लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह अटल एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनते ही अटल ने पोखरण परमाणु परिक्षण करके पूरी दुनिया को अपनी ताकत दिखा दी। 1999 में एक बार फिर वाजपेयी संकट से जूझे और जयललिता का पार्टी एआईएडीएमके ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।