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कहानी: होना चीयर बालाओं का

raghvendra
Published on: 13 July 2018 4:59 PM IST
कहानी: होना चीयर बालाओं का
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‘आज नहीं तो कल मैच के लिए चीयरबालाएँ अपरिहार्य हो जाएँगी।’

‘उनका रूप कैसा होगा हमें पता नहीं लेकिन हमें कल्पना के घोड़े दौडाने से कौन रोक सकता है।’

किसी क्रिकेट मैच के पहले टीम की घोषणा होगी तो लोग कहेंगे, ‘हमें खिलाड़ी में इंटरेस्ट नहीं है। चाहे पोवार को लो या हरभजन को। हमें ये बताओ कि चीयर कौन करेगा? कायदे का चीयर न हुआ तो समझ लो गया मैच हाथ से।

क्रिकेट की कमेंट्री के साथ-साथ चीयरबालाओं की भी कमेंट्री होने लगे शायद। कमेंट्रेटर चीयरिंग अप का आँखों देखा हाल सुनाते हुये बोले - ‘अब मैच शुरू होने वाला है। गेंदबाज रन अप पर। बल्लेबाज क्रीज पर। चीयरबालाएँ तैयार। चीयरबालाओं के वर्णन के लिये रीतिकाल विशेषज्ञ आने ही वाले हैं। तब तक हम शुरू होते हैं।’

चीयर बाला ने तीन ठुमके बायीं तरफ की पब्लिक के लिए लगाए। जनता चौथे ठुमके की आशा में थी लेकिन उसने चौथी बार रिवर्स ठुमका लगा दिया है और ये दायीं तरफ की जनता के कलेजे के पार।

-ये बहुत सीनियर चीयरबाला हैं। सालों तक क्रिकेट की सेवा की है। कई बार इनके उत्साही ठुमकों कारण क्रिकेट की टीम बची है। कभी-कभी लोग कहने लगते हैं कि इनको जो करना था कर चुकीं लेकिन अभी भी इनके अन्दर दो तीन साल के ठुमके बचे हुए हैं। जब जरूरत नहीं होती तब वे अपना शानदार ‘चीयर’ निकाल के सामने दिखा देती हैं।

-युवराज सिंह बल्लेबाजी ठीक से कर नहीं पा रहे हैं। उन्होंने चीयरबालाओं के कप्तान को इशारा किया है। चीयरबालाओं का स्थान परिवर्तन हो रहा है। वही कम्बीनेशन जमा दिया गया है जिसको देखते हुए पिछ्ले मैच में उन्होंने धुआँधार बल्लेबाजी की थी। और ये छ्क्का।

-पहला पावर प्ले शुरू होने वाला है। युवा चीयरबालाओं को स्टैंड के सामने से हटाकार ठीक बैट्समैन के सामने लगा दिया गया है। बल्लेबाज को बहुत सावधान होकर खेलना होगा। जऱा-सी चूक होते ही वे विकेट के नज़दीक से हटकर चीयरबाला के नज़दीक से होते हुए पवेलियन तक जा सकते हैं।

-चीयरबालाओं के चेहरे पर आत्मविश्वास। पिछला मैच उन्होंने, जो भारत की टीम लगभग हार चुकी थी, केवल अपनी चीयरिंग से जितवा दिया था। उनको देखकर खिलाडियों की साँसें सेन्सेक्स की तरह ऊपर-नीचे हो रही हैं।

-ये एकदम साफ मामला था। अम्पायर एकदम पास में खड़े थे। लेकिन चूँकि उनका ध्यान चीयरग्रुप की तरफ था इसलिए वे खेल को देख नहीं पाए। उन्होंने तीसरे अम्पायर की सेवा लेने का फैसला लिया है। लेकिन अफसोस कि वहाँ से भी कुछ पता नहीं चला पाया क्योंकि सभी कैमरे भी चीयरग्रुप के ऊपर लगे हुए थे। आखिर में दोनों कप्तानों की सहमति से खिलाड़ी के आउट/नाटआउट होने का निर्णय टास उछाल कर किया जा रहा है।

आउट होने पर खिलाड़ी उछलता हुआ बाहर चला जाएगा। आने वाले खिलाड़ी का मुँह लटका होगा। उसकी चीयर-चेन जो टूट गई है।

चीयरबालाओं की तर्ज़ पर महिला खिलाडय़िों के मैच में चीयरबालकों की माँग होगी। कुछ दिनों में मिक्स चीयरग्रुप का प्रचलन भी शुरू हो जाएगा।

तब मजे रहेंगे। बारिश के कारण मैच रद्द हो जाएगा लेकिन चीयरग्रुप का कार्यक्रम चालू रहेगा। लोग मैच के पहले हवन वगैरह करेंगे- हे भगवान आज पानी बरसा दो। टिकट का पूरा मजा लेने दो। खेल तो देखते ही रहते हैं। आज जी भर के चीयरिंग हो लेने दो।

खिलाड़ी भी कामना करेंगे- काश पानी बरस जाए तो पवेलियन में टाँग पसार के चीयरफुल हो जाएँ।

खिलाडिय़ों के काम्बिनेशन से ज़्यादा चीयरग्रुप का काम्बिनेशन मायने रखेगा। उनके चयन में सिर फुटौव्वल होगी। बचे हुए कपड़े तक फाड़े जाएँगे।

खिलाड़ी जैसे आजकल अपना बल्ला बदलते हैं, ग्लव्स बदलते हैं वैसे ही कल को कहेंगे - फलानी वाली चीयरबाला को इधर लगाओ, इनको उधर करो। साइड स्क्रीन की तरह वे उनको इधर से उधर खिसकवाते रहेंगे।

होने को हो तो यह भी सकता है कि कल को चीयरबालाएँ और चीयरबालकों का ही जलवा हो सकता है। यह जलवा इतना तक हो सकता है कि वे कहें - इन खिलाडियों को रखो, इनको बाहर करो तभी हम चीयर करेंगे। अगर ये कम्बीनेशन रखेंगे तभी हमारा चीयरइफेक्ट काम करेगा।

पता लगा कि अच्छा खासा रन बनाता खिलाड़ी अपना मुँह बनाता हुआ मैच से बाहर। कोई हल्ला नहीं कोई टेंशन नहीं। मैच चीयर हो रहा है आराम से। कोई पूछेगा भी नहीं कि पिछले मैच का हीरो कहाँ चला गया।

आपको शायद यह मजाक लग रहा होगा कि खिलाड़ी से ज्यादा उनका हौसला बढ़ाने वाले की औकात कैसे हो जायेगी। क्रिकेट है तो चीयरबालायें /चीयरबालक हैं। क्रिकेट ही नहीं होगा तो बालायें क्या करेंगी? मजाक तो हम कर ही रहे हैं। लेकिन लगता है कि यह हो भी सकता है।

जब क्रिकेट में जीत हार को देश की जीत-हार मान लिया जाए। क्रिकेट में जीत गए तो मानो दुनिया जीत गए। सारा देश क्रिकेट के पीछे पगलाया घूमता है। इसके ग्लैमर के नशे में टुन्न। तो यह भी काहे नहीं हो सकता है। आखिर यह भी तो ग्लैमर है। ये चीज़ बड़ी है मस्त-मस्त।

अनूप शुक्ला



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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