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कहानी: क्रांतिकारी की कथा

raghvendra
Published on: 1 Sept 2018 1:09 PM IST
कहानी: क्रांतिकारी की कथा
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हरिशंकर परसाई

‘क्रांतिकारी’ उसने उपनाम रखा था। खूब पढ़ा-लिखा युवक। स्वस्थ सुंदर। नौकरी भी अच्छी। विद्रोही। माक्र्स - लेनिन के उद्धरण देता, चे ग्वेवारा का खास भक्त। कॉफी हाउस में काफी देर तक बैठता। खूब बातें करता। हमेशा क्रांतिकारिता के तनाव में रहता। सब उलट-पुलट देना है। सब बदल देना है। बाल बड़े, दाढ़ी करीने से बढ़ाई हुई। विद्रोह की घोषणा करता। कुछ करने का मौका ढूँढ़ता। कहता, ‘मेरे पिता की पीढ़ी को जल्दी मरना चाहिए। मेरे पिता घोर दकियानूस, जातिवादी, प्रतिक्रियावादी हैं। ठेठ बुर्जुआ। जब वे मरेंगे तब मैं न मुंडन कराऊँगा, न उनका श्राद्ध करूँगा। मैं सब परंपराओं का नाश कर दूँगा। चे ग्वेवारा जिंदाबाद।’

कोई साथी कहता, ‘पर तुम्हारे पिता तुम्हें बहुत प्यार करते हैं।’

क्रांतिकारी कहता, ‘प्यार? हाँ, हर बुर्जुआ क्रांतिकारिता को मारने के लिए प्यार करता है। यह प्यार षड्यंत्र है। तुम लोग नहीं समझते। इस समय मेरा बाप किसी ब्राह्मण की तलाश में है जिससे बीस-पच्चीस हजार रुपए ले कर उसकी लडक़ी से मेरी शादी कर देगा। पर मैं नहीं होने दूँगा। मैं जाति में शादी करूँगा ही नहीं। मैं दूसरी जाति की, किसी नीच जाति की लडक़ी से शादी करूँगा। मेरा बाप सिर धुनता बैठा रहेगा।’

साथी ने कहा, ‘अगर तुम्हारा प्यार किसी लडक़ी से हो जाए और संयोग से वह ब्राह्मण हो तो तुम शादी करोगे न?’

उसने कहा, ‘हरगिज नहीं। मैं उसे छोड़ दूँगा। कोई क्रांतिकारी अपनी जाति की लडक़ी से न प्यार करता है, न शादी। मेरा प्यार है एक कायस्थ लडक़ी से। मैं उससे शादी करूँगा।’

एक दिन उसने कायस्थ लडक़ी से कोर्ट में शादी कर ली। उसे ले कर अपने शहर आया और दोस्त के घर पर ठहर गया। बड़े शहीदाना मूड में था। कह रहा था, ‘आई ब्रोक देअर नेक। मेरा बाप इस समय सिर धुन रहा होगा, माँ रो रही होगी। मुहल्ले -पड़ोस के लोगों को इक्कट्ठा करके मेरा बाप कह रहा होगा, ‘हमारे लिए लडक़ा मर चुका।’ वह मुझे त्याग देगा। मुझे प्रापर्टी से वंचित कर देगा। आई डोंट केअर। मैं कोई भी बलिदान करने को तैयार हूँ। वह घर मेरे लिए दुश्मन का घर हो गया। बट आई विल फाइट टू दी एंड - टू दी एंड।’

वह बरामदे में तना हुआ घूमता। फिर बैठ जाता, कहता, ‘बस संघर्ष आ ही रहा है।’

उसका एक दोस्त आया। बोला, ‘तुम्हारे फादर कह रहे थे कि तुम पत्नी को ले कर सीधे घर क्यों नहीं आए। वे तो काफी शांत थे। कह रहे थे, लडक़े और बहू को घर ले आओ।’

वह उत्तेजित हो गया, ‘हूँ, बुर्जुआ हिपोक्रेसी। यह एक षड्यंत्र है। वे मुझे घर बुला कर फिर अपमान करके, हल्ला करके निकालेंगे। उन्होंने मुझे त्याग दिया है तो मैं क्यों समझौता करूँ। मैं दो कमरे किराए पर ले कर रहूँगा।’

दोस्त ने कहा, ‘पर तुम्हें त्यागा कहाँ है?’

उसने कहा, ‘मैं सब जानता हूँ - आई विल फाइट।’

क्रांतिकारी कल्पनाओं में था। हथियार पैने कर रहा था। बारूद सुखा रहा था। क्रांति का निर्णायक क्षण आनेवाला है। ‘मैं वीरता से लड़ूँगा। बलिदान हो जाऊँगा।’

तीसरे दिन उसका एक खास दोस्त आया। उसने कहा, ‘तुम्हारे माता-पिता टैक्सी ले कर तुम्हें लेने आ रहे हैं। इतवार को तुम्हारी शादी के उपलक्ष्य में भोज है। यह निमंत्रण-पत्र बाँटा जा रहा है।’

क्रांतिकारी ने सर ठोंक लिया। पसीना बहने लगा। पीला हो गया। बोला, ‘हाय, सब खत्म हो गया। जिंदगी भर की संघर्ष-साधना खत्म हो गई। नो स्ट्रगल। नो रेवोल्यूशन। मैं हार गया। वे मुझे लेने आ रहे हैं। मैं लडऩा चाहता था। मेरी क्रांतिकारिता! मेरी क्रांतिकारिता! देवी, तू मेरे बाप से मेरा तिरस्कार करवा। चे ग्वेवारा! डियर चे!’

उसकी पत्नी चतुर थी। वह दो-तीन दिनों से क्रांतिकारिता देख रही थी और हँस रही थी। उसने कहा, ‘डियर एक बात कहूँ। तुम क्रांतिकारी नहीं हो।’

उसने पूछा, ‘नहीं हूँ। फिर क्या हूँ?’

पत्नी ने कहा, ‘तुम एक बुर्जुआ बौड़म हो। पर मैं तुम्हें प्यार करती हूँ।’



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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