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नई दिल्ली: उर्दू की मशहूर और विवादित लेखिका इस्मत चुगताई का आज जन्मदिन है। 'Ismat Chughtai's 107th Birthday' नाम का टाइटल देकर गूगल ने बिंदास और बोल्ड लेखनी के लिए मशहूर 'इस्मत आपा' को याद किया है। उनका जीवन काफी विवादों भरा रहा था। यहां तक कि उनकी अंतिम यात्रा भी काफी विवादास्पद रही थी। newstrack.com आज आपको इस्मत चुगताई की अनटोल्ड स्टोरी के बारे में बता रहा है।
मिडिल क्लास फैमिली में हुआ था जन्म
इस्मत चुगताई का जन्म 21 अगस्त, 1915 में बदायूं के एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार में हुआ। वे दस भाई बहन थे, जिनमें इस्मत आपा का नौवां नंबर था। छह भाई और चार बहनें। उनके पिता सरकारी महकमे में थे तो इस वजह से उनका तबादला जोधपुर, आगरा और अलीगढ़ में होता रहता, जिस वजह से परिवार को जल्दी-जल्दी घर बदलना पड़ता। इसलिए इस्मत आपा का जीवन इन सब जगहों पर गुजरा।
भाइयों के साथ खेलकर बनी बोल्ड
सभी बहनें उम्र में बड़ी थीं, तो जब तक वे बड़ी होतीं उनकी शादी हो गई। ऐसे में बहनों का साथ कम और भाइयों का साथ उन्हें ज्यादा मिला। अब लड़कों के साथ रहना तो उनकी जैसी हरकतें और आदतें सीखना भी लाजिमी था। इस तरह इस्मत आपा बिंदास हो गईं, और हर वह काम करतीं जो उनके भाई करते। जैसे फुटबॉल से लेकर गिल्ली डंडा तक खेलना।
इस तरह उनके बिंदास व्यक्तित्व का निर्माण हुआ, जिसकी झलक उनकी लेखनी में देखने को मिली। आधुनिक उर्दू अफसानागोई के चार आधार स्तंभ माने जाते हैं, जिनमें मंटो, कृशन चंदर, राजिंदर सिंह बेदी और चौथा नाम इस्मत चुगताई का आता है।
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पहली कहानी, और अजीब इत्तेफाक
उनके बड़े भाई मिर्जा अजीम बेग चुगताई उर्दू के बड़े लेखक थे, जिस वजह से उन्हें अफसाने पड़ने का मौका मिला। उन्होंने चेखव, ओ’हेनरी से लेकर तोलस्तॉय और प्रेमचंद तक सभी लेखकों को पढ़ डाला। उनका पश्चिम में लिखे गए अफसानों से गहरा जुड़ाव रहा।
इस्मत आपा ने 1938 में लखनऊ के इसाबेला थोबर्न कॉलेज से बी.ए. किया। कॉलेज में उन्होंने शेक्सपीयर से लेकर इब्सन और बर्नाड शॉ तक सबको पढ़ डाला। 23 साल की उम्र इस्मत आपा को लगा कि अब वे लिखने के लिए तैयार हैं। उनकी कहानी के साथ बड़ा ही दिलचस्प वाकया पेश आया।
उनकी कहानी उर्दू की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘साक़ी’ में छपी. कहानी थी ‘फसादी’. पाठक इस्मत से वाकिफ थे नहीं, इसलिए उन्हें लगा कि आखिर मिर्जा अजीम ने अपना नाम क्यों बदल लिया है, और इस नाम से क्यों लिखने लगे।
अश्लील लेखन के आरोप में केस दर्ज
उनके जीवन पर राशिद जहां का काफी असर रहा। वे पेशे से डॉक्टर और लेखक भी थीं। इस्मत ने एक जगह लिखा, “उन्होंने मुझे बिगाड़ने का काम किया क्योंकि वे काफी बोल्ड थीं और अपने दिल की बात कहने से कभी चूकी नहीं, मैं उनके जैसा बनना चाहती थी।” इस्मत आपा बी.ए. और बी.टी (बैचलर्स इन एजुकेशन) करने वाली पहली मुस्लिम महिला थीं। उन्होंने 1942 में शाहिद लतीफ (फिल्म डायरेक्टर और स्क्रिप्टराइटर) से निकाह कर लिया।
लेकिन शादी से दो महीने पहले ही उन्होंने अपनी सबसे विवादास्पद कहानी ‘लिहाफ’ लिख ली थी। कहानी लिखने के दो साल बाद इस पर अश्लीलता के आरोप लगे। यह कहानी एक हताश गृहिणी की थी जिसके पति के पास समय नहीं है और यह औरत अपनी महिला नौकरानी के साथ में सुख पाती है। हालांकि दो साल तक चले केस को बाद में खारिज कर दिया गया।
फिल्मफेयर भी जीता
इस्मत आपा के पति फिल्मों से थे इसलिए उन्होंने भी फिल्मों में हाथ आजमाया. ‘गरम हवा’ उन्हीं कहानी थी। इस फिल्म की कहानी के लिए उन्हें कैफी आजमी के साथ बेस्ट स्टोरी के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्होंने श्याम बेनेगल की ‘जुनून (1979)’ में एक छोटा-सा रोल भी किया था.
दुनिया से विदाई भी कम विवादास्पद नहीं थी
24 अक्टूबर, 1991 को उनका निधन मुंबई मे हो गया। लेकिन विवाद यहां भी कायम रहे। उनका दाह संस्कार किया गया, जिसका उनके रिश्तेदारों ने विरोध किया। हालांकि कई ने कहा कि उनका वसीयत में ऐसा लिखा गया था।