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गन्ना किसानी यानी मीठी चीनी की कड़वी कहानी

raghvendra
Published on: 9 Jun 2018 6:47 AM GMT
गन्ना किसानी यानी मीठी चीनी की कड़वी कहानी
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गन्ने की उम्दा फसल और चीनी का बंपर उत्पादन गन्ना किसानों के लिये संकट की तरह हो गयी है। चीनी मिल वाले हजारों करोड़ रुपये का बकाया भुगतान नहीं कर रहे हैं जबकि सरकार दावा करती है कि बकाया दिया दिया गया है। क्या है जमीनी स्थिति, इसकी ‘अपना भारत’ ने पड़ताल की। किसानों और गन्ना महकमे के अधिकारियों से बात की और उनका पक्ष जाना। पेश है एक रिपोर्ट :

करोड़ों दबाकर बैठी हैं चीनी मिलें

पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: गोरखपुर मंडल की चीनी मिलें गन्ना किसानों का करोड़ों रुपये हजम कर बैठी हुई हैं। धरना-प्रदर्शन और प्रशासनिक कार्यवाही का भी मालिकान पर कोई असर नहीं दिख रहा है। बकाये के मामले में महराजगंज की जेएचवी गडौरा चीनी मिल और चैरीचैरा की सरैया चीनी मिल सबसे आगे नजर आते हैं।

जेएचवी सुगर मिल ने सत्र 2017-18 में 27 लाख कुन्तल गन्ना की पेराई की है। प्रदेश सरकार के दावे के उलट वर्तमान सत्र का करीब 46 करोड़ रुपये बकाया है। वहीं पहले का बकाया भी करीब 22 करोड़ रुपये का है। गोरखपुर की सरैया चीनी मिल के खिलाफ ब्याज सहित 78.97 करोड़ के बकाये के वसूली को लेकर कई आरसी जारी हो चुकी है, मिल की नीलामी का फरमान भी हो चुका है लेकिन प्रबंधन पर कोई असर नहीं दिख रहा है। मिल के कर्मचारियों के करीब डेढ़ करोड़ के बकाये में भी प्रशासन आर.सी. जारी कर चुका है। मिल कर्मचारियों के वेतन भुगतान का मामला उच्च न्यायालय में लंबित है। अधिकारियों के मुताबिक चीनी मिल की कीमत 161 करोड़ रुपये आंकी गई है। इसमें भूमि व स्ट्रक्चर की कुल कीमत 137 करोड़ व मशीनरी की कीमत 24 करोड़ आंकी गई है।

पडरौना चीनी मिल पर 45 करोड़ बकाया

कई साल से बंद पडरौना चीनी मिल पर 45 करोड़ रुपया बकाया है। इसमें से एक करोड़ रुपया गन्ना समितियों का है जबकि 17 करोड़ा किसानों का बाकी है। कुल बकाए पर ब्याज की रकम जोडऩे के बाद इस चीनी मिल पर कुल देनदारी 45 करोड़ तक पहुंच गई है। 2014 में लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान पडरौना की सभा में नरेन्द्र मोदी ने चीनी मिल को चलाने का वादा किया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद वह बीते 27 नवम्बर को कुशीनगर में परिवर्तन रैली को सम्बोधित करने आए। किसानों के बकाया गन्ना मूल्य भुगतान की चर्चा भी की लेकिन इस चीनी मिल को चलाने और किसानों को पैसा दिलाने के बारे में कुछ नहीं बोले। इसी तरह कुशीनगर जिले की ही निजी क्षेत्र की कप्तानगंज चीनी मिल पर किसानों को 12.38 करोड़ बकाया है। यह बकाया पिछले गन्ना सत्रों का है।

पिपराइच व मुंडेरवा मिल चलने की उम्मीद

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ना किसानों के बकाये और बंद चीनी मिलों को दोबारा चलाने को लेकर घोषणा की थी। बकाये के भुगतान में सरकार भले ही खरी नहीं उतरी लेकिन गोरखपुर के पिपराइच और बस्ती जिले की मुंडेरवा चीनी मिल चालू करने की कवायद से किसानों में राहत है। पिपराइच चीनी मिल करीब 365 करोड़ रुपए की लागत से बन रही है।

चीनी मिल के साथ 15 मेगावॉट का पावर प्लाण्ट भी लगेगा जिससे इस क्षेत्र को 24 घण्टे बिजली मिलेगी। इसके साथ ही डिस्टलरी भी लगेगी। उधर 20 वर्षों से बंद मुंडेरवा चीनी मिल को भी 314 करोड़ की लागत से फिर चालू कराया जा रहा है। मिल के साथ पावर प्लांट और डिस्टलरी लगाने का भी प्रस्ताव है। पहले चरण में 3500 टीडीसी गन्ना पेराई और 18 मेगा वाट के पावर प्लांट को शुरू किया जाना है। इसके साथ ही मिल में 27 मेगा वाट तक पावर प्लांट भी लगाया जाना है।

पांच में चार पर किसानों का बकाया

सूर्य प्रकाश राय

कुशीनगर: चीनी का कटोरा कहे जाने वाले कुशीनगर में अब गिनती की पांच चीनी मिलें ही बची हैं। चीनी मिलें भले ही दोमुंही सरकारी नीतियों के चलते एक के बाद एक करके बन्द हो गयीं, लेकिन आज भी इस इलाके का किसान नगदी फसल के रूप में इसी गन्ने पर ही निर्भर है। पांच चीनी मिलों में सिर्फ एक ने अपना पूरा भुगतान कर दिया है। शेष चार पर किसानों का अभी लगभग 30 प्रतिशत गन्ना मूल्य बकाया चल रहा है।

जिले में वर्तमान में चल रही पांच चीनी मिलों में सभी निजी क्षेत्र की ही हैं। खड्डा, कप्तानगंज, रामकोला, सेवरही और ढाढा (हाटा) में स्थापित इन चीनी मिलों में बिरला ग्रुप की ढाढा चीनी मिल गन्ना मुल्य के भुगतान मामले में पहले स्थान पर है। जिला गन्ना अधिकारी कार्यालय से 31 मई तक के मिले आंकड़ों के अनुसार 29,180 लाख रुपए का किसानों का कुल गन्ना मूल्य यानी सौ प्रतिशत भुगतान हो गया है। दूसरे नम्बर पर रामकोला में स्थित त्रिवेणी चीनी मिल है जिसने जिले में सबसे अधिक गन्ने की पेराई की है। यह मिल कुल भुगतान 31644 लाख रुपये के सापेक्ष अभी तक 69 फीसदी का भुगतान कर अंतिम दो महीने का किसानों का भुगतान रोके हुए है। इस पर 9803.91 लाख रुपया 31 मई तक का बकाया चल रहा है। यहां के किसान काफी परेशान हैं। खड्डा की आईपीएल चीनी मिल ने कुल 8027.20 लाख रुपये के सापेक्ष 66.9 फीसदी भुगतान ही किया है। यहां किसानों का 2650.89 लाख रुपये का बकाया चल रहा है। सेवरही चीनी मिल ने कुल 24177.24 लाख रुपये बकाए में से 16074.37 लाख रुपये का भुगतान कर दिया है। अभी इस चीनी मिल पर किसानों का 8102.87 लाख रुपये बकाया है। कप्तानगंज चीनी मिल ने कुल 16808.67 लाख रुपये के गन्ने की पेराई की थी जिसमें से किसानों का 7801.57 लाख रुपया अभी बकाए में चल रहा है।

शासन के निर्देश के बाद सख्ती

जिला गन्ना अधिकारी वेद प्रकाश मिश्रा बताते हैं कि शासन के निर्देश के बाद पूरी सख्ती बरती जा रही है। यहां किसानों के सामने कोई बड़ी समस्या नहीं है। 31 मई तक 74.18 फीसदी भुगतान हो चुका है। बीते सत्र में 78387.578 हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ना बोया गया था। वर्तमान में सर्वे का काम चल रहा है। किसानों के लिए सबसे पसंदीदा गन्ना की वेराइटी सीओ 238 है। बड़े स्तर पर खेती करने वालों की मानें तो इलाके के 70 प्रतिशत किसानों ने यही गन्ना बो रखा है। किसान शत्रुघ्न शाही, मृत्यंजय मिश्र, श्याम मुरली मनोहर, डॉ धीरेन्द्र, चन्द्रभान कुशवाहा, मदन गोविन्द राव का कहना था कि मिलें आखिरी एक या दो महीने का पैसा दबाकर रखे हुए हैं। यही किसानों का असली लाभ का पैसा है। चीनी मिलों पर सरकार और उनके अधिकारियों को दबाव बनाना चाहिए ताकि किसानों को पूरा भुगतान मिल सके।

बकाया भुगतान बना सिर दर्द

सुशील कुमार

मेरठ: गन्ना भुगतान के मामले में मेरठ मंडल की चीनी मिलों की हालत खराब है। सबसे मजेदार बात यह है कि प्रदेश में गन्ना राज्यमंत्री सुरेश राणा के गृह जिले शामली की शुगर मिलों पर मंडल में सबसे अधिक बकाया है। शामली की तीनों शुगर मिलों पर किसानों का 246.33 करोड़ रुपये बकाया है। यहां मिलों ने मात्र ५१ फीसदी ही भुगतान किया है।

मेरठ मंडल की मिलों पर किसानों का कुल २४२३ करोड़ रुपये बकाया है। मंडल की १६ शुगर मिलों ने अभी तक करीब २५२७ करोड़ रुपये गन्ना मूल्य का भुगतान किया है। करीब २४२३ रुपये गन्ना मूल्य बकाया चल रहा है। मंडल की मिलों ने औसत ५१ फीसदी बकाये का ही भुगतान किया है। ४९ फीसदी बकाया मिलों के पास शेष है।

बकायेदार शुगर मिलों को नोटिस

मंडल की १६ मिलों को पेराई के लिए ९७ हजार तीन टन गन्ने की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। यह गन्ना दो लाख ३१ हजार ५६ हेक्टेयर में हो जाता है,मंडल में इस वक्त यह क्षेत्रफल तीन लाख सात हजार ४७१ हेक्टेयर है। ऐसे में ७६ हजार हेक्टेयर गन्ना क्षेत्रफल ज्यादा है। मेरठ मंडल के गन्ना आयुक्त हरपाल सिंह ने बताया कि बकाएदार शुगर मिलों को जल्द भुगतान करने के नोटिस दिए जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि चीनी के रेट कम होने और शीरे का उठान नहीं होने से भी शुगर मिलों को समय से गन्ना मूल्य भुगतान करने में परेशानी हो रही है, लेकिन मिल प्रबंधकों को जल्द ही पूरा गन्ना मूल्य भुगतान करने के लिए निर्देशित किया गया है। कृषि के जानकार कहते हैं कि मंडल में अगर गन्ना वेरायटी बुआई अनुपात सुधर जाए तो किसानों के खाते में करीब 36 करोड़ रुपये अतिरिक्त जाएंगे। इससे न केवल किसानों को फायदा होगा बल्कि चीनी मिल भी समय पर चल सकेगी। चीनी की रिकवरी ज्यादा आने पर मिलों को भी फायदा होगा और वे घाटे का रोना नहीं रो पाएंगी।

मेरठ में आदर्श अनुपात नहीं

देश में गन्ने की अगेती और सामान्य प्रजाति की बुआई की जाती है। गन्ना विभाग ने बुआई का आदर्श मानक 60:40 तय किया है। इसमें 60 फीसदी रकबे में सामान्य प्रजाति और 40 फीसदी रकबे में अगेती प्रजाति का गन्ना बोया जाना चाहिए। लेकिन मेरठ मंडल में यह आदर्श अनुपात बिगडक़र 94:6 हो गया है। इसमें 94 फीसदी सामान्य और 6 फीसदी अगेती प्रजाति का गन्ना बोया जा रहा है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार मंडल में पांच लाख से ज्यादा गन्ना किसान हैं। कृषि जानकारों के मुताबिक अगर किसान सामान्य व पुरानी प्रजातियों की बुआई की जगह सिर्फ 40 फीसदी रकबा (डेढ़ लाख हेक्टेयर पेड़ी वाला) यानी 60 हजार हेक्टेयर में जल्दी पकने वाली अगेती प्रजातियों की बुआई करें तो उनके खातों में 36 करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि जाएगी।

मिल वाले रो रहे मंदी का रोना

महेश कुमार

सहारनपुर: सहारनपुर जनपद मेें कुल छह चीनी मिल हैं, जिन्होंने इस साल गन्ना पेराई की है। इनमें दो चीनी मिल सहकारी हैं। इस साल सभी चीनी मिलों द्वारा 480.07 लाख कुंतल गन्ने की खरीद की गई और इतने ही गन्ने की पेराई की गई। कुल 50.62 लाख कुंतल चीनी का उत्पादन किया गया।

जनपद में गन्ने का क्षेत्रफल 96 हजार हेक्टेयर है। इस जिले के किसान ज्यादातर 0238 प्रजाति को बोते हैं। किसान देवेंद्र चौधरी ने बताया कि यह प्रजाति यहां के वातावरण के अनुकूल है। इस प्रजाति को बोने से किसान को जहां फायदा पहुंचता है, वहीं यह प्रजाति अगेती प्रजाति है और रिकवरी भी अच्छी होती है।

यदि चीनी मिलों पर बकाया की बात करें तो देवबंद चीनी मिल पर 12232.63, गांगनौली चीनी मिल पर 17810.48, शेरमउ चीनी मिल पर 9338.13, गागलहेड़ी चीनी मिल पर 4235.22, नानौता चीनी मिल पर 11857.92 तथा सरसावा चीनी मिल पर 5608.40 लाख कुल 61082.78 लाख रुपया बकाया चला आ रहा है। जिला गन्ना अधिकारी आरडी द्विवेदी बताते हैं कि चीनी मिलों पर बकाया किसानों के भुगतान के लिए लगातार दबाव दिया जा रहा है। यदि इसके बाद भी कोई चीनी मिल समय रहते किसानों को बकाया मूल्य का भुगतान नहीं करेगी तो उस चीनी मिल के खिलाफ सीधे रिपोर्ट दर्ज कराए जाने की कार्रवाई की जाएगी।

उधर, देवबंद चीनी मिल के प्रबंधक दीनानाथ मिश्रा बताते हैं कि चीनी मिल हर संभव प्रयास करती है कि समय से किसानों के बकाया का भुगतान हो जाए। उनका कहना है कि इस समय चीनी की मार्किट में मंदी है, लेकिन इसके बावजूद जैसे जैसे चीनी का उठान हो रहा है, वैसे वैसे किसानों को उनके बकाया का भुगतान किया जा रहा है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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