TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

कहानी: रोटी, अचानक वह जग पड़ी, इस समय ढाई बज रहा था

raghvendra
Published on: 17 Nov 2017 5:16 PM IST
कहानी: रोटी, अचानक वह जग पड़ी, इस समय ढाई बज रहा था
X

वोल्फगांग बोर्शर्ट

अचानक वह जग पड़ी। इस समय ढाई बज रहा था, उसने सोचा वह क्यों जाग गई। ओह, रसोई में कोई स्टूल से टकरा गया है। उसने रसोई की ओर ध्यान से सुना। एकदम शांति थी और जब उसने अपना हाथ बगल वाले पलंग पर रखा तो उसे खाली पाया। यह वह वजह थी जिसकी वजह से इतनी शांति थी। उसकी (पति की) सांसें वहाँ नहीं थीं।

वह उठी और रसोईघर के लिए अंधेरे अपार्टमेंट में से होकर गई। रसोई में वह उससे टकराई। उसने रसोई की अलमारी के पास कुछ सफेद खड़ा हुआ देखा। उसने लाइट जला दी। रात के लगभग ढाई बजे रसोईघर में वे शर्ट में एक दूसरे के आमने सामने खड़े थे।

ब्रेड की थाली रसोई की मेज पर पड़ी हुई थी। उसने देखा कि कुछ ब्रेड काटी गई है। चाकू अब भी थाली के पास पड़ा था और मेजपोश पर ब्रेड का चूरा पड़ा था।

जब वे लोग रात में सोने जाते थे, तो वह हमेशा हर रोज मेजपोश साफ करती थी, लेकिन अभी मेजपोश पर ब्रेड का चूरा पड़ा था और चाकू भी वहां पड़ा हुआ था। उसने धीरे धीरे टाइल्स की ठंडक अपने ऊपर महसूस की और उसने थाली को दूर से देखा।

उसने (पति ने) कहा, ‘मुझे लगा यहां कुछ था’, और उसने रसोई में चारों ओर देखा।

वह बोली, ‘मुझे भी कुछ सुनाई दिया।’ और उसने देखा कि वह (पति) रात में शर्ट में और भी बूढ़ा दीख रहा था। उतना बूढ़ा जितना कि वह था - 63 वर्ष का। दिन के दौरान कभी कभी वह इससे छोटा दिखाई देता था।

उसने सोचा कि वह भी बूढ़ी दीख रही है। शर्ट में वह अपेक्षाकृत और बूढ़ी लग रही है, लेकिन शायद यह बालों की वजह से है। औरतों के साथ रात में यह हमेशा बालों के कारण होता है। ये उन्हें अचानक एकदम बूढ़ा बना देते हैं। ‘तुम्हें जूते पहनने चाहिए थे। ठंडे टाइल्स पर नंगे पैर रहने से तुम्हें जरूर सर्दी लग जाएगी।’

उसने उसकी (पति की) ओर नहीं देखा, क्योंकि वह उसके झूठ को अधिक बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। उसने (पति ने) उनके विवाह के 39 सालों बाद झूठ बोला था।

उसने फिर एक बार कहा, ‘मुझे लगा यहां कुछ था’, और फिर एक कोने से दूसरे कोने की तरफ निरर्थक देखा। ‘मैंने यहां कुछ सुना, मैंने सोचा कि यहां कुछ था।’

‘मैंने भी कुछ सुना, लेकिन यहां कुछ नहीं था,’ यह कहते हुए उसने मेज पर से थाली हटा ली और मेजपोश पर से चूरा झाड़ा। अनिश्चितता के साथ उसने कहा, ‘शायद कुछ नहीं था।’

वह उसकी मदद के लिए बढ़ी। उसने कहा, आओ, बाहर कुछ रहा होगा। आओ अब बिस्तर पर आओ। ठंडे टाइल्स पर तुम्हें सर्दी लग जाएगी। उसने खिडक़ी से बाहर देखा, ‘हां, जरूर, कुछ बाहर ही रहा होगा। मैंने सोचा यहां था।’

उसने लाइट का स्विच बंद करने के लिए हाथ उठाया। उसने सोचा मुझे अब स्विच बंद करना होगा, अन्यथा मुझे थाली को फिर देखना पड़ेगा। मैं दुबारा थाली को नहीं देख सकती।

उसने कहा, ‘अब अंदर आओ’ और लाइट बंद कर दी। जरूर बाहर ही कुछ रहा होगा। जब हवा चल रही होती है, बरसात की नाली हमेशा दीवार से ही टकराती है। यह हवा का झोंका रहा होगा। जब हवा चलती है, हमेशा खडख़ड़ाहट होती है। वे दोनों अँधेरे गलियारे के ऊपर बेडरूम में टटोलने लगे। उनके नंगे पैर फर्श पर धब्बे डाल रहे थे। उसने कहा, ‘हाँ, हवा चल रही है, सारी रात हवा चलती रही है।’

जब वे बिस्तर पर लेट गए, उसने (पत्नी ने) कहा, ‘हाँ सारी रात हवा चलती रही है। यह संभवत: बरसात की नाली की आवाज थी।’

‘हां, मैंने सोचा यह रसोई में थी। यह संभवत: बरसात की नाली ही थी।’ उसने ऐसे कहा मानो वह अर्धनिद्रा में हो।

लेकिन उसने ध्यान दिया कि पति के झूठ बोलने पर उसकी आवाज कैसी हो रही थी। उसने कहा, ‘ठंड है’ और हलके से जुम्हाई ली। मैं कंबल में घुस रही हूँ, शुभ रात्रि।

उसने भी उत्तर में ‘शुभरात्रि’ कहा, ‘हां वाकई ठंड बहुत है।’ उसके बाद खामोशी छा गई।

कई मिनटों के बाद उसने सुना कि वह चुपचाप और ध्यान से कुछ चबा रहा था। उसने जान-बूझकर गहरी लंबी सांस ली, ताकि वह यह न समझे कि वह अभी तक जाग रही है। लेकिन वह इतने नियमित ढंग से चबा रहा था कि उसे सच में धीरे धीरे नींद आ ही गई।

अगली शाम जब वह घर आया उसने उसे चार ब्रेड स्लाइस दिए। अन्यथा वह हमेशा तीन ही खा पाता था। उसने कहा तुम आराम से चार खा सकते हो और वह दीपक के सामने से दूर चली गई। ‘मैं इस ब्रेड को नहीं खा सकती, तुम एक और खा लो, अब मुझसे और नहीं खाया जाता।’ उसने देखा कि वह किस प्रकार थाली पर झुक रहा था। उसने आंख ऊपर उठाकर नहीं देखा। इस समय यह देखकर उसे बहुत दुख हुआ।

अपनी थाली को देखते हुए वह बोला, ‘तुम केवल दो स्लाइस खाकर नहीं रह सकती हो।’

‘शाम में मैं अधिक ब्रेड नहीं खा सकती हूँ। तुम खाओ, तुम खा लो।’

थोड़े समय के लिए वह दीपक की रोशनी में मेज के पास बैठ गई। १

अनुवाद - प्रतिभा उपाध्याय



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story